भारत ही नहीं नेपाल में भी हो रही है हिन्दू राष्ट्र की मांग

अशोक भाटिया

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर बागेश्वरधाम के धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री तथा कई हिंदूवादी नेता सभी इन दिनों भारत को हिन्दू राष्ट्र बनानें की बात कर रहे है । हालाकिं कभी नेपाल ही एक मात्र ऐसा देश था जो अधिकारिक रूप से हिन्दू राष्ट्र था । लेकिन 2008 में राजशाही के नेपाल को भी धर्मनिरपेक्ष बना दिया गया । एक अनुमान के मुताबिक विश्व के करीब 52 से अधिक देशों में हिन्दू रहते है जिसमे भारत , नेपाल , फिजी , सूरीनाम और मारीशस में हिन्दू बहुसंख्यक है । अब भारत के पड़ोसी देश नेपाल में पिछले कुछ समय से धार्मिक तनाव बढ़ा है। यहां भारत की सीमा से लगे एरिया में कई हिंदू संगठन सक्रिय हैं और देश को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग को लेकर अभियान चलाये जा रहे हैं। इन संगठनों में विश्व हिंदू परिषद और हिंदू स्वयं सेवक संघ बड़े नाम हैं। तराई क्षेत्र खासकर जनकपुर वाले हिस्से में इन संगठनों की सक्रियता ज्यादा नजर आ रही है और इनकी ओऱ से की गईं ऐसी कई चीजें आपको दिखेंगी जो बताती हैं कि नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित कराने के लिए यह लोग कितने सक्रिय हैं। पर बड़ा सवाल ये है कि आखिर धर्म निरपेक्ष से अचानक नेपाल ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ की तरफ क्यों बढ़ने लगा ? इसको समझने के लिए पहले नेपाल के पुराने इतिहास को समझना जरुरी है ।

ईसा से करीब 1000 साल पहले नेपाल छोटी-छोटी रियासतों और कुलों के परिसंघों में बंटा था। गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह ने 1765 में नेपाल की एकता की मुहिम शुरू की और 1768 तक इसमें सफल हो गए। यहीं से आधुनिक नेपाल का जन्म हुआ। राजवंश के पांचवे राजा राजेंद्र बिक्रम शाह के शासन काल में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल की सीमा के कुछ इलाक़ों पर क़ब्ज़ा किया। 1815 में लड़ाई छिड़ी, इसका अंत सुगौली संधि से हुआ।

1846 में राजा सुरेंद्र बिक्रम शाह के शासन काल में, जंग बहादुर राणा एक शक्तिशाली सैन्य कमांडर के रूप में उभरे। कुछ दिन बाद राजपरिवार ने उनके आगे घुटने टेक दिए और उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया गया। इसके साथ ही इस पद को वंशानुगत मान लिया गया। 1923 में ब्रिटेन ने नेपाल के साथ एक संधि की और इसकी स्वतंत्रता को स्वीकार किया। 1940 के दशक में नेपाल में लोगों ने देश में लोकतंत्र की बहाली की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। तब भारत की मदद से राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह नए शासक बने।

नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र के समय में नेपाल में राजशाही के खिलाफ व्यापक आंदोलन शुरू हुआ। सन 1959 में राजा महेंद्र बीर बिक्रम शाह ने लोकतांत्रिक प्रयोग को समाप्त कर पंचायत व्यवस्था लागू की। 1972 में राजा बीरेंद्र बिक्रम शाह ने राजकाज संभाला। 1989 में लोकतंत्र के समर्थन में जन आंदोलन शुरु हुआ और राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह को सांवैधानिक सुधार स्वीकार करने पड़े। फिर मई 1991 में पहली बहुदलीय संसद का गठन हुआ। वहीं 1996 में माओवादी आंदोलन शुरू हो गया।

