ट्रेनी IAS पूजा खेड़कर की अग्रिम जमानत याचिका पर हुई सुनवाई

नई दिल्ली। दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में बुधवार को विवादित प्रशिक्षु आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। फिलहाल कोर्ट ने शाम चार बजे तक के लिए आदेश को सुरक्षित रख लिया है।

पूजा खेडकर की तरफ से अग्रिम जमानत की मांग की गई है। पूजा की ओर‌ से पेश अधिवक्ता ने कहा कि मामले में यूपीएससी की शिकायत में जालसाजी और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है। वर्तमान में परिवीक्षाधीन अधिकारी नियमों के तहत खेड़कर के पास कुछ अधिकार हैं।

यूपीएससी की शिकायत में झूठा दावा किया गया है कि उसने अपना नाम बदलकर अनुमेय सीमा से अधिक परीक्षा दी। उन्होंने उसके खिलाफ कई शिकायतों का दावा किया, लेकिन खेडकर ने जानकारी नहीं छिपाई, उसने बस अपने प्रयासों की संख्या गलत बताई।

अधिवक्ता ने कहा कि उनके मुवक्किल के अभ्यावेदन की समीक्षा के बाद ही जुर्माना लगाया जा सकता है। कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन उचित प्रक्रिया का पालन करना होगा। अधिवक्ता ने कहा कि उनकी मुवक्किल को 18 जुलाई को कारण बताओ नोटिस मिला है।

अगले ही दिन प्राथमिकी दर्ज करा दी ग‌ई। अधिवक्ता ने दलील‌ दी कि दिल्ली पुलिस उनकी मुवक्किल से हिरासत में लेकर पूछताछ करना‌ चाहती है। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उनकी मुवक्किल को अपना बचाव करने का पर्याप्त अवसर दिया जाना चाहिए।

उन्होंने ये कार्यवाही इस तरह क्यों शुरू की? क्यों कई अधिकारियों द्वारा बुलाया गया। आईएएस अकादमी मसूरी ने बुलाया, पुणे कमिश्नर ने बुलाया है। डीओपीटी ने भी नोटिस दिया है।

उनकी मुवक्किल को इन सभी मंचों के समक्ष अपना बचाव करने के लिए अग्रिम जमानत की आवश्यकता है। केस दर्ज होने के बाद से ही मीडिया उनकी मुवक्किल के खिलाफ हल्ला बोल रहा है।

अधिवक्ता ने कहा‌ कि उनकी मुवक्किल ने यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई है और इसीलिए उनके खिलाफ यह सब किया जा रहा है। आप कह रहे हैं कि यूपीएससी ने आपके खिलाफ तीन अतिरिक्त प्रयासों के लिए शिकायत दर्ज की है।

कोर्ट: आप कह रहे हैं कि आपको हाई कोर्ट द्वारा ऐसा करने की अनुमति दी गई थी। अब मुझे हाई कोर्ट के आदेश दिखाएं।

कोर्ट: मैडम, आपने होमवर्क नहीं किया है।

अधिवक्ता: बिल्कुल किया है।

माधवन: मुझे हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश के जरिए अनुमति दी थी।

v कोर्ट द्वारा कोई निर्णय नहीं दिया गया कि वह अतिरिक्त परीक्षाओं में बैठने के लिए पात्र है।

पूजा की अधिवक्ता ने मुख्य सचिव को अपनी शिकायतों का हवाला दिया। ये महिला एक फाइटर है। अपनी उम्मीदवारी को मान्य कराने के लिए उन्हें हर स्तर पर संघर्ष करना पड़ा। दिव्यांग व्यक्ति के लिए जीवन आसान नहीं है।

उसने यह नहीं बताया होगा कि वह 10 प्रयास कर चुकी है। यदि वह फॉर्म पर 12 प्रयास लिखती तो उसकी उम्मीदवारी सीधे खारिज कर दी जाती। उसने अपना नाम बदल लिया। इस देश में कोई भी अपना नाम बदल सकता है। लेकिन यह वैध तरीके से किया गया है।

उन्होंने कहा कि उनकी मुवक्किल को सीएसई नियमों के तहत अपना बचाव करने का अवसर दिया जाना चाहिए। हर रोज यूपीएससी का मीडिया इंटरव्यू हो रहा है। हममें से कोई भी मीडिया के पास नहीं गया। यह सब उस कलेक्टर के इशारे पर हो रहा है जिसके खिलाफ पूजा ने यौन उत्पीड़न की शिकायत की है।

