झामुमो प्रमुख हेमंत सोरेन ने गुरुवार को चौथी बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. रांची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह इंडिया ब्लॉक के नेताओं के लिए एकजुटता प्रदर्शित करने और मंच साझा करने का एक अवसर बना कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे; लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, अरविंदज केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत ने समारोह में भाग लिया हालांकि, हेमंत सोरेन ने अकेले शपथ ग्रहण की, क्योंकि इंडिया ब्लॉक के सहयोगियों के बीच मंत्रिमंडल को लेकर सहमति नहीं बन पाई थी
हालांकि, सोरेन चाहते तो अपनी पार्टी के मंत्रियों को शपथ दिलवा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया 2019 में हेमंत सोरेन ने 3 कैबिनेट साथियों के साथ शपथ ली थी, जिनमें से एक उनकी पार्टी का और दो कांग्रेस कोटे के मंत्री थे. झामुमो के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक ने 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में 56 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को 24 सीटें मिलीं इंडिया ब्लॉक में शामिल पार्टियों में अकेले झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 34 सीटें, जबकि कांग्रेस ने 16 सीटें जीतीं. राजद ने 4 और सीपीआई-एमएल ने 2 सीटों पर जीत हासिल की.
हेमंत सोरेन ने मंत्रिमंडल पर आम सहमति बनने का इंतजार करने का फैसला किया. क्योंकि अगर वह झामुमो के मंत्रियों को अपने साथ शपथ दिलवा देते तो यह एकतरफा फैसला माना जाता और विपक्ष को इंडिया ब्लॉक की एकजुटता पर कटाक्ष करने का मौका मिल जाता. लेकिन हेमंत सोरेन के अकेले शपथ लेकर विपक्ष को कोई मुद्दा नहीं दिया झारखंड मंत्रिमंडल में 11 कैबिनेट मंत्री हो सकते हैं पिछले कार्यकाल में छह मंत्री झामुमो से थे, जबकि चार कांग्रेस से थे एक मंत्री राजद का था इस बार सीपीआई-एमएल, जिसके दो विधायक हैं, उसने हेमंत सरकार को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया है यानी कैबिनेट बर्थ का बंटवारा झामुमो, कांग्रेस और राजद के बीच होना है
सूत्रों की मानें तो इस बार झामुमो कैबिनेट में 7 मंत्री अपने कोटे से रखना चाहती है. इसके लिए पार्टी की तरफ से विधायकों की संख्या को आधार बनाया जा रहा है. वहीं, कांग्रेस पिछली बार की तरह इस बार भी 4 मंत्री पद पर अड़ी है. आरजेडी की भी ख्वाहिशें हैं. इस पेच को अभी सुलझाया नहीं जा सका है. कांग्रेस ने अभी तक सोरेन को मंत्रियों की सूची नहीं सौंपी है, क्योंकि पार्टी में बहुत सारे दावेदार हैं. हालात ऐसे हैं कि ज्यादातर विधायक दिल्ली में पैरवी कर रहे हैं, जिससे शीर्ष नेतृत्व असमंजस में है. चुनाव से पहले जब हेमंत सोरेन ने मंत्रिमंडल का फेरबदल किया था, तब कांग्रेस विधायकों की अंतकर्लह खुलकर सामने आ गई थी
कांग्रेस में मंत्री पद के कई दावेदार, दिल्ली में डाला डेरा
पूर्व मंत्री दीपिका पांडे सिंह और डॉ. इरगन अंसारी, वरिष्ठ नेता ममता देवी, कुमार जयमंगल सिंह, राजेश कच्छप, भूषण बारा और नमन बिक्सल कोंगाड़ी दिल्ली में हैं और कथित तौर पर मंत्री पद के लिए कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के समक्ष अपनी दावेदारी रखा है. पूर्व मंत्री बंधु तिर्की भी अपनी बेटी शिल्पी नेहा तिर्की की पैरवी के लिए नई दिल्ली में हैं. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर भी कुछ विधायकों के साथ प्रदेश कांग्रेस प्रभारी और अन्य वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं.
पूर्व मंत्री आलमगीर आलम की पत्नी निशात आलम भी
दिल्ली पहुंच चुकी हैं. राज्य में सबसे बड़ी जीत होने के कारण उनकी दावेदारी सभी से ज्यादा मजबूत है. हालांकि, ऐसी भी खबरें हैं कि कांग्रेस विधायक दल के नेता को मंत्री नहीं बनाया जाएगा. इस पद के लिए पूर्व मंत्री रामेश्वर उरांव प्रबल दावेदारों में से हैं. अटकलें हैं कि नई सरकार के विश्वास मत जीतने के बाद अगले हफ्ते कैबिनेट का विस्तार किया जाएगा.
हेमंत के अकेले शपथ लेने के पीछे ये भी एक वजह रही
इसके अलावा हेमंत सोरेन के अकेले शपथ लेने की एक वजह यह भी हो सकती है कि वह इस बार खुद को स्पॉटलाइट में रखना चाह रहे थे. चुनाव से पहले उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा, जेल जाना पड़ा. इंडिया ब्लॉक की तरफ से झारखंड का पूरा चुनाव हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना के इर्द-गिर्द ही था. हेमंत ही राज्य में प्रचार अभियान की कमान संभाले हुए थे. वह अपनी पार्टी के साथ-साथ सहयोगी दलों के लिए भी रैलियां कर रहे थे. बीजेपी भी उन्हीं पर निशाना साध रही थी.
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हेमंत और उनकी पत्नी कल्पना ने झारखंड में 200 से ज्यादा चुनावी रैलियों को संबोधित किया. कांग्रेस के बड़े नेताओं ने कुल 10 रैलियां भी झारखंड में नहीं कीं. राजद की ओर से भी सिर्फ उन सीटों पर फोकस किया गया, जहां उसके प्रत्याशी मैदान में थे. पूरे चुनाव में मंईयां सम्मान योजना केंद्र में था, जो हेमंत सोरेन की योजना थी. यह स्कीम चुनाव में गेम चेंजर साबित हुई. शपथ ग्रहण समारोह के आमंत्रण पत्र पर भी सिर्फ हेमंत सोरेन की तस्वीर थी. इसलिए हेमंत सोरेन नहीं चाहते थे कि उनसे और उनकी पार्टी से इस जीत का क्रेडिट कोई और ले. उनके अकेले शपथ लेने के पीछे यह भी एक बड़ी वजह मानी जा रही है.