अशोक भाटिया
कनाडा के ब्रैम्पटन के हिंदू सभा मंदिर के बाहर लोग जुट रहे हैं। इन लोगों के हाथों में भारत के झंडे हैं, कुछ लोगों के हाथों में भगवा झंडे भी नजर आ रहे हैं। लोग ‘जय श्री राम’ और ‘ कटेंगे तो बटेंगे के नारे ‘ के नारे लगा रहे हैं। इन लोगों में बेहद गुस्सा है। मंदिर के बाहर जुटे लोगों की भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी किये गए हैं। इस मंदिर के बाहर ही खालिस्तानियों ने हिंदू श्रद्धालुओं पर लाठियां चलाई थीं, उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था। इन घटना को लेकर भारत में भी काफी रोष नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कनाडा में मंदिर के बाहर हिंदुओं पर हुए हमले की निंदा की और इसे ‘जानबूझकर किया गया हमला’ करार दिया।
ब्रैम्पटन के हिंदू सभा मंदिर के बाहर प्रदर्शन कर रहे कुछ लोग खालिस्तान मुर्दाबाद के नारे भी लगा रहे हैं। कनाडा के इतिहास में शायद पहली बार किसी हिंदू मंदिर में इस तरह खालिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिंदुओं में इस घटना को लेकर कितना गुस्सा है, जो इस रूप में बाहर आ रहा है। इससे पहले सोमवार को भी मंदिर के बाहर सैकड़ों श्रद्धालु जुटे और ‘जय श्रीराम’ और ‘बटेंगे तो कटेंगे’ के नारे लगाए।
भारत के मोस्ट वॉन्टेड आतंकियों के सुरक्षित पनाहगाह के तौर पर उभरे कनाडा में दंगाइयों ने हिंदू मंदिरों को निशाना बना रहे है। श्रद्धालुओं पर हमले किए जा रहे हैं। भारतीय राजनयिकों पर हमले की कोशिश की है। जस्टिन ट्रूडो की सरकार भारतीय राजनयिकों की निगरानी कर रही है। उनकी जासूसी कर रही है। कनाडाई आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद ट्रूडो ने भारत पर बेतुके आरोप लगाए। तब से दोनों देशों के रिश्ते गर्त में पहुंच चुके हैं। अब हिंदू मंदिरों पर ट्रूडो सरकार के पाले गुंडों और दंगाइयों के हमले ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी है।
यहाँ पंजाब में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी सरकार पर खालिस्तानियों को अपरोक्ष रूप से सपोर्ट करने का आरोप लगते रहे हैं। पर जिस तरह पंजाब सरकार लगातार कनाडा में खालिस्तानियों को लेकर हुई घटनाओं पर आंख मूंदे हुए है वो उन आरोपों की पुष्टि कर रहे हैं जो अब तक उन पर लगता रहा है। पंजाब सरकार भारत-कनाडा विवाद पर टिप्पणी करने से इनकार करती रही है। अब भारत और कनाडा को लेकर लगातार माहौल खराब हो रहा के बावजूद पंजाब सरकार की रहस्यमय चुप्पी समझ से परे है। जबकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस सरकार ने इस तरह कभी भी कट्टरपंथियों के आगे हाथ नहीं डाले थे। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई बयान नहीं दिया है। कनाडा में निज्जर हत्याकांड के बाद वहां के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जिस तरह से अपनी राजनीति चमकाने के नाम पर लगातार भारत को टार्गेट कर रहे हैं, जिस तरह वहां हिंदुओं को बार-बार खालिस्तानी उग्रवादी टार्गेट कर रहे हैं उसके चलते एक बार फिर पंजाब अशांति की ओर जा सकता है। पिछले महीने इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर की माने तो पंजाब सरकार के कुछ मंत्रियों ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, हालांकि एक ने कहा कि पार्टी ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है।
