COP28: विश्व में ग्रीनहाउस गैसों के तीसरे सबसे बड़े उत्सर्जक के रूप में, भारत जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन चुका है। अपने आकार और जनसंख्या के कारण, भारत हमेशा ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जकों में से एक रहा है। भारत का लगभग 40% उत्सर्जन, बिजली उत्पादन क्षेत्र से आता है, जबकि भूमि परिवहन लगभग 10% योगदान देता है।
भारत ने 2008 में इनमें से एक सम्मेलन की मेजबानी की थी, लेकिन उस समय COP के बहुत सरल मामले हुआ करते थे, जिसमें केवल जलवायु वार्ताकार और कुछ पर्यावरण मंत्री ही शामिल होते थे। वे उन बेहद हाई-प्रोफाइल घटनाओं से बहुत अलग थे, जो हाल ही में सीओपी बन गए हैं। अंतरराष्ट्रीय मांग का मुकाबला करने के लिए भारत अपने समग्र उत्सर्जन को सीमित करने की अपने कम प्रति व्यक्ति उत्सर्जन का हवाला देता है। भारत तर्क देता है, कि भारत को अपने नागरिकों को विकसित देशों के समान जीवन स्तर तक उठाने की जरूरत है।
जो देश विकसित हो चुके हैं, वो जलवायु परिवर्तन को लेकर बड़ी-बड़ी दलीलें दे सकते हैं, लेकिन भारत जैसे देश, जिन्हें अभी तेज विकास की जरूरत है, उसे जलवायु परिवर्तन का हवाला देकर, उसके विकास को रोकना गलत नीति है। इंटरनेशनल इकोनॉमी और जियो-पॉलिटिकल मामलों में अपने बढ़ते प्रभाव के मुताबिक, भारत, पिछले कुछ वर्षों में, वार्षिक जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में तेजी से सक्रिय हो गया है। यह जलवायु परिवर्तन को लेकर यूनाइटेड नेशंस के कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (CPP) कार्यक्रम है इसबार इसकी 28वीं बैठक होने वाली है, लिहाजा इसे COP-28 नाम दिया गया है।
ऐतिहासिक रूप से COPs में भारत 1992 के रियो डी जनेरियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन से, जिसने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) को जन्म दिया, भारत यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है, कि जलवायु कार्रवाई का बोझ विकासशील देशों पर असंगत रूप से न पड़े। विकसित देशों सहित हर देश को अपने जलवायु कार्यों पर निर्णय लेने और उन्हें लागू करने की अनुमति देता है। हर किसी के पास एक जलवायु कार्य योजना होनी चाहिए (जिसे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या एनडीसी कहा जाता है), लेकिन कोई अनिवार्य लक्ष्य नहीं है।