भाजपा के नारे ‘‘बटेंगे तो कटेंगे’ में विरोधियों का हो रहा विरोध और एनडीए का नकारात्मक साथ

अशोक भाटिया

देश के दो राज्यों में विधानसभा का चुनाव जोर – शोर से हो रहा है। महाराष्ट्र में 20 तारीख को सम्पूर्ण प्रान्त व झारखण्ड में दूसरे चरण की 38 पर व कुछ राज्यों में उपचुनाव की 14 सीटों का चुनाव हो रहा है । इन चुनाओं में एक नारा गूंज रहा है ‘बटंगे तो कटेंगे’। इसे दिया है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कट्टर हिंदू की छवि वाले आदित्यनाथ ने । उन्होंने यह नारा तब दिया जह पड़ोसी बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद वहां हिंदुओं पर हमले शुरू हो गए। देखते ही देखते यह नारा काफी मशहूर हो गया। इस नारे का इस्तेमाल हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव में भी हुआ था।विपक्ष ने इसे धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास बताते हुए इसकी आलोचना की। इस नारे का इस्तेमाल भाजपा के नेता तो कर रहे हैं।लेकिन एनडीए में उसके सहयोगी दल इससे खुश नजर नहीं आ रहे हैं। वो इसकी आलोचना कर रहे हैं।

योगी आदित्यनाथ इस नारे को देश की एकता से जोड़कर बताते हैं।उनका कहना है कि हमारी ताकत एकता है।उनका कहना है कि अगर हम बंट गए तो हमारा पतन हो जाएगा। इसलिए हमें हर हाल में एक रहना है।वो बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले के समय विपक्ष पर चुप रहने का भी आरोप लगाते रहे हैं। उनका कहना है कि विपक्ष फिलस्तीन पर तो प्रतिक्रिया देता है, लेकिन बांग्लादेश पर चुप्पी साध लेता है, क्योंकि उसे वोट बैंक की चिंता है।

बहरहाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बंटेगे तो कटेंगे का नैरेटिव इस तरह सेट किया, जिसे भाजपा के शीर्ष नेताओं और आरएसएस का तो समर्थन मिला ही मिला। पीएम मोदी से लेकर अमित शाह तक अपनी रैलियों में इसका जिक्र करते नजर आ रहे हैं। विपक्षी पार्टियां इससे हट कर कोई और नारा देने की जगह इसी के इर्द गिर्द अपने नारे और सियासी एजेंडा गढ़ने में जुटी है। इस तरह से सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने-अपने हिसाब से सियासी एजेंडा सेट करने में लगी हैं।

आपको बतादे कि बांग्लादेश के संदर्भ में दिया गया यह नारा बटेंगे तो कटेंगे उत्तरप्रदेश की सियासी फिजा में गूंजा और फिर धीर-धीरे जातियों में बिखरे हुए हिंदुओं को एकजुट करने की नैरेटिव में तब्दील होने लगा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ योगी के नारे पर अपनी सहमति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रहने का संदेश दे कर एक तरह से इसकी तस्दीक ही करते नजर आए हैं। विजयादशमी के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बांग्लादेश के बहाने हिंदुओं को एकजुट रहने की बात करके सीएम योगी के बयान का समर्थन कर दिया था।

संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने मथुरा में साफ कहा था कि हिंदू एकता संघ का जीवन वृत है। हम यह बात आग्रहपूर्वक कहेंगे और आगे इसके लिए प्रयास भी करेंगे। योगी के ‘कटेंगे तो बटेंगे’ बयान पर संघ का स्पष्ट कहना है कि हिंदू एकता लोक कल्याण के लिए है। हमें अपने को भी बचाए रखना है और दुनिया का भी मंगल करना है। ऐसे में हिंदू एकता जरूरी है। इस बारे में खुद होसबाले ने बताया कि जाति के आधार पर और विचारधारा के आधार पर हिंदुओं की एकता को तोड़ने का काम किया जा रहा है।

