CJI डीवाई चंद्रचूड़ का लास्ट वर्किंग डे, AMU मामले पर ले सकते हैं ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट की सात जजों का पीठ आज एक कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुनाएगी कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत एक अल्पसंख्यक संस्थान माना जा सकता है या नहीं? इस बेंच की अध्यक्षता सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ करेंगे आज यानी 8 नवंबर को इनका लास्ट वर्किंग डे है. ऐसे में माना जा रहा कै सीजेआई इस मामले पर कोई अहम फैसला ले सकते हैं

एएमयू का यह मामला 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए उस फैसले से उत्पन्न हुआ है, जिसमें अदालत ने कहा था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. अगर AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मिलता, तो उसे बाकी सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की तरह शिक्षकों और छात्रों के लिए आरक्षण नीतियों को लागू करना पड़ेगा. वहीं अगर AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलता है, तो यह विश्वविद्यालय मुस्लिम छात्रों के लिए 50% आरक्षण दे सकेगा

1967 में क्या हुआ था फैसला
मौजूदा समय में AMU में राज्य सरकार की आरक्षण नीति लागू नहीं है, लेकिन विश्वविद्यालय में अपनी आंतरिक आरक्षण नीति है, जिसके तहत 50% सीटें उन छात्रों के लिए आरक्षित हैं जिन्होंने इसके संबंधित स्कूलों और कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त की है यह मुद्दा पहले भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किया जा चुका है. 1967 में, एस. अजीज बाशा वर्सेस भारत संघ मामले में पांच जजों की एक बेंच ने यह कहा था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता

जज ने अलिगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम, 1920 का उल्लेख करते हुए यह कहा था कि AMU न तो मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था और न ही इसे मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित किया जाता था, जो कि अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के लिए अनुच्छेद 30 (1) के तहत आवश्यक है

बढ़ता चला गया विवाद
1981 में AMU अधिनियम में संशोधन किया गया था, जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालय ‘भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित किया गया था’, लेकिन 2005 में जब विश्वविद्यालय ने अल्पसंख्यक दर्जे का दावा करते हुए पोस्टग्रेजुएट चिकित्सा पाठ्यक्रमों में मुस्लिम छात्रों के लिए 50% सीटें आरक्षित कीं, तो इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस आरक्षण नीति और 1981 के संशोधन को खारिज कर दिया था

अदालत ने कहा कि AMU एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, और 2019 में यह मामला सात जजों की बेंच को सौंपा गया था ताकि यह तय किया जा सके कि क्या एस. अजीज बाशा मामले में दिया गया फैसला फिर से समीक्षा करने योग्य है या नहीं?

केंद्र सरकार ने किया विरोध
केंद्र सरकार ने 2016 में इस अपील से अपनी ओर से हटते हुए अब AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का विरोध किया है सराकर का कहना है कि AMU कभी भी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था केंद्र का कहना है कि 1920 में जब AMU को स्थापित किया गया था, तो यह एक साम्राज्यवादी कानून के तहत किया गया था, और तब से यह मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित नहीं किया गया

वहीं, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि विश्वविद्यालय का प्रशासन कौन करता है उनका कहना है कि अनुच्छेद 30 (1) अल्पसंख्यकों को प्रशासन के मामले में स्वतंत्रता देता है और यह संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे को प्रभावित नहीं करता

फैसला तय करेगा एएमयू का भविष्य
केंद्र और याचिकाकर्ताओं के बीच इस मामले में आर्ग्युमेंट्स के बाद, आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला AMU के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है अगर AMU को अल्पसंख्यक संस्थान माना जाता है, तो यह एक बड़ा बदलाव होगा, क्योंकि इससे विश्वविद्यालय में आरक्षण नीतियों का पालन करना होगा, जो अन्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में लागू हैं

आज के फैसले के बाद, यह देखा जाएगा कि AMU का भविष्य क्या होगा और क्या यह अपने आरक्षण और अन्य नीतियों में बदलाव करेगा इस फैसले से न केवल AMU के भविष्य को आकार मिलेगा, बल्कि यह अन्य संस्थानों के लिए भी एक मिसाल पेश करेगा, जो अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा करते हैं

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