कानपुर। चुनावी अखाड़ा सजा हुआ है। सियासत के महाबलियों के नामों की घोषणा भी हो चुकी है। सरपंच के रूप में जनता भी इन योद्धाओं के दांवपेच पर बारीकी से निगाह गड़ाए हुए है। चुनावी शोर के बीच रोचक मुकाबले की पूरी उम्मीद है। इसकी वजह यह है कि पुराने धुरंधरों के सामने इस बार नए सूरमा अपनी ताकत आजमाने मैदान में उतरे हैं।
राजनीति में भले ही ये नए हैं, लेकिन पार्टी के बेस वोट और युवा वर्ग के समर्थन से उस्तादों को पछाड़ने का दावा कर रहे हैं। कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र की 10 संसदीय सीटों पर ऐसे 14 प्रत्याशी हैं, जो पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। पढ़िए, जागरण संवाददाता विजय प्रताप सिंह की रिपोर्ट..
नए चेहरों पर खेला दांव
सभी दलों ने नए चेहरों पर खेला दांव कानपुर संसदीय सीट पर सबसे रोचक मुकाबला है। यहां भाजपा, कांग्रेस और बसपा ने नए चेहरों पर दांव खेला है। मजे की बात यह है कि तीनों प्रत्याशी छात्र राजनीति से जुड़े रहे हैं और पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा की बात करें तो कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र की 10 लोकसभा सीटों में सिर्फ कानपुर में ही पार्टी ने अपना प्रत्याशी बदला है।
मौजूदा सांसद सत्यदेव पचौरी का टिकट काटकर इस बार रमेश अवस्थी को पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया है। तीन दशक से अधिक समय तक समाचार पत्रों व न्यूज चैनल में पत्रकार व एंकर रहे रमेश फर्रुखाबाद स्थित बद्री विशाल डिग्री कालेज से छात्र संघ अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
इसी तरह, कांग्रेस ने आलोक मिश्र को टिकट दिया है। वह छात्र जीवन से ही राजनीति में हैं लेकिन लोकसभा चुनाव पहली बार लड़ रहे हैं। वर्ष 1983 में क्राइस्टचर्च कालेज में पढ़ाई के दौरान ही वह छात्र राजनीति से जुड़ गए व छात्रसंघ अध्यक्ष बने। दो बार विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। वहीं, बसपा ने कुलदीप भदौरिया पर दांव लगाया है। कुलदीप भी छात्र राजनीति में सक्रिय रहे और डीएवी कालेज के महामंत्री भी रह चुके हैं।
दिग्गजों के सामने अशोक पांडेय
बसपा ने पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े अशोक पांडेय को उम्मीदवार बनाया है। वह पहली बार लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं। उनका मुकाबला भाजपा के पांच बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा सदस्य रह चुके भाजपा उम्मीदवार सांसद डा. सच्चिदानंद हरि साक्षी महाराज और सपा उम्मीदवार पूर्व सांसद अन्नू टंडन से है। 2009 में सांसद रह चुकीं अन्नू टंडन का भी यह तीसरा चुनाव है। ब्राह्मण समाज से आने वाले बसपा उम्मीदवार के सामने अनुभवी विपक्षियों से मुकाबला और 2009 में पार्टी से छिनी संसदीय सीट को वापस दिलाने की चुनौती है। उन्नाव लोकसभा से 2004 में बसपा से ब्रजेश पाठक सांसद निर्वाचित हुए थे।
राजनीतिक अनुभव हासिल करेंगे मनीष सचान
बसपा ने सियासत के नए सूरमा डा. मनीष सचान को मैदान में उतारा है। कानपुर देहात जिले के अनंतापुर के रहने वाले मनीष पहली बार चुनाव मैदान में आए हैं। कोई राजनीतिक अनुभव न होने से मनीष को पहली चुनौती अपनों के बीच ही पैठ बनाने की है। वहीं, समाजवादी पार्टी से अब तक कोई अधिकृत प्रत्याशी नहीं उतारा गया है जबकि भाजपा से डा. मनीष सचान के सामने तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरीं साध्वी निरंजन ज्योति हैं।
पिता की विरासत संभालने मैदान में उतरे अजेंद्र सिंह