एक जून 2001 को नेपाल के राजमहल में हुए सामूहिक हत्या कांड में राजा, रानी, राजकुमार और राजकुमारियां मारे गए। अब राजा के भाई ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह ने फ़रवरी 2005 में राजा ज्ञानेंद्र ने माओवादियों के हिंसक आंदोलन के दमन के लिए सत्ता अपने हाथ में ली और सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया। नेपाल में एक बार फिर जन आंदोलन शुरू हुआ और अब राजा को सत्ता जनता के हाथों में सौंपनी पड़ी और यहां संसद को बहाल करना पड़ा। 28 मई 2008 में संसद ने एक विधेयक पारित करके नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया।

हाल ही में अन्य धर्मों की आबादी बढ़ते देख हिंदू संगठन अब यहां ज्यादा सक्रिय हो गए हैं। यही नहीं हर सरकार खुले या छिपे तौर पर नेपाल को हिन्दू राष्ट्र के तौर पर देखती है। नेपाली कांग्रेस में भी इसके समर्थन वाले लोग हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में, 1,500 पार्टी प्रतिनिधियों में से लगभग आधे ने हिंदू राज्य के पक्ष में एक हस्ताक्षर अभियान चलाया। इसके अलावा नेपाल सेना के पूर्व जनरल रुकमंगुद कटावल ने 2021 में “हिंदू पहचान बहाल करने” के लिए एक हिंदू राष्ट्र स्वाभिमान जागरण अभियान शुरू किया। 20 हिंदू धार्मिक संगठनों ने मिलकर एक हिंदू राज्य की इच्छा जताई।

नेपाल में 80 फीसदी हिन्दू और 10 ईसाई हैं पर यहां पिछले कुछ साल में धर्मांतरण के मामले बढ़े हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा समय में दक्षिण कोरिया और पश्चिम बंगाल के अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन धर्मांतरण में लगे हैं। अभी नेपाल में ईसाई आबादी तेजी से बढ़ी है। नेपाल में 2021 में हुई जनगणना की रिपोर्ट से पता चलता है कि यहां मुस्लिम आबादी लगातार बढ़ रही है । नेपाल के राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, मुताबिक, नेपाल में तब 2।367 करोड़ हिन्दू, जबकि मुस्लिम 23।945 लाख हैं । प्रतिशत के हिसाब से देखें तो नेपाल में अभी 81।19% हिन्दू हैं, दूसरे नंबर पर 8।21% अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म दूसरे नंबर पर हैं। मुस्लिम आबादी में यहां तेजी से इजाफा हो रहा है और इनकी जनसंख्या का प्रतिशत 5।09% है।वहीं, 1।76% ईसाई हैं। 2011 में हिन्दुओं की जनसंख्या 81।3% थी, मतलब हिन्दुओं की जनसंख्या 0।19% कम हुई है। वहीं बौद्ध समाज जनसंख्या का 9% हिस्सा था, इस हिसाब से बौद्धों की संख्या भी 0।79% कम हुई है। वहीं 2011 में मुस्लिम आबादी 4।4% थी जो 0।69% बढ़ी है। ईसाई पहले 0।5% ही थे, जो अब 1।26% ज़्यादा हो गए हैं ।

अपने पिछले कार्यकाल के दौरान नेपाल के पीएम केपी ओली ने हिंदू राष्ट्रवादी भावना को खूब हवा दी। वह काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा करने वाले पहले कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री थे। उन्होंने मंदिर को 2. 5 मिलियन डॉलर का सरकारी धन भी दान दिया था। ओली ने प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पर आयोजित पूजा समारोह के बाद मैडी में राम की मूर्ति स्थापित की। दूसरी तरफ नेपाली कांग्रेस में भी कई ऐसे नेता हैं जो धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में नहीं हैं। नेपाली कांग्रेस प्रमुख शेर बहादुर देउबा ही जब भारत आए थे तो यहां उन्होंने वाराणसी का दौरा किया, जो एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल है। इसी तरह वर्तमान प्रधान मंत्री पुष्प कमल दहल ने अपनी भारत यात्रा के दौरान उज्जैन के एक मंदिर में पूजा-अर्चना की। इसके अलावा नेपाल सेना के पूर्व जनरल रुकमंगुद कटावल ने 2021 में “हिंदू पहचान बहाल करने” के लिए एक हिंदू राष्ट्र स्वाभिमान जागरण अभियान शुरू किया। लगभग उसी समय, अन्य 20 हिंदू धार्मिक संगठन ने एक हिंदू राज्य के रूप में नेपाल की स्थिति को बहाल करने के लिए देवघाट में एक संयुक्त मोर्चा बनाया। भारत में हिन्दूत्व कार्ड लगभग सभी पार्टियों द्वारा खेला जाना और फायदा मिलना भी एक कारण है कि नेपाल का हर नेता इस कॉनसेप्ट में विश्वास रखता है।