गौरतलब है कि पिछले साल सितंबर में जब दोनों देशों के बीच संबंध पहली बार तनावपूर्ण हुए थे और कनाडाई संसद में ट्रूडो ने यह दावा किया था कि भारत का जून 2023 में सरे में हुई निज्जर की हत्या में हाथ था। तब मान को विपक्ष ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था। पर इस बीच जब मामला और गंभीर होता जा रहा है तब भी पंजाब सरकार की चुप्पी संदेहास्पद होती जा रही है। AAP सरकार की चुप्पी पर पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने इसे लेकर पार्टी पर निशाना साधा था कि पार्टी ने कनाडा विवाद पर एक शब्द भी नहीं कहा। कांग्रेस नेता सुखपाल सिंह खैरा ने मुख्यमंत्री से सवाल किया था कि मान दावा करते हैं कि वह पंजाब के 3 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं कहा, जो कनाडा में रहने वाले लाखों पंजाबी, खासकर युवाओं को प्रभावित करता है।
माना जाता है कि AAP को NRI समुदाय का समर्थन प्राप्त है। 2017 के विधानसभा चुनावों के प्रचार में बड़ी संख्या में प्रवासी समुदाय के लोगों ने पंजाब में आकर पार्टी को बैकअप दिया था। हालांकि, उस समय AAP चुनाव हार गई थी, केवल 117 में से 20 सीटें जीत पाई थी। 2022 में, AAP ने फिर से चुनाव लड़ा और 91 सीटें जीतकर सत्ता में आई, जिसमें फिर से NRI समुदाय का समर्थन मिला था।कहा गया कि AAP को समर्थन देने वालों में अधिकतर खालिस्तानियों समर्थक हैं। तो क्या इस जनसमर्थन के चलते आम आदमी पार्टी के नेता कनाडा विवाद पर कुछ भी बोल नहीं रहे हैं।
सवाल उठता है कि जब पंजाब में रही कांग्रेस सरकार और पंजाब की स्थानीय सीपीआई इकाई दोनों हमेशा से जस्टिन ट्रूडो के खिलाफ बयान देते रहे हैं तो फिर आम आदमी पार्टी इस संबंध में क्यों मुंह छिपा रही है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और अब वरिष्ठ भाजपा नेता अमरिंदर सिंह हमेशा से कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर भारत-कनाडा संबंधों को बर्बाद करने का आरोप लगाते रहे हैं। जब वो पंजाब में कांग्रेस सरकार के मुखिया तब भी उनके विचार में कोई अंतर नहीं था।
अमरिंदर सिंह कहते हैं कि ट्रूडो ने भारत और कनाडा के रिश्ते को बर्बाद कर दिया है। ट्रूडो की रुचि सिर्फ एक चीज में है और वह है अपने चुनाव में सिख वोट पाना। पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल को याद करते हुए सिंह कहते हैं कि उन्होंने उस समय के कनाडाई रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन से मिलने से इनकार कर दिया था और उन्हें खालिस्तानी समर्थक कहा था। 2018 में ट्रूडो के भारत दौरे को याद करते हुए, उन्होंने कहा, जब ट्रूडो यहां आए, तो वह मुझसे मिलना चाहते थे। मैंने कहा कि मैं उनसे मिलना नहीं चाहता। वह पंजाब आना चाहते थे। फिर भारत सरकार ने ट्रूडो से कहा कि यदि आप मुख्यमंत्री से नहीं मिलते हैं, तो आप पंजाब नहीं जा सकते हैं। तब हमें मिलना पड़ा। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) का भी अनपेक्षित सहयोगी मिला है।
कनाडा में हिंदी टाइम्स मीडिया के समूह संपादक राकेश तिवारी का कहना है, कि पूरी दुनिया में हिंदुओं की राजनीतिक ताकत कमजोर पड़ती जा रही है। भारत-विरोधी देश इसका लाभ उठाते हैं और वे भारत में अलगाववाद के समर्थक लोगों को हवा दे रहे हैं। पाकिस्तान भी भारत के टुकड़े करवाना चाहता है क्योंकि बांग्लादेश का घाव उसे आज भी टीसता है।
बताया जाता है कि ऐसे में सबकी निगाहों में सॉफ्ट टारगेट सिख समुदाय है। चूंकि भारत के बाहर सिखों की सबसे बड़ी आबादी कनाडा में है, इसलिए वहां के सिखों को बरगलाना आसान है। वहां के गुरुद्वारों में ऐसे तत्त्वों का जमावड़ा खूब है, जो लोग धार्मिक श्रद्धालुओं को और भारत के युवा सिखों को भड़काते हैं। जबकि कनाडा में भी हिंदू-सिखों में परस्पर शादी-विवाह होते हैं और दोनों समुदाय एक-दूसरे के पूजा स्थलों में जाते रहते हैं।