नई दिल्ली। विपक्षी एकजुटता में बंगाल की अड़चन अब भी उसी मोड़ पर खड़ी है, जहां लगभग पांच-छह महीने पहले थी। बंगाल कांग्रेस के तृणमूल पर कम हुए हमले एवं ममता बनर्जी के प्रति अधीर रंजन चौधरी का हाल के दिनों में बदले रवैये के बावजूद भाजपा के विरुद्ध आईएनडीआईए के तीन बड़े घटक दलों में तालमेल और सीट बंटवारे की गुत्थी पूरी तरह उलझी हुई दिख रही है।
टीएमसी के साथ माकपा तैयार नहीं
लोकसभा की 42 सीटों वाले इस प्रदेश में माकपा किसी भी हाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ जाने के लिए तैयार नहीं है और राज्य में प्रचंड बहुमत के साथ सत्तारूढ़ तृणमूल भी कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें देने को राजी नहीं है। विपक्षी गठबंधन की चार संयुक्त बैठकों और भविष्य में सब कुछ आसानी से सुलझा लेने के दावों के अतिरिक्त सुलह के रास्ते में अभी कई रोड़े हैं।
हालांकि, ममता बनर्जी के हालिया संकेतों से कांग्रेस में थोड़ा उत्साह सा दिख रहा है। राहुल गांधी ने बंगाल कांग्रेस के साथ दो दिन पहले परामर्श कर उसकी अपेक्षाएं जानने का प्रयास किया था। इसके बाद बातें उड़ी हैं कि तृणमूल से कांग्रेस सात सीटों की मांग करेगी।
बंगाल कांग्रेस के स्टैंड से माकपा सहमत नहीं
उधर, बंगाल कांग्रेस के स्टैंड के साथ माकपा जाने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। वह तृणमूल और भाजपा को समान दुश्मन मानती है। ममता बनर्जी की राजनीति से वाम दलों को इतनी नाराजगी है कि माकपा के राज्य सचिव मो. सलीम का कहना है कि भाजपा को बंगाल में परास्त करने के लिए तृणमूल को हराना जरूरी है। उनका मानना है कि तृणमूल की गलत नीतियों के कारण बंगाल में भाजपा को पैर जमाने में मदद मिली है।
माकपा के पोलित ब्यूरो सदस्य नीलोत्पल बसु ने साफ कर दिया है कि किसी भी हाल में वह तृणमूल के साथ नहीं जाएंगे। कांग्रेस के साथ गठबंधन भी उसी स्थिति में होगा जब वह तृणमूल और भाजपा के विरुद्ध लड़ाई में माकपा का साथ देगी। नीलोत्पल के बयानों का संकेत साफ है कि माकपा और तृणमूल एक मोर्चे से भाजपा को चुनौती नहीं देने जा रहे हैं। किंतु ऐसा भी नहीं कि माकपा को पीछे छोड़कर आगे बढ़ती दिख रही कांग्रेस एवं तृणमूल के तालमेल में लोचा नहीं है।
पिछले लोकसभा चुनाव में टीएमसी को मिली थी 22 सीटें
तृणमूल प्रवक्ता कुणाल घोष के उस बयान से कांग्रेस के साथ गठबंधन के पेच को आसानी से समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि सीटों के बंटवारे के वक्त विधानसभा चुनाव के परिणाम को आधार बनाना चाहिए, जिसमें कांग्रेस एवं माकपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। इसी हिसाब से कुणाल ने कांग्रेस को उनकी जीती हुई दो सीटों मुर्शिदाबाद और मालदा (दक्षिण) पर ही समेटने का संकेत दिया है। जाहिर है, अगर ऐसा हुआ तो माकपा को छोड़कर कांग्रेस को तृणमूल के साथ जाने पर फिर से विचार करना पड़ेगा।
पिछले लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 22, भाजपा को 18 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं। तीन दशकों तक बंगाल की सत्ता में रहे वाम दलों के हिस्से में एक भी सीट नहीं आई थी। वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव का परिणाम कांग्रेस एवं माकपा के लिए दुस्वप्न की तरह ही निकला। मिलकर लड़ने के बावजूद दोनों को एक भी सीट नहीं मिल सकी थी।
उस परिणाम से सबक लेने के बाद ही माकपा बंगाल में कांग्रेस से गठबंधन के प्रति उदासीन नजर आ रही है। उसका मानना है कि तृणमूल के खिलाफ दमदारी से नहीं लड़ने पर उसके समर्थक भाजपा के साथ जा सकते हैं। साथ ही इसका असर केरल पर भी पड़ सकता है, क्योंकि बंगाल के बेमेल गठबंधन को भाजपा वहां उछाल सकती है।