इस बार जो अशांति का माहौल है और उसके लिए चीन की दखलअंदाजी को जिम्मेदार माना जा रहा है, जिसने पहले भी किसी सरकार को हिमालयी देश में स्थिर होने की इजाजत नहीं दी है और लगातार अड़चनें पैदा की हैं। इस सप्ताह की शुरुआत में, नेपाल में दंगा-रोधी पुलिस ने नेपाल के पूर्व राजा के हजारों समर्थकों को रोकने के लिए लाठियों और आंसू गैस का इस्तेमाल किया, जिन्होंने राजशाही की बहाली और देश की हिंदू राज्य की पूर्व स्थिति की मांग के लिए राजधानी के केंद्र तक मार्च करने का प्रयास किया था। प्रदर्शनकारी, राष्ट्रीय ध्वज लहराते हुए और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के समर्थन में नारे लगाते हुए, काठमांडू में एकत्र हुए और शहर के केंद्र की ओर बढ़ने का प्रयास किया। हालांकि, दंगा-रोधी पुलिस ने उन्हें रोक दिया और बांस के डंडों से पीटने के साथ ही आंसू गैस और पानी की बौछार की, जिसमें दोनों पक्षों को मामूली चोटें आईं।

समाचारों के अनुसार यह अशांति नेपाल में लगातार चीनी हस्तक्षेप के कारण ही है। उन्होंने एक भी सरकार को टिकने नहीं दिया। नेपाल के लोग बेचैन हैं क्योंकि यह चारों तरफ से दूसरे देशों की जमीन से घिरा देश है और बाकी दुनिया पर निर्भर है। स्थानीय जनता राजनीतिक दलों और राजनेताओं के भ्रष्ट आचरण के कारण पीड़ित हैं। अब वे चीन जाने को जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं जो उनकी संस्कृति में फिट नहीं है। वहां की सरकार ने हवाई अड्डे और राजमार्ग चीन को बेच दिए गए हैं। स्थानीय जनता चाहती है कि नेपाल एक आदेश और नियंत्रण यानी उनके राजा के अधीन चले। वे एक हिंदू राज्य चाहते हैं, न कि ऐसा राज्य जो उपनिवेश के रूप में चीन के निकट हो।

बताया जाता है कि इस मुद्दे पर नेपाली जनता भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी सहयोग की उम्मीद लगाए बैठी है। और तो और बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के नेतृत्व में चल रही सनातन हिंदू एकता पदयात्रा पड़ोसी देश नेपाल से बड़ी संख्या में लोग हिस्सा लेने आए हैं। नेपाल से लगभग 2 हजार लोग इस यात्रा में शामिल हुए हैं। यात्रा में हिस्सा लेने वाले लोग जनकपुर धाम के साथ ही काठमांडू, लुंबिनी जैसे जगहों से भी आए हैं। यह सभी श्रद्धालु बागेश्वर धाम से ओरछा धाम तक पदयात्रा में चल रहे हैं। इन नेपाली लोगों का यात्रा में भाग लेने का मकसद नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने के साथ भारत को भी हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखना चाहते है । नेपाल से आए एक श्रद्धालु के अनुसार सभी लोगों की बागेश्वर धाम में आस्था हैं। हम सभी हनुमान जी, माता सीता के अनन्य भक्त हैं। बागेश्वर धाम में लोगों की बहुत श्रद्धा है। सभी लोग यात्रा में पूरे उत्साह से हिस्सा ले रहे हैं। हम सब नेपाली टोपी पहनकर अपनी पहचान बता रहे हैं। अंतिम दिन तक हम सब इस यात्रा में हिस्सा लेंगे।

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