नई दिल्ली। धर्मनगरी अयोध्या का अभिन्न अंग रहने के बाद भी अंबेडकरनगर का मिजाज हमेशा से अलग रहा। तीन दशक पहले अयोध्या से अलग होकर अस्तित्व में आए अंबेडकरनगर के मतदाता अपने ही धुन में रामनगरी से हटकर जनादेश देते रहे। अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग बाहुल्य अंबेडकरनगर सीट के मतदाताओं ने जाति-धर्म और दलों के बंधन से ऊपर उठकर सबको नेतृत्व सौंपा।
देश की राजनीति को प्रभावित करने वाला मंदिर मुद्दा भी यहां प्रभावी नहीं रहा। अयोध्या के भव्य-दिव्य-नव्य मंदिर में रामलला के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद भी लोकसभा चुनाव में यहां के मतदाता अपने पुराने ढर्रे पर चलकर विकास और जाति के समीकरण पर मतदान की कड़ी जोड़ने में लगे हैं। लेकिन रामनगरी सहित यहां हो रहे औद्योगिक विकास और आवागमन की बेहतर कनेक्टिविटी चुनाव में कोई असर नजर नहीं आया और भाजपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा।
सपा-भाजपा के बीच सीधी टक्कर
अंबेडकरनगर लोकसभा सीट पर सपा और भाजपा के बीच सीधी टक्कर देखने को मिली। लोकसभा चुनाव से पहले बसपा छोड़कर आए सांसद रितेश पांडेय को भाजपा ने यहां प्रत्याशी बनाया गया था। वहीं आइएनडीआइए में सपा से लालजी वर्मा प्रत्याशी रहे।
बसपा ने यहां पूर्व में घोषित प्रत्याशी मोहम्मद कलाम शाह को बदलकर उनके स्थान पर जलालपुर नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष कमर हयात को प्रत्याशी बनाया। सपा और भाजपा प्रत्याशी पूर्व में बसपा में रह चुके हैं, ऐसे में दोनों प्रत्याशी की नजर बसपा के कैडर वोटों को खींचने पर है। वहीं बसपा प्रत्याशी का चुनाव प्रचार भी इस बार हल्का दिख रहा है, जिसे देख भाजपा और सपा में मुकाबला बताया जा रहा है।
2019 से ज्यादा पड़ें वोट
लोकसभा चुनाव में अंबेडकरनगर लोकसभा क्षेत्र के पांचों विधानसभा क्षेत्रों अकबरपुर, कटेहरी, जलालपुर, टांडा और गोसाईंगंज में पिछली बार के मुकाबले ज्यादा वोट पड़ा। इस बार यहां कुल 61.54 प्रतिशत मतदान करते हुए मतदाताओं ने पिछले लोकसभा चुनाव के अपने रिकॉर्ड को तोड़ दिया। इस बार लगभग 65 प्रतिशत महिलाओं तथा 56 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में 61.20 प्रतिशत मतदान हुआ था।
अंबेडकरनगर में कुल वोटर्स – 18,58,176 (18 लाख 58 हजार 176 मतदाता)
अंबेडकरनगर में कुल मतदान प्रतिशत- 61.54 प्रतिशत
किस विधानसभा में कितने मतदाता और कितना प्रतिशत हुआ मतदान
अकबरपुर विधानसभा- यहां कुल 3,43,998 मतदाता हैं। इस विधानसभा में 63.43 प्रतिशत मतदान हुआ है।
जलालपुर विधानसभा- जलालपुर में कुल मतदाताओं की संख्या 4,18,405 है। यहां 61.75 प्रतिशत मतदान हुआ है।
कटेहरी विधानसभा- इस विधानसभा में कुल 4,05,223 मतदाता हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में यहां 61.19 प्रतिशत मतदान हुआ है।
टांडा विधानसभा- टांडा में 3,43,252 मतदाता हैं। वहीं यहां इस बार 64.01 प्रतिशत मतदान हुआ है।
गोसाईंगंज विधानसभा- गोसाईंगंज में कुल वोटरों की संख्या 4,00,418 है। वहीं इस विधानसभा सीट पर सबसे कम 57.88 प्रतिशत मतदान हुआ।
आठ उम्मीदवार मैदान में
