देश में मनरेगा के तहत दिए जाने वाले काम की मांग कम हो गई है. हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई. रिपोर्ट के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष (2024-25) के ज्यादातर महीनों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम की मांग कम पहले से काफी कम रही है.
इसमें बताया गया कि अब तक अप्रैल-नवंबर तक ज्यादातर महीनों में मनरेगा के तहत काम की मांग करने वाले परिवारों की कुल संख्या महामारी के बाद के सालों की तुलना में काफी कम रही. ये योजना उन परिवारों को एक साल में कम से कम 100 दिनों की गारंटीकृत मजदूरी रोजगार प्रदान करती है, जिनके अकुशल वयस्क सदस्य मैनुअल कार्य के लिए खुद से काम करने की इच्छा जाहिर करते हैं.
आरबीआई की तरफ से गौर किया गया कि नवंबर 2024 में एमजीएनआरईजीए कार्य की मांग में माह-दर-माह (एमओएम) 8.2 प्रतिशत और वर्ष-दर-वर्ष (वाईओवाई) 3.9 प्रतिशत की बढ़त हुई, जो कि रबी बुवाई की समाप्ति के कारण थी. अप्रैल से नवंबर 2024 तक की समग्र मांग महामारी के बाद के सालों की तुलना में कम रही है.
गांवों की रोजगार स्थिति में सुधार हुआ
RBI की ये रिपोर्ट ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार की स्थिति में सुधार को दर्शाता है, खासतौर पर कृषि से जुड़े क्षेत्र में ये सकारात्मक बदलाव के दौर पर देखी जा रही है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अक्टूबर 2024 में, एमजीएनआरईजीए कार्य की मांग 7.5 प्रतिशत घट गई. ये कमी खरीफ कटाई के मौसम के दौरान कृषि क्षेत्र में रोजगार में बढ़त के कारण थी. रोजगार के क्षेत्र में ये गिरावट गांवों में नौकरी बाजार में व्यापक सुधार के के कारम हुआ है.
29 नवंबर, 2024 तक, एमजीएनआरईजीए के तहत रजिस्टर्ड कुल श्रमिकों की संख्या 25.17 करोड़ थी, जो वित्त वर्ष 2023-24 में रजिस्टर्ड 25.68 करोड़ श्रमिकों से थोड़ी कम है. इस बीच, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि संगठित विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार में लगातार बढ़त हुई है. प्रोक्योरमेंट मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) से पता चलता है कि क्षेत्र में रोजगार सृजन नौ महीनों से लगातार बढ़ रहा है. सर्विस सेक्टर के रोजगार में बढ़त हुई, जो रोजगार सृजन सर्वेक्षण की शुरुआत के बाद से अपनी सबसे तेज गति से बढ़ रहा है.