Badlapur :हिरासत में आरोपी की मौत का मामला; बॉम्बे हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के आदेश पर जताई हैरानी..

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हिरासत में एक आरोपी की मौत के मामले में सत्र अदालत के आदेश पर हैरानी जताई है और इसे गलत करार दिया है। कोर्ट ने कहा- कि आरोपी की मौत के मामले में सत्र अदालत का आदेश पूरी तरह से उचित नहीं था और इसे फिर से देखा जाना चाहिए। यह मामला तब सामने आया जब एक आरोपी की हिरासत में मौत हो गई थी, और सत्र अदालत ने इस मामले में कुछ फैसले दिए थे, जिन पर हाईकोर्ट ने आपत्ति जताई। हाईकोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही और अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए सत्र अदालत से पुनः विचार करने को कहा है। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए संबंधित अधिकारियों से विस्तृत जवाब तलब किया है और इस मामले में जल्द सुनवाई की उम्मीद जताई है। यह घटना पुलिस हिरासत में मौतों के मुद्दे पर एक बार फिर सवाल उठाती है।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हिरासत में एक आरोपी की मौत के मामले में सत्र अदालत के आदेश पर हैरानी जताई है और इसे गलत करार दिया है। कोर्ट ने कहा- कि आरोपी की मौत के मामले में सत्र अदालत का आदेश पूरी तरह से उचित नहीं था और इसे फिर से देखा जाना चाहिए। यह मामला तब सामने आया जब एक आरोपी की हिरासत में मौत हो गई थी, और सत्र अदालत ने इस मामले में कुछ फैसले दिए थे, जिन पर हाईकोर्ट ने आपत्ति जताई। हाईकोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही और अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए सत्र अदालत से पुनः विचार करने को कहा है। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए संबंधित अधिकारियों से विस्तृत जवाब तलब किया है और इस मामले में जल्द सुनवाई की उम्मीद जताई है। यह घटना पुलिस हिरासत में मौतों के मुद्दे पर एक बार फिर सवाल उठाती है।

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महाराष्ट्र के ठाणे जिले के बदलापुर में एक स्कूल में दो नाबालिग बच्चियों के यौन शोषण मामले में आरोपी की हिरासत में मौत के मामले में सत्र अदालत के आदेश पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने हैरानी जताई है। हाईकोर्ट ने कहा- कि सत्र अदालत इस तरह का आदेश कैसे पारित कर सकती है? वो भी यह जानते हुए कि मामला हाईकोर्ट के संज्ञान में है। महाराष्ट्र के ठाणे जिले के बदलापुर में एक स्कूल में दो नाबालिग बच्चियों के यौन शोषण मामले में आरोपी की हिरासत में मौत के मामले में सत्र अदालत के आदेश पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने हैरानी जताई है। हाईकोर्ट ने कहा- कि सत्र अदालत इस तरह का आदेश कैसे पारित कर सकती है? वो भी यह जानते हुए कि मामला हाईकोर्ट के संज्ञान में है।

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बदलापुर यौन शोषण मामले में पुलिस हिरासत में मरने वाले आरोपी अक्षय शिंदे के पिता की ओर से दायर याचिका पर  न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने सुनवाई की। पीठ ने कहा- कि उन्हें सत्र अदालत के आदेश की जानकारी दी गई। पीठ ने कहा- कि जब मामला विचाराधीन है, तो क्या सत्र अदालत पुलिसकर्मियों के आवेदन पर भी विचार कर सकती थी? क्या सत्र न्यायाधीश ने अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़कर अतिक्रमण नहीं किया है? यह न्यायिक अनौचित्य का सवाल है। पीठ ने कहा- कि हमें नहीं पता कि क्या कहना है? मगर यह चौंकाने वाला है। क्या राज्य ने सत्र अदालत को सूचित नहीं किया कि उच्च न्यायालय के पास मामला विचाराधीन है? क्या राज्य सत्र अदालत के आदेश को चुनौती देने की योजना बना रहा है?

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जब आरोपी शिंदे के माता-पिता ने कहा- कि वे मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते तो हाईकोर्ट ने वरिष्ठ वकील मंजुला राव को अदालत की सहायता के लिए न्याय मित्र नियुक्त किया। हाईकोर्ट ने कहा- कि राज्य ने एक आयोग गठित किया हुआ है और सीआईडी भी आरोपी की हिरासत में मौत की जांच कर रही है, इसलिए मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट पर कोई संज्ञान लेने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन अगर एक बार अपराध का खुलासा हो जाने के बाद राज्य इसे तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने के लिए जिम्मेदार है। हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई को पांच मार्च के लिए पोस्ट किया। कोर्ट ने कहा- कि क्या मजिस्ट्रेट की जांच रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज करने में आयोग और सीआईडी जांच भी आड़े आ सकती है? हम चाहते हैं कि राव इस पर बहस करें।

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क्या है पूरा मामला?

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आरोपी अक्षय शिंदे को अगस्त 2024 में बदलापुर स्कूल में दो नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 23 सितंबर 2024 को उसे पुलिस ने कथित मुठभेड़ में मार दिया, जबकि उसे तलोजा जेल से कलीमांन पूछताछ के लिए लाया गया था। इस मुठभेड़ को लेकर पुलिस ने दावा किया कि आरोपी अक्षय शिंदे ने एक पुलिसकर्मी का बंदूक छीनकर फायर किया था, जिसके बाद पुलिस ने जवाबी गोलीबारी की।

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मामले की जांच के बाद मजिस्ट्रेट ने रिपोर्ट दाखिल की थी। मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट में वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक संजय शिंदे और अन्य पुलिसकर्मियों को आरोपी की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था और उनकी तरफ से की गई गोलीबारी को अनावश्यक बताया गया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि यह मुठभेड़ फर्जी हो सकती है, जैसा आरोपित के परिवार ने दावा किया था। सत्र न्यायालय ने आदेश दिया था कि मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट के निष्कर्षों को अगले आदेश तक रोक दिया जाए।

 

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