बेंगलुरु। पिछले साल चंद्रयान- 3 मिशन की सफलता के साथ चंद्रमा पर विजय पताका लहराने के बाद भारत ने नए साल के पहले सप्ताह में ही सूर्य मिशन के तहत आदित्य को एल1 (लैग्रेंज प्वाइंट) के पास की अंडाकार कक्षा (हालो आर्बिट) में स्थापित कर दिया। इस उपलब्धि के साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपने स्वर्णिम इतिहास में सफलता का एक और अध्याय जोड़ दिया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आदित्य के गंतव्य तक पहुंचने की शनिवार को घोषणा की। सूर्य की कुंडली खंगालने के लिए 126 दिनों में 15 लाख किमी का सफर तय करके आदित्य शनिवार शाम चार बजे अपने गंतव्य एल1 पर पहुंचा, जहां इसे अंडाकार हालो आर्बिट में स्थापित कर दिया गया। यह कक्षा एल1 प्वाइंट के चारों ओर घूमती है जिसका आकार छह लाख गुणा एक लाख किलोमीटर है।
आदित्य को हालो आर्बिट में स्थापित कर विज्ञानियों ने बेहद जटिल काम को सफलतापूर्वक पूरा किया है। आदित्य एल1 प्वाइंट से ही बिना किसी रुकावट सूर्य की गतिविधियों पर नजर रखेगा और इसके अनसुलझे रहस्यों का पता लगाएगा। यह भारत का पहला सौर मिशन है। भारत से पहले यूरोप, अमेरिका, जापान और चीन की अंतरिक्ष एजेंसियां ऐसे मिशन लांच कर चुकी हैं।
एल1 अंतरिक्ष में स्थित वह स्थान है, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल समान होता है। इसका उपयोग अंतरिक्षयान द्वारा ईंधन की खपत को कम करने के लिए किया जाता है। इसका नामकरण इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ-लुइस लैग्रेंज के नाम पर किया गया है। सोलर-अर्थ सिस्टम में पांच लैग्रेंज प्वाइंट्स हैं। आदित्य एल1 के पास गया है। सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य में सात पेलोड लगे हैं। मिशन के तहत सौर वायुमंडल (क्रोमोस्फेयर, फोटोस्फेयर और कोरोना) का अध्ययन करेगा। सूर्य के अध्ययन से अन्य तारों के बारे में भी जानकारी मिल सकेगी। एल1 की पृथ्वी से दूरी पृथ्वी और सूर्य के बीच की कुल दूरी का लगभग एक प्रतिशत है।
एल-1 के पास यह होगा लाभ
इसरो ने कहा कि एल-1 बिंदु के आसपास कक्षा में रखे गए सेटेलाइट से सूर्य को बिना किसी छाया/ग्रहण के लगातार देखा जा सकेगा। इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को देखा जा सकेगा। एल-1 का उपयोग करते हुए चार पेलोड सीधे सूर्य की ओर होंगे। शेष तीन पेलोड एल-1 पर ही क्षेत्रों का अध्ययन करेंगे।
पूरी दुनिया के लिए है आदित्य-एल1
इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा कि आदित्य-एल1 सिर्फ भारत का नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए है। सोमनाथ ने कहा सूर्य को समझना दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, आदित्य-एल1 हालो आर्बिट की ओर बढ़ रहा था, लेकिन हमें इसे सही जगह पर स्थापित करने के लिए इसे 31 मीटर प्रति सेकंड का वेग देना पड़ा। इस प्रक्रिया के दौरान थोड़े समय के लिए नियंत्रण इंजनों से फायरिंग की गई।
उन्होंने कहा, इसरो विज्ञानियों ने जो हासिल किया है वह हमारे माप और वेग की आवश्यकता की बहुत सही भविष्यवाणी पर आधारित सटीक प्लेसमेंट है। इसरो प्रमुख ने कहा कि उनकी टीम अगले कुछ घंटों तक इस पर नजर रखेगी ताकि यह न भटके। अगर यह थोड़ा भी भटकता है, तो हमें थोड़ा सुधार करना पड़ सकता है।
आदित्य का एल1 तक का सफर
पिछले साल दो सितंबर को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-सी57) ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ”आदित्य” के साथ उड़ान भरी थी। पीएसएलवी ने 63 मिनट और 20 सेकंड की उड़ान अवधि के बाद इसे 235 X 19,500 किमी की कक्षा में स्थापित कर दिया था। इसके बाद चरणबद्ध तरीके से कक्षा बदलते हुए ”आदित्य” को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर पहुंचाया गया। इसके बाद क्रूज चरण शुरू हुआ।
नासा ने भारत की अंतरिक्ष यात्रा को सराहा
एएनआइ के अनुसार आदित्य को सफलतापूर्वक हालो आर्बिट में स्थापित करने के बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के विज्ञानी ने इसरो की सराहना करते हुए इसे उल्लेखनीय अंतरिक्ष यात्रा करार दिया। नासा के विज्ञानी अमिताभ घोष ने कहा, भारत अब अधिकांश अंतरिक्ष क्षेत्रों में है। इस मिशन के बाद ‘गगनयान’ की भी तैयारियां हो रही हैं। पिछले 20 वर्षों में उल्लेखनीय कामयाबी हासिल की है। आदित्य- एल1 की सफलता के बाद कहा जा सकता है कि यह बेहद रोमांचक और उल्लेखनीय सफर रहा है।