प्राण प्रतिष्ठा के अंतिम दिन आज निकाली जाएगी शोभा यात्रा
(महोली )सीतापुर। रक्तबीज राक्षस को वरदान था कि उसके शरीर से जितनी रक्त की बूंदे जमीन पर गिरेंगी उतने और रक्तबीज जन्म ले लेंगे। रक्तबीज ने इतना उत्पात मचाया था कि देवता भी उससे खौफ खाने लगे थे। तीनों लोकों की रक्षा करने तथा उसके उत्पात से निजात दिलाने के लिए मां भगवती ने उसका बध करके सारा रक्त खुद पी लिया था।
कस्बे के शक्तिनगर मोहल्ले में स्थित नवनिर्मित मां कात्यायनी मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह के चतुर्थ दिवस रामेश्वरम धाम से पधारे भगवत कृष्ण शास्त्री ने देवी माहत्म्य का वर्णन करते हुए यह सद्वचन कहे। उन्होंने बताया कि मां भगवती अगर राक्षस का लहू न पीती तो जितनी बूंदे गिरती उतने ही रक्तबीज और पैदा हो जाते। इसीलिए माता ने राक्षस का वध करके उसका सारा लहू पीकर अपने भक्तों व देवताओं का कल्याण किया। उन्होंने कहा कि कुछ दुष्ट प्रवत्ति के लोगों ने इसका गलत अर्थ लगा लिया और माता को बलि चढ़ाने लगे। मां भगवती कभी किसी जीव का बध स्वीकार नहीं करती हैं। ऐसा करने वाले नरक के भागी बनते हैं। जीव की हत्या करना पाप है इससे मनुष्य को बचना चाहिए, इसी में हमारा कल्याण है। सनातन धर्म में ऐसा कोई विधान नहीं है। बुधवार को प्राण प्रतिष्ठा आयोजन के अंतिम दिन भव्य व दिव्य शोभा यात्रा निकाली जाएगी।
मूर्तियों को हुआ वस्त्राधिवास
पूजन के विधान के दौरान मंगलवार को विद्वान पंडित रंगनाथ पाण्डेय ने मूर्तियों का श्रंगार कराया। महिलाओं ने माता की मूर्तियों को वस्त्र, साड़ी, आभूषण अर्पित किए। इसके पश्चात सभी देवी देवताओं का हवन किया। छोटी कन्या द्वारा चांदी की सलाका से नेत्र उनमीलन किया गया। सभी देवी-देवताओं, सभी ग्रंथ, ऋषि मुनि व संतों का मूर्तियों में मंत्रो द्वारा समावेश कराया कया।