भाजपा से पुष्पेंद्र सिंह चंदेल को तीसरी बार प्रत्याशी बनाया गया है। वहीं, आइएनडीआइ गठबंधन से चरखारी में रहने वाले अजेंद्र सिंह राजपूत को सपा ने टिकट देकर मैदान में उतारा है। वह अजेंद्र सिंह पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं और पिता चंद्रनारायण सिंह की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए मैदान में हैं। चंद्रनारायण सिंह एक बार महोबा और एक बार चरखारी से सपा विधायक रह चुके हैं। वहीं, बसपा ने अब तक अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। इससे सपा की धड़कनें बढ़ी हुई हैं।
जितेंद्र दोहरे का अनुभवी नेताओं से मुकाबला
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इटावा लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी से जितेंद्र दोहरे पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। इससे पहले उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा। उनके सामने भाजपा से दूसरी बार लोस चुनाव लड़ रहे डा. रामशंकर कठेरिया और बसपा प्रत्याशी सारिका सिंह बघेल हैं। सारिका भी हाथरस से सांसद रह चुकी हैं। इन अनुभवी नेताओं के सामने सपा के जितेंद्र दोहरे चुनावी मैदान में हैं। देखना है कि अनुभव और युवा जोश के बीच कैसी चुनावी जंग छिड़ती है और परिणाम क्या होगा।
महासमर के नए सूरमाओं में गठबंधन से सपा के 64 वर्षीय नारायणदास अहिरवार मैदान में हैं। पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे अहिरवार के सामने अपनों को जोड़कर चलने की है। 1982 से डीएसफोर पार्टी से राजनीति की शुरुआत की थी। इसके बाद बसपा में पहुंच गए और वार्ड कोआर्डिनेटर से लेकर जिलाध्यक्ष, मंडल व जोनल कोआर्डिनेटर तक के महत्वपूर्ण पदों पर रहे। आखिरी बार जब वर्ष 2007 में प्रदेश में फिर से बसपा की सरकार बनी तो उन्हें बसपा सुप्रीमो मायावती ने जल निगम का चेयरमैन बना दिया। 2022 में उन्होंने बसपा छोड़ सपा का दामन थाम लिया था। वहीं, बसपा की ओर से प्रत्याशी 62 वर्षीय सुरेश चंद्र गौतम का भी पहला लोकसभा चुनाव है। उनके सामने भी अपने बिखरे मतों को समेटना बड़ी चुनौती है। वह पार्टी के पूर्व बुंदेलखंड प्रभारी रहे हैं। 1983 से उन्होंने पार्टी के मिशन में कार्य शुरू किया था। उनकी वर्ष 1988 में विद्युत विभाग में राज्य विद्युत परिषद में अनपरा तापीय परियोजना में इंजीनियर के पद पर पहली नियुक्ति हुई।
महारथियों के सामने राजेश
अकबरपुर संसदीय क्षेत्र से बसपा के प्रत्याशी राजेश द्विवेदी 20 वर्ष से पार्टी में सक्रिय हैं लेकिन पहली बार लोस का चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला सियासत के महारथी माने जाने वाले भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र सिंह भोले और सपा के राजाराम पाल से है। पार्टी ने उनकी सक्रियता और क्षेत्र में पकड़ को आधार मानकर अपना प्रत्याशी घोषित किया है।
सपा और बसपा के उम्मीदवार पहली बार लड़ रहे लोस चुनाव
भारतीय जनता पार्टी ने मौजूदा सांसद मुकेश राजपूत को ही इस बार भी पार्टी का प्रत्याशी बनाया है। उनके पास लोकसभा चुनाव का काफी अनुभव है। वह लगातार चौथी बार मैदान में हैं। इनके मुकाबले में समाजवादी पार्टी ने डा. नवल किशोर शाक्य को प्रत्याशी बनाया है। वह पहली बार लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। जातीय समीकरण, उच्छ शिक्षा व युवा होने के दम पर वह प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इसी सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने क्रांति पांडेय को उतारा है। वह भी पहली बार लोकसभा चुनाव मैदान में आए हैं। उन्होंने जीवन में एक चुनाव बद्रीविशाल डिग्री कालेज में छात्रसंघ का लड़ा। इसमें उन्हें पराजित होना पड़ा था, लेकिन यह भी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की भरसक कोशिश में जुटे हैं। मुकेश राजपूत के पास अनुभव है तो उनके सामने नए सूरमाओं के पास जातीय समीकरण के साथ युवा जोश।