डा. महेश का जीवन देता है कर्मयोग की शिक्षा

डा. महेश गुप्ता आज इस दुनियां में नही है। लेकिन उनका नाम आज भी अमर है सीतापुर के अलावा पड़ोसी जिलो की जनता डा. महेश गुप्ता को धरती का भगवान तो कभी गरीबों का मसीहा कहकर याद करती है। डा. महेश गुप्ता के जीवन का हर चढ़ाव उतार कर्मयोग की शिक्षा देता है। वर्ष 1955 में डा. महेश गुप्ता का जन्म हुआ था उनके पिता का नाम स्व. रामस्वरूप गुप्ता था वह मेडिकल शाॅप चलाते थेउनकी माता का नाम शारदा देवी तो कुशल ग्रहणी होने के साथ प्रतिभावान महिला थी। डा. महेश गुप्ता तीन भाई और एक बहन थे। जिसमें सबसे बड़े भाई रमेश चन्द्र गुप्ता, सुरेश चन्द्र गुप्ता दिनेश गुप्ता और बहन मिथिलेश गुप्ता जो वर्तमान समय में जिला लखीमपुर में रह रही है।

डा. महेश गुप्ता भाइयों में मंझिले भाई थे। डा. महेश गुप्ता की प्रारम्भिक शिक्षा फतेहगढ़ के जीजीआईसी से की उसके बाद बी.ए.सी. कानपुर तथा एम.एस. सर्जरी करने के बाद अपनी पहचान काबिल सर्जन के रूप में बनाई और ऐसे ऐसे जटिल आपरेशन किए कि आस पास जिलो की जनता डा. महेश गुप्ता को धरती का भगवान कहने लगी। अपनी योग्यता और हुनर और डा. साहब का भोला भाला स्मार्ट चेहरा व बातचीत से हर व्यक्ति उनका खास बन जाता था। वर्ष 1986 में डा. महेश गुप्ता की शादी गाजियाबाद निवासी सेवाराम की होनहार सुशील पुत्री रेनू गोयल के साथ हुई। डा. रेनू एक काबिल डाक्टर होने के साथ समझदार कुशल महिला थी। डा. रेनू ने डा. महेश गुप्ता का साथ हर संघर्ष में दिया जब भी डाक्टर महेश गुप्ता किसी समस्या को लेकर टूटने लगते तो डा. रेनू अपने पति को हिम्मत बनकर सामने आती है और रेनू की बातों से डा. महेश गुप्ता को एक नई ऊर्जा मिलती। जिसका परिणाम यह निकला डा. महेश गुप्ता कर्मयोगी बनकर अपनी लक्ष्य को साधते रहे और कामयाबी की रास्ते में उन्होने कभी पीछे मुड़कर नही देखा बस जब भी डा. महेश गुप्ता किसी उलझन में होते तो उनकी धर्म पत्नी डा. रेनू उनकी कभी दोस्त तो कभी सलाहकार बनकर उनका कंधे से कंधा मिलाकर साथ देती है और हर बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान डा. महेश गुप्ता चुटकियों में कर देते थे।

डा. महेश गुप्ता जिले के कई सरकारी अस्पतालों में तैनात रहे जिसमें मिश्रिख के सामदायिक स्वास्थ्य केन्द्र से लेकर जिला अस्पताल में बतौर सर्जन के पद पद पर रहकर मरीजों के मर्ज को समाप्त करने का काम किया और एक लम्बा समय जिला अस्पताल में रहकर मरीजों का उपचार किया । जिला अस्पताल में ही ऐसे ऐसे जटिल से जटिल आपरेशन किये जो एक महेश गुप्ता जैसा काबिल डाक्टर ही कर सकता था। डा. महेश गुप्ता की काबिलयत ने उनको सीतापुर के साथ अन्य जिले में काबिल और वरिष्ठ डाक्टरों की पहचान बना दी। डा. महेश गुप्ता किसी पहचान के मोहताज नही थे। डा. महेश गुप्ता अपने पीछे दो पुत्री एक और एक पुत्र छोड़ गये है। उनके सभी पुत्र अपने पिता के आदर्शो पर चलकर समाज की सेवा कर रहे है। डा. साहब की सबसे बड़ी पुत्री आदित्य गुप्ता जो होनहार ख्याति प्राप्त एम.डी है तो छोटी पुत्री एकाग्रता गुप्ता ने सीतापुर का नाम लंदन में रोशन करते हुए आर्ट एण्ड डिजाइन मास्टर डिग्री हासिल की। उनके सबसे छोटे पुत्र का नाम ईशान है जो अपने पिता के आदर्शो पर चलकर लद्दाख में अपने पिता की छाप छोड़ रहे है और जिम के माध्यम से समाज सेवा करने के साथ ही ईशान की पहचान एक पर्वता रोही के रूप में बन चुकी है। डा. महेश गुप्ता ने बहुत से चढ़ाव उतार देखे लेकिन उनकी धर्म पत्नी रेनू ने कभी भी डाक्टर महेश गुप्ता की हिम्मत को हारने नही दिया। जब भी डा. साहब किसी चिन्ता में होते तो उनकी पत्नी उनकी ताकत बनकर सामने आती है और डाक्टर फिर से नई ऊर्जा के साथ समस्या का समाधान करने में जुट जाते। अपने संघर्षों के समय डाक्टर महेश गुप्ता ने जिस स्कूटर का उपयोग किया था वह स्कूटर आज भी डाक्टर साहब के संघर्ष की याद दिलाता है और उसको यादगदार के रूप रखा गया है।

