ब्लड कैंसर: स्टडी में हुआ ये हैरान कर देने वाला खुलासा

ब्लड कैंसर जिसे ल्यूकेमिया के नाम से जाना जाता है. जो बोन मैरो और लिम्फ नोड्स में ब्लड सेल्स में बढ़ने से होता है. हालांकि, ब्लड कैंसर किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है. इंडियन-अमेरिकन साइंटिस्टों ने हाल ही में एक रिसर्च किया है.यह रिसर्च उन्होंने मल्टीपल मायलोमा पर किया है. इस रिसर्च में यह खुलासा किया गया है कि मल्टीपल मायलोमा (अस्थि मज्जा में प्लाज्मा कोशिकाओं की एक रक्त विकृति) से पीड़ित लोगों में मधुमेह रहित व्यक्तियों की तुलना में समग्र जीवित रहने की दर कम होती है. ब्लड एडवांसेज में आज पब्लिश एक रिपोर्ट के मुताबिक,डायबिटीज के कारण जीवित रहने में यह अंतर एक उपसमूह विश्लेषण में गोरे लोगों में पाया गया, लेकिन काले लोगों में नहीं.

बीमारी नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के अनुसार, 13% अमेरिकियों को मधुमेह है, और इस बीमारी का प्रसार तेजी से बढ़ रहा है. अमेरिका में बहुसंख्यक गैर-हिस्पैनिक अश्वेत वयस्क, जिन्हें मल्टीपल मायलोमा है, रक्त में होने वाली दूसरी सबसे घातक बीमारी है. इस बीमारी से प्रभावित हैं. जबकि जांचकर्ता लंबे समय से मधुमेह के रोगियों में मल्टीपल मायलोमा के बढ़ते जोखिम के बारे में जानते हैं. इन सहवर्ती स्थितियों के साथ रहने वाले लोगों के बीच जीवित रहने की दर में नस्लीय असमानताओं की जांच करने वाला यह पहला अध्ययन है.

मल्पीपल मायलोमा और मधुमेह के बीच का कनेक्शन

मल्टीपल मायलोमा और मधुमेह वाले रोगियों में जीवित रहने की दर कम होती है. मेमोरियल स्लोअन केटरिंग कैंसर सेंटर के मल्टीपल मायलोमा विशेषज्ञ उर्वी शाह, एमडी ने बताया. लेकिन हम यह नहीं जानते थे कि ये नतीजे अलग-अलग नस्लों में कैसे भिन्न होते हैं. श्वेत व्यक्तियों की तुलना में काले व्यक्तियों में मधुमेह अधिक आम है.

शोधकर्ताओं ने एक रिसर्च किया. जिसमें दो शैक्षणिक चिकित्सा केंद्रों: मेमोरियल स्लोअन केटरिंग कैंसर सेंटर और माउंट सिनाई में इकान स्कूल ऑफ मेडिसिन से मल्टीपल मायलोमा वाले 5,383 रोगियों के इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य देखभाल रिकॉर्ड से डेटा एकत्र किया गया. इसमें शामिल पंद्रह प्रतिशत रोगियों में मधुमेह का निदान था (12% श्वेत और 25% अश्वेत रोगी)

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