अमेठी । जिले के ब्लाक शुक्ल बाजार मुख्यालय से उत्तर पश्चिम के कोने में स्थित 5 किलोमीटर दूर सुबेहा क्षेत्र का एक गांव गुलामाबाद है। जो अपने गांव की होली के कारण प्रसिद्ध है। ग्रामीण परिवेश और ग्रामीण संस्कृति की आस्था को भले ही रुढि़ या अंधविश्वास की संज्ञा दी जाए, लेकिन आज के वैज्ञानिक युग में भी कुछ ऐसे स्थल या संस्कार शेष है। इनके बल पर लोकमानस अपनी दैहिक, दैविक और भौतिक आपदाओं का निदान करता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है- गुलामाबाद की होली है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि जिस रात्रि होली जलाई जाती है, सांयकाल से पड़ोसी जनपद अमेठी, रायबरेली, सुल्तानपुर, फैजाबाद, लखनऊ आदि जनपद के लोग बड़ी संख्या में होली तापने के लिए एकत्रित होते हैं। होली तापने वालों में मिर्गी, हिस्टीरिया व दमा के मरीजों की संख्या अधिक होती है। बताते हैं कि सुबेहा में एक मशहूर फकीर थे, जिनका नाम गुलाम हुसैनी था। समाज के दीन-दुखियों की सेवा करना उनका धर्म था। उन्हें हिदू-मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग बहुत मानते थे।
बताते हैं कि कुम्हार बिरादरी की श्रद्धालु सुश्रुमा की सेवा से खुश होकर गुलाम हुसैनी ने उसे एक ऐसी जड़ी बूटी से परिचय कराया, जिससे पान में रखकर खाने से कई प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। आज भी उसी परिवार के वंशज फाल्गुन की पूर्णिमा को पान में दवा देते हैं। होली जलने से दो घंटा पूर्व दवा बांटने का कार्य शुरू हो जाता है। दवा लेने के एवज में लोग सीधा (दाल, चावल आटा) व एक भेली गुड़ सहित सवा रुपया नकद देते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि पहले गुलामा बाद में होली के समय रात में ही होली में आग लगाई जाती थी, लेकिन कुछ अराजकतत्व लोगों ने यहां पर मरीजों से लूटपाट की थी। पुलिस ने होली जलाने का समय सुबह छह बजे निर्धारित कर दिया था। तब से सुबह के समय ही होली में आग लगाई जाने लगी।