लोकसभा चुनाव में अंबेडकरनगर संसदीय सीट से कुल आठ उम्मीदवार चुनावी रण में हैं।
प्रत्याशी दल
रितेश पांडेय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
कमर हयात बहुजन समाज पार्टी (बसपा)
लालजी वर्मा समाजवादी पार्टी (सपा)
विवेक कुमार भारतीय शक्ति चेतना पार्टी
नीलम सिंह मूल निवासी समाज पार्टी
रामनरेश प्रजापति भागीदारी पार्टी (पी)
शबाना खातून पीस पार्टी
जावेद अहमद बहुजन मुक्ति पार्टी
अंबेडकरनगर सीट का इतिहास
देश की आजादी के बाद फैजाबाद पूर्व नाम की लोकसभा पर वर्ष 1951 व 1957 व वर्ष 1962 में अकबरपुर सुरक्षित सीट पर हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली थी। वर्ष 1967 में यहां रिपब्लिकन पाटी रामजी राम सांसद चुने गए थे। वर्ष 1971 में उन्होंने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।
वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में भारतीय लोकदल मंगलदेव विशारद ने यहां अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस के रामजी राम को चुनाव में पराजित किया। वर्ष 1984 में यहां अंतिम बार कांग्रेस के रामप्यारे सुमन सांसद चुने गए थे। वर्ष 1989 और 1991 में जनता के उम्मीदवार राम अवध सांसद चुने गए थे। इसी बीच बसपा और भाजपा भी चुनावी मैदान में उतर चुकी थी और राम मंदिर को लेकर आंदोलन भी शुरू हो गया था।
जनपद गठन से बसपा को मिला जनाधार
वर्ष 1995 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने फैजाबाद (वर्तमान में अयोध्या) जनपद की अकबरपुर और टांडा तहसील को जोड़कर अंबेडकरनगर जनपद गठन की घोषणा की। बसपा को इसका लाभ भी वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में मिला। यहां बसपा से घनश्याम चंद्र खरवार पहले सांसद चुने गए। यहां चुनाव में जातिगत समीकरण पर शुरू हो गया था। यही कारण रहा कि वर्ष 1996 से 2004 तक हुए तीन बार के लोकसभा चुनाव में मायावती यहां से खुद चुनावी मैदान में उतरी और तीनों बार जीत दर्ज की।
दो बार मायावती ने कार्यकाल के बीच में संसद की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। इस दौरान हुए दो उपचुनाव में वर्ष 2002 में बसपा के त्रिभुवन दत्त व वर्ष 2004 में सपा के शंखलाल माझी सांसद ने जीत दर्ज की।
वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव से पहले संसदीय क्षेत्र का परिसीमन हुआ। यहां की आलापुर सुरक्षित विधानसभा को हटाकर अयोध्या जनपद की गोसाईगंज विधानसभा को शामिल कर दिया। गोसाईगंज विधानसभा के शामिल होने के बाद भाजपा के वोटों का ग्राफ जरूर बढ़ा, लेकिन जातिगत समीकरण हावी होने से बसपा की जीत का क्रम बरकरार रहा।
मोदी लहर में भाजपा को मिली थी पहली जीत
वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव भाजपा ने नरेन्द्र मोदी के नाम पर लड़ा। पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी, जिसका प्रभाव अंबेडकरनगर पर भी पड़ा। यहां से भाजपा प्रत्याशी डा. हरिओम पांडेय ने साढ़े चार लाख से अधिक मत हासिल किए। उन्होंने बसपा के राकेश पांडेय को एक लाख 23 हजार से अधिक मतों से पराजित किया। हालांकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने अपनी खोई हुई सीट दोबारा वापस पा ली। यहां बसपा ने सपा गठबंधन के साथ लड़ा था। इस चुनाव में भी जातिगत समीकरण हावी रहा था।