उस व्यक्ति ने उसे एक निजी कमरे में आकर बैठने के लिए कहा। पूजा‌ ने उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। अधिवक्ता ने कहा कि पूजा के माता-पिता तलाकशुदा हैं। वह खुद एक दिव्यांग व्यक्ति है और उसे उसी सिस्टम द्वारा अक्षम कर दिया गया है जिसे उसकी रक्षा करनी थी।

अधिवक्ता ने पूछा कि यूपीएससी उनके खिलाफ ये सब क्यों कर रही है? क्योंकि वह एक महिला है? क्योंकि वह दिव्यांग है।

दिल्ली पुलिस की ओर से पेश विशेष लोक अभियोजक अतुल श्रीवास्तव ने दलील दी कि अपनी सभी याचिकाओं में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया है कि उसके पास इतने प्रयास हुए हैं।

अतुल श्रीवास्तव: वर्ष 2018 तक उनके आवेदनों में नाम देखें। उन्होंने खामियों का फायदा उठाया और अपना नाम बदल लिया। जानबूझकर उसने यूपीएससी को धोखा देने के लिए अपना नाम बदला है।

अतुल श्रीवास्तव: कानून का सुनहरा सिद्धांत यह है कि अगर कोई व्यक्ति साफ हाथों से अदालत में नहीं आता है तो वह किसी भी राहत का हकदार नहीं है। क्या यह तथ्यों को गंभीर रूप से छिपाना नहीं है?

कोर्ट: यूपीएससी क्या कर रहा था? यह असंभव है। हर कोई जानता है कि प्रीलिम्स में शामिल हुए बिना कोई व्यक्ति मुख्य परीक्षा में शामिल नहीं हो सकता।

अतुल श्रीवास्तव ने तर्क दिया कि खेड़कर के अधिवक्ता ने जिस फैसले का हवाला दिया था, उसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

अभियोजन शुरू करने का मतलब आरोप पत्र दाखिल करना है। केवल शिकायत दर्ज करना मामले का गठन नहीं है।

कोर्ट: क्या आप कह रहे हैं कि जब तक यूपीएससी जांच नहीं कर लेती, तब तक आरोपपत्र दाखिल नहीं किया जा सकता?

आप जांच पूरी होने का इंतजार करेंगे?

अतुल श्रीवास्तव: नहीं सर,‌मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं।

कोर्ट: आपका मामला क्या है?

अतुल श्रीवास्तव: मामला यह है कि उसने जानकारी छिपाई जिससे वह परीक्षा में बैठने से वंचित हो जाती है।

कोर्ट: आपको हिरासत में पूछताछ के लिए उसकी आवश्यकता क्यों है?

अतुल श्रीवास्तव: पहले मानसिक बीमारी को आधार बनाया गया, फिर मल्टीपल डिसेबिलिटी कहने लगीं।

कोर्ट: उसके खिलाफ आपका मामला क्या है?

अतुल श्रीवास्तव: वह बार-बार अपना रुख बदल रही है और इसलिए हमें हिरासत में पूछताछ की जरूरत है।

कोर्ट: क्या आपका मामला झूठे मेडिकल सर्टिफिकेट का है?

श्रीवास्तव: नहीं।

कोर्ट: फिर? इसे दिखाने से क्या फायदा?

अतुल श्रीवास्तव: उसने अपना रुख बदल लिया है।

कोर्ट: हां, लेकिन हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता क्यों है?

अतुल श्रीवास्तव: पहले उन्होंने मानसिक बीमारी बोला, फिर अलग-अलग चीज जोड़ कर दी। उसकी रैंक 1800 या कुछ और रही होगी, लेकिन इन गलतियों के कारण उसे चुना गया।

अतुल श्रीवास्तव: जांच बहुत शुरुआती चरण में हैं। हमें उससे हिरासत में पूछताछ की जरूरत है।

कोर्ट: अगर आपकी जांच इतनी प्रारंभिक अवस्था में है, तो आप उसे गिरफ्तार करने की इतनी जल्दी में क्यों हैं?

