दो जजों की बेंच की अगुवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कुछ हाई कोर्ट के कामकाज पर भी उठाया सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ के जियामऊ में उस विवादित स्थल पर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवासीय यूनिट के बनाए जाने को लेकर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश सुनाया, जिस पर गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी के बेटे स्वामित्व का दावा कर रहे हैं. साथ ही कोर्ट ने मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से केस पर जल्द विचार करने के निर्देश के बावजूद सुनवाई न करने का उल्लेख किया और इसे “चिंताजनक” बताया.

दो जजों की बेंच की अगुवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कल गुरुवार को सुनवाई के दौरान कुछ हाई कोर्ट के कामकाज पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा, “कुछ हाई कोर्ट के बारे में हमें नहीं पता कि क्या होगा… यह (इलाहाबाद हाईकोर्ट) उन हाईकोर्ट में से एक है, जिसके बारे में चिंता होनी चाहिए. दुर्भाग्य से, फाइलिंग बंद हो गई है, लिस्टिंग भी बंद कर दी गई है… कोई नहीं जानता कि कौन सा मामला लिस्ट होगा.”

अंसारी परिवार से जुड़ी याचिका
इस बात का जिक्र करते हुए कि इलाहाबाद हाईकोर्ट देश का सबसे बड़ा हाईकोर्ट है, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वह ‘पिछले शनिवार को वहां पर मौजूद थे’ और ‘कुछ संबंधित जजों और रजिस्ट्रार के साथ उनकी लंबी बातचीत हुई थी.’

सुप्रीम कोर्ट लखनऊ के जियामऊ में एक संपत्ति के स्वामित्व से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रहा था. साल 2020 में, लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) ने मुख्तार अंसारी और उनके बेटों, जिसमें अब्बास अंसारी भी शामिल थे, की ओर से जमीन पर बनाए गए बंगले को बुलडोजर से ढहा दिया था. सरकार की योजना प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत फ्लैट बनाने के लिए संपत्ति का इस्तेमाल करने की थी.

SC ने HC से जल्द सुनवाई को कहा था
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने अब्बास अंसारी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल की इस दलील पर गौर किया कि जमीन पर कब्जे से संबंधित याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के समक्ष बार-बार लिस्टिंग की गई, लेकिन अभी तक कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई गई.

पिछले साल 21 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से अंतरिम रोक संबंधी आवेदन पर जल्द से जल्द सुनवाई करने को कहा था. लेकिन कल गुरुवार को जब मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में सुनवाई के लिए आया तो सिब्बल ने बेंच को बताया कि कोर्ट के आदेश के बावजूद मामले पर सुनवाई नहीं हुई है.

‘कुछ हाईकोर्ट्स के बारे में नहीं कह सकते’
इस पर बेंच ने कहा, हम कुछ हाईकोर्ट्स के बारे में कुछ नहीं कह सकते. लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट उन हाईकोर्ट्स में से एक है, जिसके बारे में चिंतित होना चाहिए. साथ ही कोर्ट ने निर्माण स्थल पर यथास्थिति बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट को मामले की शीघ्र सुनवाई करने का निर्देश भी दिया.

बेंच ने कहा, “चूंकि हमने कोई नोटिस जारी नहीं किया है और हाईकोर्ट की रजिस्ट्री से कोई रिपोर्ट भी नहीं मिली है, इसलिए हम इस बारे में कोई राय व्यक्त करने के लिए इच्छुक नहीं हैं कि ऐसी कौन सी परिस्थितियां थीं, जिनमें याचिकाकर्ता की रिट याचिका पर बेंच ने गौर नहीं किया जबकि इसे समय-समय पर सूचीबद्ध किया गया था.”

क्या है पूरा मामला
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में बताया कि अधिकारियों की ओर से लखनऊ के जियामऊ गांव में स्थित प्लॉट संख्या 93 पर निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया गया है, जिस पर याचिकाकर्ता अपने स्वामित्व का दावा कर रहे हैं. कोर्ट ने आगे कहा कि अगर तीसरे पक्ष के अधिकार बनाए जाते हैं तो इससे याचिकाकर्ताओं को भारी नुकसान हो सकता है.

अब्बास अंसारी के अनुसार, उनके दादा ने जियामऊ में एक प्लॉट में हिस्सा खरीदा था. पिछले साल 9 मार्च 2004 को डीड रजिस्ट्रेशन कराया गया था. दाखिल याचिका के अनुसार, उन्होंने उक्त संपत्ति को कथित तौर पर अपनी पत्नी राबिया बेगम को बतौर गिफ्ट दे दिया था, जिन्होंने 28 जून 2017 को रजिस्टर्ड वसीयत के जरिए इसे याचिकाकर्ता और उनके भाई को दे दिया था.

हालांकि उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, डालीबाग, लखनऊ ने कथित तौर पर 14 अगस्त, 2020 को (याचिकाकर्ताओं की गैरमौजूदगी में) एकतरफा फैसला सुनाते हुए भूखंड को सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया. इसके बाद याचिकाकर्ता और उसके भाई को अगस्त 2023 में जमीन से बेदखल कर दिया गया.

अधिकारियों के फैसले से निराश अब्बास अंसारी ने 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर की. एसडीएम के आदेश के बाद जमीन से जुड़े कुछ अन्य सह-मालिक भी हाईकोर्ट पहुंच गए. मामला डिवीजन बेंच के समक्ष सूचीबद्ध किया गया. इसके बाद अब्बास अंसारी की रिट याचिका जब 8 जनवरी, 2024 को सिंगल जज के सामने सुनवाई के लिए आई, तो उन्होंने इसे अन्य केसों के साथ लिस्टिंग करने का आदेश सुनाया जिससे विपरीत आदेशों से बचा जा सके.

अब्बास अंसारी ने कोर्ट में दाखिल याचिका में यह भी दलील दी गई कि उनकी रिट याचिका को बार-बार डिवीजन बेंच के समक्ष सूचीबद्ध किया गया, लेकिन इस संबंध में उनके पक्ष में कोई अंतरिम स्थगन आदेश पारित नहीं किया गया. याचिका में दावा किया गया कि प्राधिकारियों ने उस जमीन पर कब्जा करने के बाद सरकारी आवासीय योजना के तहत कुछ यूनिट्स का निर्माण शुरू भी कर दिया है.

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