घाघरा नदी का टापू शराब बनाने वालों के लिए है सुरक्षित स्थान
300 रुपए के लिए डेंगियों से जान जोखिम में डालकर जाते है तो पर
वायरल वीडियो खुद बया कर रही साठगांठ की तस्वीर
बलिया। कहा जाता है कि आईना झूठ नहीं बोलता। ऐसी ही कुछ तस्वीर व वीडियो है जो शराब तस्कर व पुलिस महकमा के साठगांठ को बया कर रही है। आप वीडियो और तस्वीर को देखकर खुद समझ सकते है कि घाघरा नदी के टापू में सरपत के बीच शराब तस्कर बेखौफ होकर कच्ची शराब बनाने का काम किस प्रकार से कर रहे है। इस गोरख धंधे के फलने फूलने का मुख्य कारण पुलिस को मोटी रकम देना बताया जा रहा है। जब उच्चाधिकारियों का आदेश व दबाव पड़ता है तो पुलिस महकमा मौके पर जाकर दो-चार शराब भट्ठियों को तोड़कर अपना कोरम पूरा कर फोटो खिंचवाकर उच्चाधिकारियों को भेज देती है। यह गोरख धंधा पुलिस महकमा के लिए कामधेनु गाय बन गया है।
आपको बता दे कि घाघरा नदी का क्षेत्र हमेशा से अवैध शराब, गांजा, हीरोइन और पशु तस्करी के लिए सुरक्षित ठिकाना रहा है। आबादी से दूर नदी के बीच लगे सरपत की वजह से काम और आसान हो जाता है। जहां शराब तस्कर बिना किसी व्यवधान के शराब बनाने का काम करते है।इस अवैध कारोबार को पुलिस का संरक्षण सोने पर सुहागा साबित होता है। सिकंदरपुर थाना क्षेत्र के खरीद, कठौड़ा, सिसोटर, लीलकर और डुहां में अवैध शराब की दर्जनों भट्ठियां संचालित की जा रही हैं। इन भट्ठियों से रोजाना हजारों लीटर शराब इधर से उधर भेजी जाती है। यह गोरख धंधा नियोजित तरीके से किया जाता है। जिसके बदले संबंधित थाने को मोटी रकम चुकाई जाती है। कठौड़ा गांव के सामने घाघरा की अथाह जलधारा के बीच स्थित टापू नुमा स्थान गोरखधंधियों के लिए सबसे ज्यादे सुरक्षित ठिकाना है। कठौड़ा घाट से करीब दो किमी दूर नदी क्षेत्र में सात से आठ फीट ऊंचे सरपतों के बीच बनाई गई करीब 30 अवैध शराब फैक्ट्रियों तक पहुंचना काफी कठिन और जोखिम भरा है। बरसात और बाढ़ के सीजन में तो यह और भी दुष्कर हो जाता है। पर घाघरा की लपकती लहरों के बीच इस दुर्गम स्थान पर कारोबारियों का प्रतिदिन आना जाना है। आलम यह है कि शराब बनाने वाले डेंगियों के सहारे 300 रुपए दिहाड़ी के लिए जान जोखिम में डालकर वहां पहुंचते हैं और पूरे दिन काम कर शाम को माल लेकर वापस आ जाते हैं। यह सिलसिला प्रतिदिन का है। नदी के दियारा में चल रहे इस अवैध धंधे का वीडियो व तस्वीर सामने आने के बाद जो हकीकत सामने आई वह पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करती है। बताया जाता है कि पुलिस का समर्थन होने के कारण कोई इनके खिलाफ मुंह नही खोल पाता है।
हर माह लाखों की होती है वसूली
बलिया। शराब बनाने वालों के खिलाफ पुलिस छोटी मोटी कार्रवाई कर कोरम पूरा कर लेती है। लेकिन अंदरखाने बहुत बड़ा रैकेट चला रही है। सूत्रों की माने तो यह सबकुछ पुलिस के संरक्षण में होता है। जिसके एवज में 30 से 40 हजार रुपए प्रति माह पुलिस को दिया जाता है। जिस प्रकार उत्पादन होता है उस प्रकार माहवारी तय की जाती है। वही अधिक उत्पादन करने वालों से 40 हजार तो कम उत्पादक वालो से 30 हजार रुपए हर माह वसूला जाता है। पैसा इकट्ठा करने की जिम्मेदारी बिट के सिपाही की होती है।
विरोध के कारण बदला स्थान
बलिया। क्षेत्रीय लोगों ने जब इसका विरोध किया तो शराब बनाने वाले तस्करों ने कच्ची शराब निर्माण करने के स्थान को ही बदल दिया। बताया जाता है कि पहले यह कार्य आबादी वाले क्षेत्रों में किया जाता था, लेकिन अब घाघरा नदी के बीच या तटीय क्षेत्रों में किया जा रहा है। ऊंचे सरपतों के बीच धधकती भट्ठियां दूर से नजर नही आती। नजदीक पहुंचने के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाती है। सरयू के किनारे बसे खरीद, लीलकर, सिसोटार, सिवानकला, मुस्तफाबाद और डुहा में भी एक दर्जन से अधिक स्थानों पर गोरख धंधा फल फूल रहा है। यही नहीं मुस्तफाबाद, सिवानकला और सिसोटार में ईंट भट्ठों पर भी अवैध शराब बनाई जाती है। जिसके बदले भट्ठा मालिकों से पांच से छह हजार रूपये वसूला जाता है।