भाजपा और संघ इस बात को समझ रहे हैं कि जातीय राजनीति के असर की वजह से 2024 के लोकसभा चुनाव में उसे सियासी नुकसान उठाना पड़ा था। साल 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में नंबर वन पार्टी थी, लेकिन 2024 में भाजपा को दोनों प्रदेशों में झटका लगा था। इसके चलते भाजपा एक रणनीति के तहत हिंदुओं को एकजुट करने के लिए बंटेंगे तो कटेंगे के नैरेटिव को पूरी तरह सेट करने में जुटी है ताकि सियासी फिजा को अपने पक्ष में कर सके।

सीएम योगी से लेकर पीएम मोदी और अमित शाह सहित भाजपा के तमाम नेता बटोगे तो कटोगे और एक रहोगे तो सेफ रहोगे की बात को हर रैली में दोहरा रहे हैं। पीएम मोदी का नारा दलित-पिछड़े वर्गों के बीच दरार पैदा करने के लिए और कथित रूप से विभाजनकारी राजनीति में शामिल होने के लिए कांग्रेस की आलोचना के रूप में अब प्रचारित किया जाने लगा है। पीएम मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था कि पार्टी का एकमात्र एजेंडा एक जाति को दूसरी जाति से लड़ाना है। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा था वे नहीं चाहते कि एससी, एसटी और ओबीसी आगे बढ़ें और उन्हें उचित पहचान मिले। याद रखें, ‘एक हैं तो सेफ हैं’।

सीएम योगी के द्वारा खड़े किए गए बंटेंगे तो कटेंगे वाले सियासी नैरेटिव का डिफेंड करने के बजाय विपक्ष उसी आक्रमता के साथ जवाब दे रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पीएम मोदी से लेकर सीएम योगी तक की आलोचना कर रहे हैं। खड़गे ने महाराष्ट्र में कहा कि प्रधानमंत्री कहते हैं बटेंगे तो कटेंगे, अगर हम एकजुट हैं तो सुरक्षित हैं, लेकिन असली खतरा किसे है? क्या कोई समस्या है, क्या देश को संघ, भाजपा और मोदी से खतरा है?

योगी के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ के नैरेटिव को अखिलेश यादव खुलकर काउंटर करने का दांव चल रहे हैं और उसे जातीय के एजेंडे पर सेट कर रहे हैं। अखिलेश हर रोज इस पर अपना बयान दे रहे हैं और बार-बार यही कहते नजर आते हैं दलित-पिछड़े-अल्पसंख्यक जुड़ेंगे तो जीतेंगे। पीडीए एक है और नेक है। वहीं, असदुद्दीन ओवैसी ने इस नारे को मुस्लिमों से जोड़ दिया और कहा कि मुसलमानों के घर बुलडोजर से तोड़ने वाले, कैसे समाज को जोड़ने का काम करेंगे। आप सांसद संजय सिंह कहते हैं कि भाजपा को हिन्दुओं की चिंता नहीं, उसे केवल चुनाव जीतने की चिंता है। आरजेडी की प्रवक्ता प्रियंका भारती ने कहा कि जाति के आधार पर लोगों को किसने बांटा है? समाज में आज भी मूंछ रखने या शादियों में घोड़ी पर चढ़ने के लिए दलितों पर हमला और उनकी हत्या कौन कर रहा है?

योगी आदित्यनाथ के बटेंगे तो कटेंगे वाले बयान से भाजपा के सहयोगी दलों ने किनारा कर लिया है। महाराष्ट्र में अजित पवार ने साफ कर दिया है कि महाराष्ट्र ने कभी भी सांप्रदायिक विभाजन को स्वीकार नहीं किया। यहां के लोगों ने छत्रपति शाहू महाराज, ज्योतिबा फुले और बाबासाहेब आंबेडकर की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा का पालन किया है। इस तरह की राजनीति महाराष्ट्र में नहीं चलने वाली है, क्योंकि यहां के लोगों ने हमेशा सांप्रदायिक सद्भाव सुनिश्चित किया है। कुछ लोग बाहर से यहां आते हैं और बयान देते हैं, हम इससे सहमत नहीं है। हमारा नारा सब का साथ और सब का विकास है। अजित पवार के सुर में सुर मिलाते हुए एकनाथ शिंदे भी नजर आए और उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में इस तरह की सियासत नहीं हो सकती है।

