अशोक भाटिया
दिल्ली चुनाव को लेकर जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है, राजनीतिक पार्टियों द्वारा तैयारी भी तेज हो गई है। इस बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है। वहीं दिल्ली में पिछले 6 विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। दिल्ली में भाजपा ने आखिरी बार 1993 में विधानसभा चुनाव जीता था। उस समय मदनलाल खुराना कोमुख्यमंत्री बनाया था। वहीं पिछले 6 विधानसभा चुनावों में भाजपा को तीन बार कांग्रेस से और तीन बार आम आदमी पार्टी से हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को भले ही विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा हो लेकिन पिछले तीन लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सीटें जीती है। वहीं पिछले दो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता नहीं खुला था। लेकिन इस बार कांग्रेस अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन दोबारा हासिल करने की कोशिश में है।
साल 2013 में अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन यह सरकार महज 49 दिन ही चल पाई थी। इसके बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने रिकॉर्ड तोड़ सीटें जीतने का काम किया। इस चुनाव में आप पार्टी ने 67 सीटों पर जीत हासिल की और भाजपा को महज तीन सीटें ही मिली। वहीं कांग्रेस का इस चुनाव में खाता भी नहीं खुला था। वहीं 2015 के चुनाव में भाजपा की सीट हिस्सेदारी कम हुई हो लेकिन 2015 से 2020 तक भाजपा ने अपना वोट प्रतिशत 30 या उससे अधिक बनाए रखा। लेकिन कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं था और 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 4.3 प्रतिशत पर आ गया। 1993 से दिल्ली विधानसभा चुनावों के वोट प्रतिशत की तुलना करें तो पता चलता है कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के तत्कालीन वोट प्रतिशत को अपनी तरफ कर लिया है। इसमें कुछ गैर कांग्रेसी, दिल्ली में आप पार्टी और लोकसभा में भाजपा को पसंद करने वाले लोगों का भी एक बहुत बड़ा हिस्सा हासिल किया है।
जो कांग्रेस पिछले लोकसभा चुनाव में आम पार्टी के साथ थी अब वही इस समय कांग्रेस अरविंद केजरीवाल के लिए सबसे बड़ी बाधा के रूप में दिख रही है। आम आदमी पार्टी इस बात को अच्छे से जानती है कि अगर कांग्रेस मजबूत हुई तो उसका सीधा नुकसान उसे ही उठाना पड़ेगा। उसे डर ये नहीं कि कुछ सीटों पर कांग्रेस जीत जाएगी, बल्कि डर ये है कि भाजपा बाजी मार ले जाएगी।कुछ दिन पहले इंडिया टीवी न्यूज चैनल पर चर्चा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया ने दावा किया था कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस की आक्रामकता से डरी हुई है। उन्होंने ये तक दावा किया कि दिल्ली कांग्रेस के हमलावर तेवरों के बाद अरविंद केजरीवाल ने इंडिया गठबंधन के बाकी नेताओं के जरिए कांग्रेस आलाकमान को आप के खिलाफ नरम रुख अपनाने के लिए मनाने की कोशिश की थी। उनके दावे पर यकीन करें तो उसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली यूनिट के नेताओं को आम आदमी पार्टी के खिलाफ हमलावर रुख अख्तियार नहीं करने का संदेश भेजा था। ये बात तब की है जब अजय माकन ने केजरीवाल को ‘देशद्रोही’ कहा था। यूथ कांग्रेस ने महिला सम्मान योजना और बुजुर्गों के लिए कथित हेल्थ स्कीम के लिए आप कार्यकर्ताओं की तरफ से घर-घर जाकर रजिस्ट्रेशन करने को जनता के साथ धोखाधड़ी बताते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। संदीप दीक्षित भी लगातार आप और केजरीवाल पर हमले कर रहे थे। चौरसिया ने दावा किया कि आलाकमान से संदेश मिलने के बाद कांग्रेस नेताओं का आप पर हमलावर रुख नरम हुआ।