भाजपा ने प्रदेश सरकार में मंत्री रहे मुकुट बिहारी वर्मा को चुनावी मैदान में उतारा था। उन्हें पिछड़ी जाति के साथ सवर्ण का साथ जरूर मिला, लेकिन वह जीत नहीं दर्ज कर सके।
इस बार चुनाव राम मंदिर में भगवान के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा और जनपद में हुए औद्योगिक विकास के बीच है। पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे व अयोध्या बसखारी फोरलेन मार्ग की सुविधा मिलने से महानगरों तक बेहतर कनेक्टिविटी हुई है। स्थानीय मुद्दा भी न होने से यह चुनाव विकास को लेकर देखा जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ सपा व इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी लालजी वर्मा के चलते जातिगत समीकरण की बेड़ियां भी दिख रही हैं।
बसपा छोड़कर आए रितेश भाजपा से उम्मीदवार
भाजपा ने यहां बसपा छोड़कर आए सांसद रितेश पांडेय को प्रत्याशी बनाया है। वहीं बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी कमर हयात को चुनावी मैदान में उतारा है। बसपा यहां अपने कैडर वोटों के साथ मुस्लिम मतदाताओं को साधने की कोशिश में है। अब जनता क्या जनादेश देगी यह आगे सामने आएगा।
जातिगत और विकास की धुरी पर घूमता रहा मतदान
लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को सहेजने और समेटने में जाति व विकास का मुद्दा मतदान की धुरी पर घूमता रहा। भाजपा और सपा के बीच सीधी व कांटे की टक्कर देखी जा रही है।
भाजपा अपने 10 वर्ष के विकास और कल्याणकारी लाभ की बदौलत जनता के बीच चुनाव लड़ने पहुंची और सुशासन के साथ अपराध पर काबू पाने का दम भरा। भाजपा के कैडर वोट बैंक में सामान्य जातियों व पिछड़ा वर्ग में भी सेंध लगाई।
भाजपा प्रत्याशी रितेश पांडेय को उनके जातिगत वोटों के अलावा जलालपुर में विधायक रहने एवं लोकप्रियता का लाभ मिला है। वहीं सपा का चुनावी माहौल जातिगत समीकरण पर चलता रहा। सपा के मुस्लिम और यादव वोटों के अलावा सपा उम्मीदवार लालजी वर्मा को अपने वर्मा बिरादरी का भरपूर सहयोग मिला है। हालांकि जीत की राह साफ करने के लिए सपा और भाजपा की नजर बसपा के कैडर वोटरों पर टिकी रही।
बसपा ने खेला मुस्लिम कार्ड
इस बार बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार कमर हयात को उतारा था। माना जाता है कि नगरपालिका अध्यक्ष रहने के साथ मुस्लिम वर्ग में इनकी खास पकड़ भी है। ऐसे में सपा के वोट बैंक में सेंधमारी से इनकार नहीं किया जा सकता। वहीं इनके चुनावी मैदान में सक्रिय कम रहने से बसपा के वोटरों पर सपा और भाजपा की नजर रही।
लंबे समय तक बसपा का दामन थामें रहे लालजी वर्मा को अपने पुराने घर से लाभ मिलने की उम्मीद रही तो भाजपा उम्मीदवार रितेश पांडेय ने विकास के मुद्दों में सड़क और राशन के साथ आवास के लाभ से आच्छादित लाभार्थी बसपा के कैडर वोटरों से सहयोग मिलने की उम्मीद लगाई है। अब आगामी चार जून को मतगणना के बाद परिणाम ही बताएगा कि जनता ने जातिगत समीकरण अथवा विकास को देखते हुए जनादेश दिया है।