अयोध्या। श्रीराम जन्मोत्सव पर जन्मभूमि पर बने भव्य, नव्य और दिव्य मंदिर में प्राकट्य आरती पूरी होते-होते रामलला के प्राकट्य का बोध गर्भगृह से लेकर करोड़ों भक्तों के हृदय तक व्याप्त होता प्रतीत हुआ।
आरती के बाद अर्चकों ने जब भए प्रकट कृपाला दीनदयाला… की स्तुति आरंभ की, तब वह अकेले नहीं थे, बल्कि उनके साथ संपूर्ण मंडप और संपूर्ण विश्व में करोड़ों भक्तों की आस्था और उनके समर्पण का स्वर भी समवेत था।
इस अवसर पर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास, ट्रस्ट के महासचिव चंपतराय, सदस्य डा.अनिल मिश्र, हनुमानगढ़ी के महंत धर्मदास, मंदिर निर्माण के प्रभारी गोपाल सहित सूर्य रश्मियों का प्रवाह रामलला के ललाट तक पहुंचना सुनिश्चित कराने वाले सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट एवं आइआइटी रुड़की तथा बेंगलुरु के वैज्ञानिक आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
रामजन्मभूमि पर निर्मित भव्य मंदिर के साथ रामनगरी के अन्य हजारों मंदिर भी राम जन्मोत्सव के वाहक रहे। कनकभवन, दशरथमहल, मणिरामदास जी की छावनी, रामवल्लभाकुंज, लक्ष्मणकिला, जानकीघाट, हरिधाम, अशर्फीभवन, जानकी महल सहित अन्यान्य मंदिरों में भी पूरे विधि-विधान से श्रीराम जन्मोत्सव मनाया गया।
हरिधाम में प्राकट्य आरती के बाद भक्तों को संबोधित करते हुए जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य ने कहा कि हमारे जीवन के केंद्र में जो सत्ता है, वे श्रीराम ही हैं।
रामनवमी पर श्रीराम का पितृ पुरुष से सरोकार नए सिरे से हुआ परिभाषित
श्रीराम का सूर्य देव से गहन संबंध है, वह उसी वंश के हैं जिसका प्रवर्तन सूर्य देव ने किया था। बुधवार को जन्मोत्सव के अवसर पर श्रीराम का अपने पितृ पुरुष से सरोकार नए सिरे से परिभाषित हुआ, जब दृश्यमान देवता दिवाकर की किरणें मध्याह्न रामलला के ललाट पर सुशोभित हुईं। टकटकी लगाए लाखों नयन प्रसन्नता से छलक उठे। रोम-रोम पुलकित हो उठा।
करोड़ों राम भक्तों की आंखें इस अद्भुत, अलौकिक और अविस्मरणीय पल को सहेजने में लगी थीं। पहले माना जा रहा था कि मंदिर के तीनों तलों का निर्माण होने के बाद ही रामलला का सूर्य तिलक संभव होगा, किंतु नेशनल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के अभियंताओं के प्रयास से ‘शुभस्य शीघ्रम’ की भावना फलीभूत हुई और भूतल में विराजे रामलला का सूर्य तिलक बुधवार को ही संभव हुआ।
इस दृश्य को देखकर श्रद्धालु बच्चों की तरह किलक उठे। बाल, वृद्ध, नारी सब एक ही भाव में थे। वैसे प्रातः मंगला आरती से ही उत्सव का वातावरण था। रामलला को मंगल स्नान करा कर विशेष रूप से तैयार किए गए नए उत्सव वस्त्र धारण कराए गए।
रामलला को छप्पन भोग लगाया गया। इन पकवानों को कारसेवकपुरम में ही शुद्धता के साथ तैयार कराया गया था। बाहर आते श्रद्धालुओं को धनिया की पंजीरी समेत अन्य प्रसाद भेंट किया गया।
सीबीआरआइ का अमूल्य योगदान
सूर्य तिलक को तैयार करने में रुड़की के केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआइ) के वैज्ञानियों का अमूल्य योगदान दिया। सीबीआरआइ के निदेशक प्रोफेसर आर. प्रदीप कुमार के अनुसार इसमें 10 से 12 लोगों की टीम लगी थी, जिनकी मेहनत रंग लाई।
आस्था संग सेवा सत्कार का संकीर्तन
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद नव्य मंदिर में उनका पहला जन्मोत्सव पूरी भव्यता के साथ मना। लाखों भक्त साक्षी बने। आराध्य का आशीर्वाद लिया। इस दौरान नगरी की शोभा निराली दिखी। रेड कार्पेट से सज्जित रामपथ पर नंगे पांव चल कर भक्त रामलला का दर्शन करते रहे। कार्पेट भक्तों के पांवों को धूप की तपिश से बचाने के लिए पथों पर बिछाई गयी थी।