जेडीयू ने कहा कि हमारी पार्टी ने अपनी विचारधारा को गिरवी नहीं रखा है। भाजपा से हमने बिहार सहित देश के विकास के लिए गठबंधन किया है। हम लोग सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। देश एकजुट रहे, आगे बढ़े, इसके लिए हमारी पार्टी ने हमेशा मेहनत की है। जेडीयू नेता खालिद अनवर का कहना है कि हम लोग ऐसे किसी भी नारे को प्रमोट नहीं कर सकते जिसका मकसद समाज को बांटना या तोड़ना है।

राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा देकर भाजपा हिंदू वोटों को एकजुट करना चाहती है, क्योंकि 2024 लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हुआ था, लेकिन हिंदू वोटों का नहीं। इसलिए भाजपा बंटेंगे तो कटेंगे जैसे नारे देकर लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान की भरपाई करना चाहती है। महाराष्ट्र में आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है तो झारखंड में आदिवासी-मुस्लिम एकता भाजपा के लिए सियासी टेंशन बनी है, क्योंकि इसके तले धार्मिक ध्रुवीकरण सफल नहीं हो पा रहा है।

महाराष्ट्र में कॉस्ट पॉलिटिक्स ने भाजपा की सियासी टेंशन बढ़ा रखी है। मराठा आरक्षण आंदोलन ने लोकसभा चुनाव में भाजपा को झटका दिया था। मराठों के खिलाफ ओबीसी और धनगरों के खिलाफ आदिवासियों के बीच सियासी संघर्ष बना हुआ है। इसके चलते इस चुनाव में आरक्षण का मुद्दा जोरों पर है। महा विकास अघाड़ी ने जातिगत जनगणना और आरक्षण की 50 फीसदी के बैरियर को तोड़ने का वादा करके भाजपा के लिए सियासी चुनौती खड़ी कर दी है।

योगी आदित्यनाथ को सिर्फ उत्तर भारतीय वोटों के लिए नहीं बल्कि एक हिंदू आइकन के रूप में महाराष्ट्र में उतारा गया है। इसीलिए वो अपनी पहली रैली से ही हिंदुत्व के एजेंडे को सेट करने में जुट गए हैं ताकि महाराष्ट्र में मराठा और ओबीसी आधारित वोटिंग को हिंदुत्व के नाम पर एकजुट करें। ऐसा करके योगी जाति आधारित मतदान पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं। इसीलिए भाजपा के तमाम नेता ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे को बुलंद कर रहे हैं तो पीएम मोदी भी एक रहेंगे तो नेक रहेंगे की बात करके उसे मजबूत करने में लगे हैं।

विपक्ष जातिगत जनगणना और 50 फीसदी आरक्षण के बैरियर को तोड़ने की इन दिनों वकालत कर सियासी एजेंडा सेट कर रहा है। भाजपा ने जातिगत जनगणना का खुलेआम विरोध न करते हुए बड़ी सावधानी के साथ इस मामले पर रणनीतिक चुप्पी बनाए रखी है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा -आरएसएस समानता के लिए जाति जनगणना कराए जाने के नैरेटिव का मुकाबला ‘हिन्दुओं को जाति के आधार पर विभाजित करने’ के कथित प्रयासों से करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके चलते भाजपा अपनी छवि को पारंपरिक रूप से ब्राह्मण-बनिया (उच्च जाति) पार्टी से बदलकर एक ऐसी पार्टी की बनाने की कोशिश कर रही है जो हिंदुत्व की व्यापक छतरी के नीचे निचली जातियों को भी रखती है। वहीं, विपक्ष सामाजिक न्याय के एजेंडे पर धार देकर अपनी सियासी नैया पार लगाने की कवायद में है।

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