अतुल श्रीवास्तव: अगर उन्हें अग्रिम जमानत मिलती है तो वह सहयोग नहीं करेंगी।

कोर्ट: पहले ये तो समझाइए क्या ऐसा होने देना यूपीएससी की विफलता है या आवेदक की विशेषज्ञता? क्या आप कह रहे हैं कि यूपीएससी परीक्षा आयोजित कर रहा है और इस शर्त के साथ सिफारिशें भेज रहा है कि उम्मीदवारों का सत्यापन नहीं किया गया है?

यूपीएससी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नरेश कौशिक ने दलील दी कि हम कोई जांच एजेंसी नहीं हैं।

कौशिक: माता-पिता का नाम बदलने की हकदार नहीं है लेकिन उसने ऐसा भी किया। उसने अपने पिता का नाम और अपनी मां का नाम बदल दिया।

कौशिक: यह परीक्षा प्रणाली और आम जनता को धोखा देने की साजिश है। सिस्टम को धोखा देने वाले इस प्रकार के व्यक्तियों से बहुत गंभीरता से निपटा जाना चाहिए। इस मामले में अग्रिम जमानत की जरूरत नहीं है।

प्रथम दृष्टया दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध हैं। लेकिन यह कहने के लिए कि क्योंकि ये दस्तावेज वहां हैं, आपको पूछताछ करने की जरूरत नहीं है।

कहा कि इस व्यक्ति ने कानून और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है। उसके द्वारा कानून का दुरुपयोग करने की संभावना अभी भी बनी हुई है। पूजा एक साधन संपन्न व्यक्ति हैं। अग्रिम जमानत अत्यंत असाधारण मामलों में होती है।

अतुल श्रीवास्तव: नौ प्रयास ओबीसी मानदंड के तहत थे इनके पिता ने अपनी घोषणा में 53 करोड़ की संपत्ति की घोषणा की थी। उसको लेकर कहा कि मेरे माता-पिता का तलाक हो गया है और मैं मां के साथ रह रही हूं। यह भी जांच का हिस्सा है।अभी तो ये यात्रा शुरू हुई है।

कोर्ट: आप मेडिकल दस्तावेज की भी जांच करेंगे?

अतुल श्रीवास्तव: हां सर, वह खुद डॉक्टर है और उसने हेराफेरी की।

माधवन: वह सहयोग करने को तैयार है।

माधवन: उन्होंने मेरे वैधानिक अधिकार को बंद करने के लिए समय से पहले अभियोजन शुरू कर दिया है। मैं सभी कड़ी शर्तों का पालन करने को तैयार हूं।

अदालत ने शाम चार बजे के लिए आदेश सुरक्षित रख लिया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार जांगला ने मामले की सुनवाई के दौरान अतिरिक्त लोक अभियोजक (एपीपी) के अनुरोध पर सुनवाई को स्थगित कर दिया था। एपीपी से सुनवाई के दौरान इस आधार पर स्थगन मांगा था कि राज्य ने मामले पर बहस करने के लिए विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) अतुल श्रीवास्तव को नियुक्त किया है।

बहस के लिए मांगा था समय
खेड़कर की ओर से पेश अधिवक्ता ने अग्रिम जमानत याचिका दायर कर अदालत को सूचित किया कि सुनवाई में देरी के चलते उनकी मुवक्किल यूपीएससी द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब देने का अपना अवसर खो रही हैं। अधिवक्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि जमानत याचिका पर कल एसपीपी की उपस्थिति में बहस की जाए।

क्या है मामला
2023 बैच की प्रशिक्षु आईएएस अधिकारी पूजा खेड़कर पर आरोप है कि उन्होंने यूपीएससी की सीएसई परीक्षा पास करने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और दिव्यांग कोटा का दुरुपयोग किया। इस मामले में यूपीएससी ने खेड़कर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। उनके चयन को रद्द करने पर उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है और उन्हें भविष्य में परीक्षाएं देने से भी रोक दिया है।

यूपीएससी के एक बयान के मुताबिक खेड़कर के दुराचार की विस्तृत और गहन जांच से पता चला कि उन्होंने अपना नाम बदलकर अपनी पहचान को गलत तरीके से पेश करके परीक्षा नियमों के तहत अनुमेय सीमा से परे प्रयासों का लाभ उठाया। बयान में यह भी कहा गया है कि खेड़कर ने अपने माता-पिता के नाम के साथ-साथ अपनी तस्वीर, हस्ताक्षर, ईमेल पता, मोबाइल नंबर और पता भी बदल दिया।

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