तो क्या सच में कांग्रेस दिल्ली में आम आदमी पार्टी के खिलाफ नरम रुख अख्तियार कर रही है? ऐसा दिखता तो नहीं है। पार्टी नेताओं का आप के खिलाफ हमलावर रुख बदस्तूर जारी है। कभी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तो कभी वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए पार्टी के नेता आप के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। हालांकि, चुनाव प्रचार के बीच राहुल गांधी की तबीयत का खराब होना कांग्रेस के लिए झटके की तरह है। खराब सेहत की वजह से उनकी अबतक दो रैलियां रद्द हो चुकी हैं। दिल्ली के चुनाव प्रचार युद्ध में अबतक प्रियंका गांधी वाड्रा की भी एंट्री नहीं हुई है।इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को भाजपा से कहीं ज्यादा कांग्रेस का डर सता रहा है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने बिना नाम दिए आप के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से बताया है कि पार्टी को इसकी चिंता नहीं है कि कांग्रेस कुछ सीटें छीन लेगी, बल्कि ये है कि वह भाजपा को मजबूत करने में मदद करेगी।
आम आदमी पार्टी के नेता अपनी रैलियों और प्रेस कॉन्फ्रेंस में लगातार ये आरोप लगा रहे हैं कि कांग्रेस दिल्ली में भाजपा को मदद पहुंचा रही है।मुख्यमंत्री आतिशी और संजय सिंह तो ये तक आरोप लगा चुके हैं कि कांग्रेस के उम्मीदवार भाजपा दफ्तर से चुने जा रहे हैं। कई कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए भाजपा फंडिंग कर रही है, ऐसा उनका आरोप है।एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आम आदमी पार्टी ओखला, चांदनी चौक और बादली समेत लगभग 10 सीटों पर कांग्रेस के अभियान पर कड़ी नजर रखे हुए है। आप को इन सीटों पर कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है। ओखला में आप के अमानतुल्लाह खान के खिलाफ कांग्रेस के पूर्व विधायक आसिफ अहमद खान की बेटी अरीबा खान चुनाव मैदान में हैं। चांदनी चौक में मौजूदा विधायक प्रह्लाद सिंह साहनी के बेटे आप के पुनर्दीप सिंह साहनी के खिलाफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जेपी अग्रवाल के बेटे मुदित अग्रवाल मैदान में हैं। बादली से दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव आप के मौजूदा विधायक अजेश यादव के को चुनौती दे रहे हैं।इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में आप के एक सीनियर लीडर को उनका नाम गुप्त रखते हुए कोट किया है, ‘हमारे लिए चिंता की बात यह नहीं है कि कांग्रेस सीट जीत लेगी, बल्कि यह है कि वह भाजपा को अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद करेगी। भाजपा के लिए, जो 27 सालों से दिल्ली विधानसभा में सत्ता से बाहर है, यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। कांग्रेस के वोट शेयर में वृद्धि से उन्हें ही मदद मिलेगी।’
आप नेता के हवाले से अखबार ने लिखा है, ‘2017 के एम् सी डी चुनावों में क्या हुआ था, उसी को देख लीजिए। आप ने दो साल पहले ही विधानसभा चुनाव 54% वोट शेयर के साथ जीता था और कांग्रेस 10% पर सिमट गई थी। लेकिन कांग्रेस ने एम् सी डी चुनाव अच्छी तरह लड़ा। आप का वोट शेयर गिरकर 26% हो गया, जबकि कांग्रेस का 21% हो गया। भाजपा का वोट शेयर केवल 4 प्रतिशत बढ़ा, लेकिन उसने चुनाव में जीत हासिल की।’कांग्रेस का पूरा फोकस अपने प्रदर्शन में इस बार सुधार करने पर है। यही वजह है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने दिल्ली में ‘न्याय यात्रा’ निकाली। वो दिल्लीवासियों से सीधे मिलने में जुट गए। कांग्रेस नेता लगातार आप पर हमलावर हैं। वे आम आदमी पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं और उसे भाजपा की मददगार बता रहे हैं। कांग्रेस की इस रणनीति से आप नेतृत्व की चिंता बढ़ गई है। आम आदमी पार्टी को डर है कि कांग्रेस की वजह से भाजपा विरोधी वोट बंट सकते हैं।
कांग्रेस के आक्रामक तेवर देखकर आम आदमी पार्टी के नेता भी सतर्क हो गए हैं। उन्होंने भी जवाबी हमले तेज किए हैं। अजय माकन के हालिया बयान की आलोचना तो कर ही रहे हैं। इंडिया गठबंधन से कांग्रेस को बाहर करने की धमकी भी दे रहे। आप का आरोप है कि आगामी चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस की मदद कर रही है। इन दावों से आप की रणनीति यही है कि वो विपक्षी इंडिया गठबंधन में शामिल दूसरे दलों से सपोर्ट हासिल करना चाहती है। फिलहाल देखना दिलचस्प होगा कि आप-कांग्रेस में जारी घमासान से दिल्ली चुनाव में क्या असर होगा?