दुमका कोर्ट के फैसले को पलटा, पत्नी को गुजरा भत्ता देने का आदेश रद्द

रांची। हाईकोर्ट के जस्टिस सुभाष चंद की अदालत ने एक पारिवारिक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि वृद्ध सास की सेवा करना बहू का कर्तव्य है। वह अपने पति को मां से अलग रहने के लिए दबाव नहीं बना सकती है। रुद्र नारायण राय बनाम पियाली राय चटर्जी मामले में अदालत ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने के आदेश को निरस्त कर दिया।

हालांकि, अदालत ने नाबालिग बेटे के परवरिश की राशि बढ़ा दी है। अदालत ने कहा कि पत्नी के लिए अपने पति की मां और नानी की सेवा करना अनिवार्य है। उसे उनसे अलग रहने की जिद्द नहीं करनी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 51-ए का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि इसमें एक नागरिक के मौलिक कर्तव्यों को बताया गया है।

अदालत ने यजुर्वेद के श्लोक का किया जिक्र
इसमें हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देने और संरक्षित करने का प्रविधान है। पत्नी द्वारा वृद्ध सास या दादी सास की सेवा करना भारत की संस्कृति है। अदालत ने यजुर्वेद के श्लोक का जिक्र कहते हुए कहा- हे महिला, तुम चुनौतियों से हारने के लायक नहीं हो, तुम सबसे शक्तिशाली चुनौती को हरा सकती हो।

अदालत ने मनुस्मृति के श्लोकों का हवाला देते हुए कहा कि जहां परिवार की महिलाएं दुखी होती हैं, वह परिवार जल्द ही नष्ट हो जाता है। जहां महिलाएं संतुष्ट रहती हैं, वह परिवार हमेशा फलता-फूलता है।

बता दें कि दुमका के एक पारिवारिक अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता को अपनी अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण के रूप में तीस हजार और अपने नाबालिग बेटे को 15 हजार देने का आदेश दिया गया था।

महिला ने लगाया था ये आरोप
महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पति और ससुरालवालों ने उसके साथ क्रूरता की और दहेज के लिए उसे प्रताड़ित किया जा रहा था। जबकि पति का आरोप है कि पत्नी उस पर मां और दादी से अलग रहने का दबाव डालती थी। उसने बताया कि पत्नी अक्सर घर की दो बूढ़ी महिलाओं से झगड़ा करती थी और उसे बताए बिना अपने मायके जाती रहती थी।

अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से संकेत मिलता है कि पत्नी बिना किसी कारण के पति पर उसकी मां और दादी से अलग रहने के लिए दबाव डाल रही थी। पत्नी वृद्ध सास और दादी सास की सेवा नहीं करना चाहती है।

अदालत ने कहा कि वह अपने पति पर अपनी मां और दादी से अलग रहने के लिए दबाव बनाती है। बिना किसी वजह के पत्नी अलग रहना चाहती है तो गुजारा भत्ता देने से इन्कार किया जा सकता है। अदालत ने पारिवारिक अदालत के उस आदेश को रद कर दिया, जिसमें पत्नी को गुजारा भत्ता देने की अनुमति दी गई थी। अदालत ने बेटे का गुजारा भत्ता 15 से बढ़ाकर 25 हजार कर दिया।

Related Articles

Back to top button