केवल संभल ही नहीं देश के कई शहरों में कट्टरपंथी मुस्लिमों निशाने पर है हिन्दू

अशोक भाटिया

गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के बादहिन्दुओं का उत्पीडन हिन्दुओं के शोषण, जबरन धर्मपरिवर्तन, सामूहिक नरसहांर, गुलाम बनाने तथा उनके धर्मस्थलों, शिक्षणस्थलों के विनाश के सन्दर्भ में है। मुख्यतः भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा मलेशिया आदि देशों में हिन्दुओं को उत्पीडन से गुजरना पड़ा था। आज भी आजाद हिंदुस्तान के कुछ हिस्सो में ये स्थिति देखने में आ रही है।

आज भी हर साल कट्टरपंथियों द्वारा हिंदुओं के त्यौहारों, शोभायात्रा पर अकारण पथराव, मूर्ति विसर्जन के दौरान हिंदुओं को धमकाने, उन पर हमला करने, कावड़ियों पर पत्थरबाजी, आगजनी और मासूमों की हत्या की खबरें सामने आती रहती हैं। यही कारण है कि हिंदू न चाहते हुए भी अपने पूर्वजों की विरासत और अपने पुश्तैनी घरों को छोड़कर पलायन कर रहे हैं। खास बात यह है कि हिंदुओं के मसले पर सेकुलर चुप्पी साध लेते हैं। अवार्ड वापसी गैंग में भी कोई सुगबुगाहट नहीं होती है। मुस्लिम समाज का नेतृत्व करने वाले भी इन कट्टरपंथियों पर चुप हो जाते हैं। मोहब्बत की दुकान लगाने वाले ऐसी घटनाओं पर अपनी दुकान का शटर गिरा देते हैं। इस साल कितनी ही शोभायात्राओं पर हमले हुए, कितने हिंदू परिवारों ने पलायन के पोस्टर लगाएं, लेकिन खामोशी की चादर ओढ़े ये लोग कुछ नहीं बोले। अज़ब विडम्बना है कि भारत में रहने वाले हिंदू इन कट्टरपंथी मुस्लिमों के भय से अपने ही घरों के बाहर पलायन के पोस्टर लगाने को मजबूर हैं। वे अपने ही देश में डर के साये में जी रहे हैं। हिंदुओं के छोटे से छोटे धार्मिक आयोजन भी बिना पुलिस की सुरक्षा के पूर्ण नहीं हो पाते हैं। हिन्दुओं की आस्था को ठेस पहुंचाना, देवी-देवताओं को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अपमानित करना, मूर्तियों को लात मारना, उन्हें खंडित करना इन कट्टरपंथियों का शौक बन गया है।

ताजा मामला हरियाणा के फरीदाबाद का है। सुभाष कॉलोनी में एक हिंदू परिवार ने अपने घर के बाहर “यह मकान बिकाऊ है” का पोस्टर लगा दिया है। हिंदू परिवार का आरोप है कि दिवाली पर उनके बच्चे के पटाखे जलाने पर कट्टरपंथी मुस्लिमों ने उन पर हमला कर दिया। उन्होंने पीड़ित परिवार के घर पर ईंट-पत्थर बरसाए और मुख्य दरवाजे को तोड़ दिया। घर की बहन बेटियों से छेड़छाड़ की, उनके कपड़े फाड़ दिए। घर की महिलाओं पर डंडों से हमला भी किया। आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने की वजह से अब वह अपना मकान बेचकर पलायन करने को मजबूर हैं, जिसके चलते हिंदू परिवार के लोगों ने घर के बाहर पोस्टर भी लगा दिया है। पीड़ित परिवार ने पुलिस पर मामले की अनसुनी करने का भी आरोप लगाया है।

इस साल मई में उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में हिंदू समाज के लोगों ने अपने घर के बाहर पलायन के पोस्टर लगाए थे। ये पोस्टर स्वार इलाके के घोसी पूरा पट्टी गांव में हिंदुओं के घरों के बाहर लगाए गए थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह मुस्लिम बाहुल्य गांव है। गांव के ही दिनेश कुमार ने पास में रहने वाले मुस्लिम पर आरोप लगाया था कि किसी बात को लेकर कहासुनी होने पर रिजवान ने उसके घर में घुसकर उससे मारपीट की। पुलिस स्टेशन में शिकायत करने के बाद भी आरोपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग को लेकर हिंदू समाज के लोगों ने अपने घरों के बाहर पलायन के पोस्टर लगाए थे। हिंदुओं ने इस मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मदद की गुहार लगाई थी।

इस साल जून में राजस्थान की राजधानी जयपुर से भी हिंदुओं के पलायन की खबर सामने आई थी। यहां शास्त्री नगर में शिवाजी नगर के हिंदुओं ने अपने घरों के बाहर पलायन के पोस्टर लगाए थे। उन्होंने आरोप लगाया था कि वहां रहने वाले कट्टरपंथी मुस्लिम उन्हें परेशान करते हैं। वे मुस्लिम समुदाय की ज्यादतियों से परेशान हो गए हैं। इसलिए हिंदू कॉलोनी छोड़कर जा रहे हैं। उन्होंने सरकार से मांग की थी कि वह यहां गैर हिंदूओं को घर खरीदने से रोकें। हिंदुओं ने पलायन के पोस्टर में लिखा था कि सनातनियों से अपील, पलायन रोकें। सभी सनातनी भाई बहनों से निवेदन है कि अपना मकान गैर हिन्दू को न बेचें। उनकी बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। हिंदुओं ने यह भी आरोप लगाया था कि उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। वे पहले भी शिकायत कर चुके हैं। इस इलाके में खौफ का माहौल है। पुलिस से उचित कार्रवाई और सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराने की विनती करते हैं।

