पटना: बिहार में भले ही राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और कांग्रेस सहित कई दल मिलकर सरकार चला रहे हों, लेकिन कांग्रेस अभी भी लालू प्रसाद को ही भरोसेमंद मानती है। हाल के दिनों में प्रदेश की सियासत में कई तस्वीर ऐसी सामने आई हैं, जिससे इस बात को बल मिलता है कि राजद और कांग्रेस नीतीश कुमार पर आंख बन्द कर विश्वास करने की स्थिति में नहीं है। इधर, जदयू ने भी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशियों को उतार कर यह साफ कर दिया है कि उनकी रणनीति बदलती रहती है। ऐसे में कांग्रेस को जदयू पर संशय बरकरार है। वैसे, कहा यह भी जा रहा है कि नीतीश कुमार ने जिस तरह मोतिहारी के महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित दीक्षांत समारोह में भाजपा की तारीफ करते हुए बयान दिया था, उसके बाद कांग्रेस और राजद सतर्क हो गई है। इसके बाद जब जदयू ने मध्य प्रदेश चुनाव में 10 प्रत्याशियों को उतारकर अपनी रणनीति के संकेत दिए तो राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में आयोजित पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह की जयंती समारोह में शामिल होकर नीतीश कुमार की पार्टी को समझाने में देरी नहीं की। इसमें कोई शक नहीं कि दशकों से अधिक समय तक राजद और कांग्रेस बिहार ही नहीं केंद्र की राजनीति में भी एक साथ कदमताल करती रही है। कांग्रेस और राजद की नजदीकी का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि विपक्षी दलों को एकजुट करने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई, लेकिन लालू प्रसाद ने कांग्रेस के राहुल गांधी को ‘दुल्हा’ और सभी को बराती बनने की बातकर विपक्षी दलों के गठबंधन के नेता बनाए जाने के संकेत दे दिए। जदयू के नेता भी मानते हैं कि राजद और कांग्रेस के बीच अच्छी समझ को नकारा नहीं जा सकता। बिहार के मंत्री और जदयू के नेता अशोक चौधरी से जब आठ साल बाद लालू प्रसाद के कांग्रेस प्रदेश कार्यालय जाने और श्री कृष्ण सिंह की जयंती समारोह में भाग लेने के संबंध में पूछा गया तो उन्होंने बेबाक अंदाज में कहा कि राजद और कांग्रेस में अच्छी अंडरस्टैंडिंग है। दोनों दल मिलकर लंबे समय से काम कर रहे हैं। इधर, कहा जाता है कि जदयू की मध्य प्रदेश में भले पकड़ नहीं हो, लेकिन जदयू ने जिन 10 क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है उसमे वे कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकते हैं। राजद के एक नेता ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहा कि 2015 में जिस तरह नीतीश कुमार ने राजद से मिलकर सरकार बनाई और फिर अलग हो गए, उसे राजद नहीं भूल सकी है। उन्होंने यह भी कहा कि नीतीश कुमार कब क्या निर्णय लें यह वो भी नहीं जानते, ऐसे में उन पर आंख मूंद कर विश्वास करना खतरा ही है। बिहार की राजनीति के जानकार अजय कुमार भी कहते हैं कि कांग्रेस और जदयू अपने-अपने सियासी मोहरे चल रहे हैं। बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा भी होती रही हैं। कांग्रेस मंत्रिमंडल में अपने कोटे के अनुसार मंत्री बनाने की मांग भी करते रही हैं, लेकिन अब तक मंत्रिमंडल विस्तार नहीं हुआ है। कांग्रेस की नीतीश से यह भी नाराजगी है। उन्होंने कहा कि अब तक देखें तो नीतीश बिना किसी रणनीति के कोई निर्णय नहीं करते। मध्य प्रदेश में भी प्रत्याशी उतारने के पीछे उनका कोई मकसद होगा। वैसे, नीतीश की खास रणनीति दबाव की रही है। वे अपने सहयोगी पर दबाव बनाए रखते हैं। ऐसे में यह देखने वाली बात है कि वे कांग्रेस के साथ चलेंगे या फिर अलग राह पकड़ने की कोई रणनीति तो नहीं बना चुके हैं। वैसे, विपक्षी दलों के गठबंधन के संयोजक को लेकर भी नीतीश के नाम की चर्चा होते रही है, लेकिन अब तक इंडिया गठबंधन में संयोजक का नाम तय नहीं हुआ है।