डा. महेश गुप्ता ने शिक्षा और राजनीतिक क्षेत्र में भी समाज के साथ साथ सीतापुर के लिये बहुत कुछ किया है। डा. साहब ने पड़ोसी जिले को समृद्धशाली बनाने के लिये एक चीनी मिल डाली थी लेकिन वह किन्ही कारणों से नही चली और उनको वह चीनी मिल बन्द करनी पड़ी थी। डा. महेश गुप्ता अपनी धर्मपत्नी रेनू को हमेशा ही अपनी ताकत और अच्छी सलाहकार मानते थे डा. रेनू ने बीसीएम हास्पिटल मे ंअपनी सेवाएं दी जिला अस्पताल सहित अन्य स्थानों में तैनात रही उसके बाद सीतापुर में एक मकान में रही और अपने पति का भरपूर साथ देते हुए डा. रेनू ने अपनी नोैकरी छोड़कर पहले क्लीनिक चलाया और एक छोटे मकान में रहकर कामयाबी की डगर तलाशती रही। उनकी यह तलाश 1991 में समाप्त हुई और सिविल लाइन में प्राइवेट अस्पताल संचालित कर मरीजों की सेवा करनी शुरू की उसके बाद डा. साहब ने शिक्षा के क्षेत्र में काम किया और आर एम एकेडमी की स्थापना कर नोैनिहालों को बेहतर शिक्षा और संस्कार देने का काम शुरू किया। डा. महेश गुप्ता की सोच बड़ी थी इस लिये वह कामयाबी की डगर पकड़ने के बाद पीछे मुड़कर ही नही देख रहे थे और उच्च शिक्षा के क्षेत्र मे ंकदम रखते हुए उन्होने इलसिया ग्रण्ट में रेनू महेश शिक्षा संस्थान की स्थापना की। अब डा. महेश गुप्ता ने अपने दायरे का विस्तार किया और रेनू महेश हास्पिटल, आर एम एकेडमी के साथ रेनू महेश शिक्षा संस्थान के माध्यम से सीतापुर में शिक्षा का प्रकाश फैलाने लगे।

इस तरह से डा. महेश गुप्ता ने सीतापुर को एक के बाद एक नायाब तोहफे दिये इसके बाद भी डा. महेश गुप्ता अपने कर्मयोग और फौलादी इरादों के साथ राजनीति में कदम रखा और विभिन्न पदों पर रहते हुए वह अपनी जिन्दगी की अंतिम सांसों तक समाज सेवा करते रहे। डा. महेश गुप्ता ने वाथम वैश्य के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर पूरे में वाथम समाज को मजबूत किया तो राजनीति में सक्रिय रहकर जनता की सेवा की। कई चुनाव लड़े और एकल अभियान में चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष के पद पर रहकर समाज की सेवा करते रहे फिर उनको भाजपा चिकित्सा प्रकोष्ठ का सह संयोजिक बनाया गया। डा. महेश गुप्ता हमेशा आर एस एस से जुड़े रहे और शाखाओं पर जाते रहे। डा. महेश गुप्ता इन सबके साथ खेल प्रेमी थे और गरीबो से इतना प्रेम था कि अगर वह समझ जाये कि किसी गरीब को उनकी मदद की जरूरत है तो वह बुंलाने का इंतजार नही करते थे वह स्वयं पहुंच जाते थे। गरीबों को खाने पीने से लेकर कपड़ो और मुफ्त उपचार वह अपने निजी संसाधनों और खर्च से करते थे। यही सब कारण है कि वह हम सबके बीच न होने के बाद भी डाक्टर हर व्यक्ति के दिल में जिन्दा है।

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