बिजनौर में भी इस साल ही मकान बिकाऊ है के पोस्टर लगे। घटना अगस्त की है। मुस्लिम युवक ने हिंदू युवती को इंस्टाग्राम पर अश्लील मैसेज भेजे। वह कई दिनों से लड़की को प्रताड़ित कर रहा था। लड़की ने परिजनों को बताया। पीड़ित लड़की के परिवार ने इस उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई। इस पर आरोपी ने करीब 300 लोगों की भीड़ इकट्ठा कर ली। भीड़ ने साम्प्रदायिक नारे लगाए और धमकी दी कि यहां बांग्लादेश बना देंगे। इससे डर का माहौल बना। इलाके के कई परिवारों ने अपने घरों की दीवारों पर “यह मकान बिकाऊ है” लिखवाया। बिजनौर पुलिस ने मामला दर्ज किया। पुलिस ने प्रभावित परिवारों से बात कर उनके घरों से “यह मकान बिकाऊ है” लिखे संदेश को भी मिटवाया।

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई कई सालों से बारूद के ढेर पर बैठी है। वास्तव में 1992 और 2012 के बीच तुलना करें तो पता चलता है कि वहां पिछले दो दशकों में हालात बहुत ज्यादा नहीं बदले हैं। दिसंबर 1992 में भीड़ के आक्रोश की पहली लहर काफी हद तक इस बार आजाद मैदान में हुई हिंसा जैसी ही थी। यदि इस बार असम की हिंसा ट्रिगर प्वाइंट बनी, तो 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के चलते हिंसा भड़क गई। दोनों ही प्रकरणों में मुस्लिमों का पुलिस के साथ टकराव हुआ, जहां पर खाकी वर्दीधारियों को पक्षपाती सरकारी मशीनरी के नुमाइंदों की तरह देखा गया। हालांकि इस बार पुलिस के साथ-साथ मीडिया को भी नुकसान झेलना पड़ा। 1992-93 की हिंसा के जवाब में शिवसेना की अगुआई में उग्र प्रतिक्रिया दी गई, जिसने शहर को सांप्रदायिक आधार पर दोफाड़ कर दिया। शुक्र है इस बार पुलिस ने सराहनीय ढंग से संयम दिखाया, जिससे स्थिति विस्फोटक होने से बच गई। 1992-93 में मुस्लिम समूहों द्वारा किए गए शुरुआती विरोध प्रदर्शन एक तरह से स्वस्फूर्त थे, जबकि 2012 में यह काम कहीं ज्यादा संगठित ढंग से किया गया। यह ज्यादा खतरनाक है। वहां पर अब कट्टरपंथी धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों और उनके राजनीतिक रहनुमाओं के साथ-साथ अपराधी-आतंकी माफियाओं का घातक मेल तैयार हो गया है, जो सुरक्षा एजेंसियों के लिए कहीं ज्यादा चिंता की बात है। 1992-93 की हिंसा में अंडरवर्ल्ड ने नापाक भूमिका निभाई थी। आज २क् साल बाद इस्लामिक आतंकी संगठनों के साथ वहां कहीं ज्यादा घातक हथियार आ चुके हैंऔर कट्टरपंथी मुस्लिम समूह अब ज्यादा संगठित हैं ।

यह भी विडम्बना है कि मुंबई में वोट बैंक की राजनीति के चलते राजनीतिक दबदबा रखने वाले किसी भी अल्पसंख्यक नेता को हिंसा भड़काने का आरोपी नहीं बनाया जाता। आजाद मैदान की हिंसा के बाद मुट्ठीभर लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन इसके मास्टरमाइंड लोगों को बचाया जाता रहा इसी का नतीजा है कि सांप्रदायिक विभाजन की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है और शहर का धीरे-धीरे ‘ध्रुवीकरण’ हो रहा है। मीना मेनन की शोधपरक किताब ‘रॉयट्स एंड आफ्टर इन मुंबई’ में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र है जो बताती हैं कि 1992-93 के दंगों के बाद किस तरह बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और लोग मिश्रित आबादी वाले इलाकों से निकलकर सुरक्षा की तलाश में दूसरी जगह चले गए। मुंबई में हमेशा से पृथक हिंदू व मुस्लिम इलाके रहे हैं, लेकिन अब इनकी सीमारेखाएं ज्यादा पुख्ता हो गई हैं और ध्रुवीकरण भी कहीं अधिक अपरिहार्य हो गया है। यहां तक कि झुग्गी-बस्तियों में, जहां कभी आर्थिक बंधनों ने धार्मिक वैमनस्य को कमजोर कर दिया था, वहां पर भी अब अदृश्य ‘सीमाएं’ नजर आने लगी हैं। एक लिहाज से आजाद मैदान की हिंसा महाराष्ट्र की तंद्रा तोड़ने के लिए एक और चेतावनी की घंटी रही है ।अब तो देश के हर प्रदेश को चेतने की व संभलने की जरुरत है क्युकि यह आग कुछ प्रदेशों में नहीं देश के हर शहर में फ़ैल रही है ।

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