खुमार बाराबंकवी: अवाम के दिलों में बसा एक बेमिसाल शायर

खुमार बाराबंकवी का नाम अदब की दुनिया में एक ऐसा नाम है, जिसने अपनी शायरी से न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में एक अलग पहचान बनाई। 15 सितंबर को उनका जन्मदिन है, जो उनके चाहने वालों के लिए एक खास दिन होता है। इस दिन को उनके चाहने वाले याद करते हैं और उनकी यादों में खो जाते हैं। खुमार साहब की शायरी का जादू ऐसा था कि आम जनमानस के दिलों पर उनकी पकड़ मजबूत थी, और आज भी है। उनकी शायरी में जीवन के हर पहलू की झलक मिलती है, चाहे वह प्यार हो, विरह हो, समाज की समस्याएँ हों, या फिर इंसानियत की आवाज़।

खुमार बाराबंकवी का जीवन और उनकी शायरी

खुमार बाराबंकवी का असली नाम मोहम्मद हैदर था। 1919 में बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में पैदा हुए थे। बाराबंकी जैसे छोटे से कस्बे से उठकर उन्होंने अपनी शायरी से एक ऐसा मुकाम हासिल किया, जिसे बहुत कम लोग पा सकते हैं। खुमार साहब की शायरी का विषय आमतौर पर इश्क, इंसानियत और समाज की समस्याएँ हुआ करती थीं। उनकी गज़लें और नज्में इतनी दिलकश थीं कि उनकी महफिलों में लोग झूम उठते थे।

खुमार अकादमी के फाउंडर प्रचार मंत्री सैयद रिज़वान मुस्तफा बताते है, उनकी शायरी के बारे में यह कहा जा सकता है कि वह दिल की आवाज़ थी। वह ऐसी शायरी करते थे, जो सीधी दिल पर असर करती थी। खुमार साहब का अंदाज़-ए-बयाँ भी निराला था। वह जो भी लिखते थे, उसमें सच्चाई और ईमानदारी का पुट होता था, जो उनके पाठकों और सुनने वालों को बहुत पसंद आता था। यही वजह थी कि उनकी महफिलों में सांसद, विधायक, जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक समेत कई बड़े अधिकारी भी उनकी शायरी के क़ायल थे।

खुमार बाराबंकवी की शायरी की अहमियत

खुमार बाराबंकवी की शायरी में गहराई और सरलता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। उनके शेरों में दर्द, मोहब्बत, जज्बात और जिंदगी की सच्चाइयों का ऐसा चित्रण होता था कि सुनने वाला खुद को उनके अल्फ़ाज़ों में ढूँढ लेता था। यही कारण था कि उनकी शायरी हर वर्ग के लोगों को छूती थी, चाहे वह आम इंसान हो या फिर कोई बुद्धिजीवी।

उनकी शायरी की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रसिद्ध कथा वाचक मुरारी बापू ने अपने प्रवचनों में खुमार बाराबंकवी की शायरी का कई बार उल्लेख किया। मुरारी बापू का खुमार साहब के प्रति यह आदर उनकी शायरी की सार्वभौमिकता और लोगों के दिलों पर उनके असर को दर्शाता है। खुमार साहब की शायरी ऐसी थी, जो हर धर्म, जाति और भाषा की सीमाओं को पार करके सभी को जोड़ने का काम करती थी।

खुमार अकादमी: एक यादगार स्थापना

खुमार बाराबंकवी की याद में समाजसेवी चचा अमीर हैदर और एमएलसी गयास उद्दीन किदवई एडवोकेट ने एक खुमार अकादमी की स्थापना की। इसका शिलान्यास मुख्य सचिव योगेंद्र नारायण ने कमला नेहरू पार्क पर किया। इस अकादमी का उद्देश्य खुमार साहब की शायरी को आगे बढ़ाना और आने वाली पीढ़ियों को उनके साहित्य से परिचित कराना था।

लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज 25 वर्ष बीत जाने के बाद भी खुमार साहब की याद में बने इस अकादमी की बिल्डिंग में पानी टपक रहा है। अकादमी की देखभाल और संरक्षण के लिए आज भी डीएम, एसपी और जन प्रतिनिधियों की तवज्जो की जरूरत है। यह अकादमी न केवल खुमार साहब की याद को ताजा रखने का एक माध्यम है, बल्कि बाराबंकी के साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर की पहचान भी है।

खुमार बाराबंकवी का अंतिम समय और समाज का योगदान

20 फरवरी 1999 को खुमार बाराबंकवी का निधन हो गया। उनके इंतकाल की खबर जब बाराबंकी की तत्कालीन जिलाधिकारी डिंपल वर्मा को मिली, तो उन्होंने बिना किसी विलंब के गीले बालों के साथ उनके आवास पर पहुंचकर परिवार और उनके चाहने वालों को सांत्वना दी। यह घटना खुमार साहब के प्रति समाज के उच्च अधिकारियों और बुद्धिजीवियों की श्रद्धा को दिखाती है।

कथा वाचक मुरारी बापू भी जब उनके निधन की खबर सुनकर अयोध्या से लौटे, तो करबला सिविल लाइंस में उनकी कब्र पर पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित की। यह घटनाएं इस बात की तस्दीक करती हैं कि खुमार साहब ने न केवल साहित्यिक क्षेत्र में बल्कि समाज के हर वर्ग में एक अमिट छाप छोड़ी थी।

खुमार बाराबंकवी का जन्मदिन: एक भूला बिसरा दिन

खुमार बाराबंकवी का जन्मदिन, 15 सितंबर, एक ऐसा दिन है जिसे उनके चाहने वाले हमेशा याद करते हैं। लेकिन यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि खुमार साहब के इंतकाल के 25 साल बीत जाने के बाद भी आज उनके जन्मदिन और पुण्य तिथि पर सरकारी तंत्र और जन प्रतिनिधि उनकी कब्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने नहीं आते।

एक समय था जब ईद और बकरीद के मौकों पर सांसद, विधायक, जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक समेत सभी बड़े अधिकारी खुमार साहब के घर पहुंचकर उन्हें मुबारकबाद देते थे। आज, उनकी मृत्यु के बाद यह सब परंपराएँ कहीं खो सी गई हैं। यह अफसोसजनक है कि खुमार साहब जैसे शख्सियत की कब्र और उनकी अकादमी आज संरक्षण की मोहताज हैं।

सरकार और समाज का योगदान

खुमार बाराबंकवी की अहमियत को समझते हुए, 2019 में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के तहत सूचना विभाग ने ‘नया दौर’ मैगजीन में खुमार बाराबंकवी के नाम से एक विशेष अंक प्रकाशित किया था। यह अंक उनकी शायरी और उनके जीवन पर आधारित था, जो एक यादगार पहल बनी।

यह पहल यह दर्शाती है कि खुमार साहब की शायरी और उनके योगदान को भूला नहीं जा सकता। उनके जन्मदिन और पुण्य तिथि पर अगर सरकार, प्रशासन और समाज उनकी कब्र पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करें, तो यह उनकी विरासत को सहेजने का एक छोटा सा प्रयास होगा।

खुमार बाराबंकवी एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने अपनी शायरी से न केवल साहित्यिक दुनिया में, बल्कि आम जनमानस के दिलों में भी एक खास जगह बनाई। उनका जन्मदिन हर साल हमें उनकी याद दिलाता है, लेकिन यह अफसोस की बात है कि उनके निधन के बाद भी समाज और प्रशासन ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वह हकदार थे। उनकी अकादमी और उनकी कब्र आज भी देखभाल और संरक्षण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। खुमार बाराबंकवी जैसे शायर को भूलना न केवल साहित्यिक, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी हमारी एक बड़ी चूक होगी।

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