बांग्लादेशः भारत के लिए रणनीतिक चुनौती

डॉ. सत्यवान सौरभ

बांग्लादेश में हाल ही में हुई राजनीतिक उथल-पुथल ने भारत की क्षेत्रीय कूटनीति के लिए नई चुनौतियां और जटिलताएं ला दी हैं। नागरिक अशांति से जूझ रहे बांग्लादेश के घटनाक्रम से भारत खुद को एक ऐसे चौराहे पर खड़ा पाता है, जिससे उसे अपने कूटनीतिक रुख का पुनर्मूल्यांकन करने की जरूरत है। ढाका के साथ राजनयिक संबंधों में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियां देखें तो वह विकट हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल के अचानक समाप्त होने से ढाका में अप्रत्याशित राजनीति बदलाव तो तय था पर अब नीतिगत बदलाव भी होंगे। इससे द्विपक्षीय पहल प्रभावित हो सकती हैं। शेख हसीना सरकार के विरोध प्रदर्शनों में जमात-ए-इस्लामी जैसे इस्लामी समूहों की भागीदारी संभावित रूप से बांग्लादेशी राजनीति के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बदल सकती है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है और कट्टरपंथ के खिलाफ भारत के प्रयासों पर असर पड़ सकता है। कट्टरपंथी तत्वों के बढ़ते प्रभाव से सीमा पर कट्टरपंथी गतिविधियों में वृद्धि हो सकती है, जिससे भारत को और अधिक कड़े सुरक्षा उपाय करने की आवश्यकता होगी।

बांग्लादेश के साथ भारत के महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध खतरे में हैं । सीमा पार से व्यवधान और भारतीय निर्यातकों के लिए भुगतान में देरी, इन देशों की आर्थिक निर्भरता की संवेदनशीलता को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए हाल ही में कर्फ्यू और विरोध प्रदर्शनों के कारण पेट्रापोल-बेनापोल सीमा जैसे प्रमुख व्यापार मार्ग अस्थायी रूप से बंद हो गए हैं , जिससे प्रतिदिन लाखों डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार प्रभावित हुआ। हालांकि अब द्विपक्षीय व्यापार पटरी पर लौट रहा है। बांग्लादेश में पुराने राजनीतिक उथल-पुथल ने ऐतिहासिक रूप से शरणार्थी संकट को जन्म दिया है , विशेष रूप से 1971 के युद्ध के दौरान , जिसका भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर स्थायी प्रभाव पड़ा।

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत समर्थक हैं, इसलिए उनकी अनुपस्थिति बांग्लादेश में चीनी बढ़त को आमंत्रित कर सकती है , जो भारत के प्रभाव को चुनौती दे सकती है। बांग्लादेश में बेल्ट एंड रोड पहल के तहत चीन की हालिया पहल को और गति मिल सकती है, जिससे भारत की रणनीतिक बढ़त कम हो सकती है ।गैर-हस्तक्षेप और अपने हितों की रक्षा करने की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाए रखने से क्षेत्रीय नेतृत्वकर्ता और स्थिरता लाने वाले देश के रूप में भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि दांव पर लग सकती है। बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में अत्यधिक आक्रामक नीतियों या कथित हस्तक्षेप से अंतर्राष्ट्रीय आलोचना हो सकती है और वैश्विक मंचों पर भारत की स्थिति प्रभावित हो सकती है।

भारत को अपने हितों की रक्षा करने और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए अंतरिम सरकार सहित बांग्लादेश में सभी राजनीतिक संस्थाओं के साथ संचार के खुले चैनल बनाए रखने चाहिए। स्थिरीकरण प्रयासों और लोकतांत्रिक बदलावों पर चर्चा करने के लिए प्रमुख बांग्लादेशी नेताओं और अंतरराष्ट्रीय हितधारकों के साथ कूटनीतिक वार्ता की मेजबानी करनी होगी। व्यापार प्रोत्साहन , सहायता और निवेश जैसे आर्थिक साधनों का उपयोग करके भारत को अपनी सॉफ्ट पॉवर का उपयोग करने और सत्तारूढ़ शासन के बावजूद अच्छे संबंधों को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है। बांग्लादेश में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए अनुकूल व्यापार समझौते या विकास सहायता को बढ़ाना चाहिए, जिससे आर्थिक संबंध मजबूत होंगे।

सुरक्षा सहयोग बढ़ाना, खुफिया जानकारी साझा करना तथा आतंकवाद और सीमा पार अपराधों के खिलाफ संयुक्त अभियान चलाना राजनीतिक अस्थिरता के परिणामों को प्रबंधित करने में मदद कर सकता है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर तस्करी और आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए संयुक्त गश्त और खुफिया जानकारी साझा करने की पहल करना। सांस्कृतिक संबंधों और लोगों के बीच संपर्क को मजबूत करना ,स्थायी संबंधों के लिए आधार के रूप में काम कर सकता है, जिससे राजनीतिक और वैचारिक मतभेद कम हो सकते हैं। दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी समझ और सद्भावना को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक उत्सवों और छात्र विनिमय कार्यक्रमों को बढ़ावा देना। सुरक्षा और विकास जैसी आम चुनौतियों का समाधान करने के लिए सार्क और बिम्सटेक जैसे मंचों के माध्यम से क्षेत्रीय सहमति बनाना, स्थिरता के लिए सामूहिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना चाहिए। सुरक्षा और आर्थिक विकास पर केंद्रित क्षेत्रीय संवाद शुरू करना जिसमें बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देश शामिल हों। यह कूटनीति भारत को शांति और विकास के लिए प्रतिबद्ध क्षेत्रीय नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत करने में मदद कर सकती है ।

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