प्राण प्रतिष्ठा से पहले इकबाल अंसारी का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

नई दिल्ली। इकबाल अंसारी लोकतांत्रिक मूल्यों-मर्यादा और राष्ट्रीयता के प्रेरक उदाहरण हैं। उन्हें 2016 में पिता हाशिम अंसारी के निधन के बाद बाबरी मस्जिद के पक्षकार की भूमिका विरासत में मिली। हाशिम जीवन के उत्तरा‌र्द्ध में इस भूमिका का उपयोग भाईचारा और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए करने लगे। इकबाल ने भी मस्जिद का पक्ष प्रस्तुत करने के साथ इसी भूमिका का निर्वहन किया।

नौ नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद वह दूसरे समुदाय के उन लोगों में अग्रणी रहे, जिन्होंने निर्णय का खुले दिल से स्वागत किया। इसके बाद से वह बराबर सद्भाव के दूत की भूमिका में छाप छोड़ रहे हैं। मंदिर निर्माण और रामलला के विग्रह की प्रतिष्ठापना की पूर्व बेला में रघुवरशरण ने उनसे विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश…

प्रश्न – 22 जनवरी 2024 की तिथि को भारत के इतिहास में किस रूप में याद करेंगे आप?
उत्तर –
यह नए दौर का परिचायक है। यह तारीख विवाद के समाधान और अतीत की भूल-चूक के परिमार्जन की तारीख है। यह तिथि न केवल हिंदू-मुस्लिम, बल्कि समग्र संदर्भों में राष्ट्रीय एकता-अखंडता की होगी। यह तारीख मुस्लिमों की उस लोकतांत्रिक समझ के उत्सव की है, जिसका परिचय उन्होंने नौ नवंबर, 2019 को राम मंदिर के पक्ष में आए फैसले को शिरोधार्य कर दिया। यह तारीख श्रीराम एवं राम मंदिर की प्रेरणा से सभी के भेदभाव से ऊपर उठ कर हिंदुस्तानी होने के बोध से आगे बढ़ने के संकल्प की भी होगी।

प्रश्न – जब प्रभु श्रीराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण पत्र मिला तो मन-मस्तिष्क में कौंधा पहला विचार क्या था?
उत्तर –
तसल्ली हुई कि हम, वे और पूरा देश सही दिशा में जा रहा है। हमने सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सहजता से स्वीकार कर और राम मंदिर बनाए जाने का स्वागत कर जिस समझ, संवेदना और सौहार्द की निर्णायक पहल की थी, उसे प्रोत्साहन मिलता प्रतीत हुआ।

प्रश्न – कितनी आशा थी कि पांच सदी के इस सबसे बड़े अवसर का आमंत्रण मिलेगा?
उत्तर –
मुझे पूरी उम्मीद थी। पांच अगस्त, 2020 को भूमिपूजन का भी आमंत्रण मुझे मिला था और मैं उस समारोह में शामिल हुआ था। सच्चाई यह है कि मेरे पिता दिवंगत हाशिम अंसारी ने मंदिर-मस्जिद विवाद से उपजे व्यापक तनाव को देखते हुए आपसी भाईचारा से यह विवाद हल करने का प्रयास न्यायालय का फैसला आने के एक दशक पूर्व से शुरू कर दिया था और 2016 में पिता के देहावसान के बाद मैंने भी यह प्रयास आगे बढ़ाया। यद्यपि यह प्रयास सफल नहीं हुआ, किंतु न्यायालय का निर्णय आने के बाद भी भाईचारा और सद्भाव को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता थी और मैंने इस दायित्व का दृढ़ता से पालन किया। इसे ध्यान में रख कर कह सकता हूं कि मैं आमंत्रण पाने का हकदार था।

प्रश्न – आप अयोध्या के वासी हैं, राम मंदिर निर्माण के साथ यहां हो रहे कायाकल्प का आमजन और शहर की आर्थिकी पर प्रभाव को कैसे देखते हैं?
जवाब –
बेहतरी की अपार संभावना पैदा हुई है और इस अवसर का सभी वर्ग एवं समुदाय के लोग समान रूप से सदुपयोग कर सकते हैं। अयोध्या के पर्यटन विकास से संपूर्ण अयोध्या जिला सहित आसपास के जिलों की सेहत सुधरेगी, किंतु अकेले अयोध्या नगर निगम क्षेत्र का तो कहना ही क्या। नगर निगम क्षेत्र में यदि चार लाख हिंदू हैं, तो एक लाख मुस्लिम भी हैं और अगले दो-तीन सालों में इनके जीवन स्तर में कई गुणा की बेहतरी की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।

प्रश्न – लंबे समय तक आस्था से जुड़े मामले में पक्षकार रहने के बाद अब ज्ञानवापी और मथुरा को लेकर मन में क्या विचार आते हैं?
उत्तर –
हम अयोध्या के मामलों के प्रति जवाबदेह हो सकते हैं, किंतु काशी और मथुरा के बारे हमें कुछ नहीं कहना है। यह विषय वहां के लोग जानें।

प्रश्न – मोदी के रोड शो में इकबाल अंसारी द्वारा पुष्पवर्षा को क्या समझा जाए? रामकाज करने वाले पीएम का अभिनंदन या सबका विकास – सबका साथ – सबका प्रयास के आचार-विचार वाले देश के जननेता का स्वागत?
उत्तर –
वह हमारे प्रधानमंत्री हैं और भेद-भाव मुक्त होकर देश को आगे ले जा रहे हैं। हम उनका स्वागत कर राष्ट्रीय कर्तव्य और शिष्टाचार का ही परिचय दे रहे थे। हम किसी राजनीतिक लाभ के आकांक्षी नहीं हैं।

प्रश्न – अयोध्या में मस्जिद निर्माण को लेकर सक्रिय हैं क्या? कहां तक बढ़ी है प्रक्रिया?
उत्तर –
इस मस्जिद से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। सरकार ने इसके निर्माण का दायित्व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को सौंपा है।

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