नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और एएसआई को इस बात के लिए फटकार लगाई कि उन्होंने वो दस्तावेज दाखिल नहीं किया, जिसमें मुगलकालीन जामा मस्जिद को तत्कालीन प्रधानमंत्री के शासन के दौरान संरक्षित इमारत करार देने से इनकार कर दिया गया था। जस्टिस प्रतिभा सिंह की अध्यक्षता वाली बेंच ने एएसआई डायरेक्टर को निर्देश दिया कि वो इस मामले का खुद परिवीक्षण करें और केंद्र सरकार के वकील अनिल सोनी और मनीष मोहन के साथ बैठक कर विस्तृत हलफनामा दाखिल करें। मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर में होगी।
हाई कोर्ट ने कहा कि हमने पिछली सुनवाई में ही वह दस्तावेज दाखिल करने का निर्देश दिया था लेकिन कुछ खुली शीट और दस्तावेज दाखिल किए गए, जबकि मस्जिद के स्मारक होने संबंधी दस्तावेज दाखिल नहीं किए गए। 28 अगस्त को कोर्ट ने कहा था कि ये एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है और जो केंद्र के सुरक्षित कब्जे में होना चाहिए। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट को ये बताया गया था कि अधिकारी वह फाइल तलाशने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वो गुम हो गई है। इस पर कोर्ट ने कहा था कि ये गंभीर मसला है। अगर ये फाइल गुम होती है तो कोर्ट संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करेगी। हाई कोर्ट ने कहा था कि कोर्ट ने 27 फरवरी, 2018 को भी कहा था कि वो वह फाइल खोजकर प्रस्तुत करे, जिसमें कहा गया था कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित नहीं किया जाएगा।
दरअसल, हाई कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें मांग की गई है कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित किया जाए और उसके आसपास अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया जाए। यह याचिका मार्च, 2018 में सुहैल अहमद खान ने दायर की थी। सुनवाई के दौरान एएसआई की ओर से कहा गया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शाही इमाम को आश्वस्त किया था कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित नहीं किया जाएगा। एएसआई ने कहा था कि जामा मस्जिद केंद्र सरकार की ओर से संरक्षित इमारत नहीं है, इसलिए वो एएसआई के अधिकार क्षेत्र के तहत नहीं आता है। एएसआई ने हाई कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि 2004 में जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित करने का मामला उठा था। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 20 अक्टूबर, 2004 को शाही इमाम को लिखे अपने पत्र में कहा था कि जामा मस्जिद को केंद्र सरकार संरक्षित इमारत घोषित नहीं करेगी।