महाकुंभ मेले में परमहंस पीठाधीश्वर शिवयोगी उर्फ मौनी बाबा ने 57वीं भू-समाधि ली

प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर हुई भगदड़ की घटना से दुखी परमहंस पीठाधीश्वर शिवयोगी मौनी महाराज ने भू-समाधि ले ली है. शिवयोगी मौनी महाराज ने यह भू-समाधि 3 घंटे के लिए 10 फीट गहरे गड्ढे में ली. भू समाधि से पहले मौनी बाबा ने विधिवत पूजा अर्चना की. उन्होंने रुद्राक्ष की मालाओं के मुकुट को उतारकर अलग रख दिया.

मौनी बाबा ने शुक्रवार की रात को भू-समाधि ली. वह अब तक 55 से ज्यादा बार भू समाधि ले चुके हैं. ये उनकी 57वीं भू-समाधि है. मौनी बाबा का कहना था कि प्रयागराज महाकुंभ की घटना से वह बेहद व्यथित हैं. भू-समाधि के जरिए वह कामना करना चाहते हैं कि महाकुंभ में दोबारा ऐसी कोई दुखद घटना ना हो. महाकुंभ में पूरे विश्व के लोग आ आ रहे हैं. किसी को कोई दिक्कत न हो इसके लिए भूमि के अंदर तपस्या करूंगा.

उन्होंने महाकुंभ क्षेत्र में सेक्टर-6 में स्थित अपने शिविर में भू समाधि ली है. मौनी बाबा के शिविर में रुद्राक्ष की मालाओं के जरिए द्वादश ज्योतिर्लिंग के स्वरूप को तैयार किया गया है. मौनी बाबा ने महाकुंभ में पहली बार 7 करोड़ 51 लाख रुद्राक्ष की मणियों से दिव्य 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की है. हर ज्योतिर्लिंग 11 फीट ऊंचा, 9 फीट चौड़ा और 7 फीट मोटा है.

13 साल मौन व्रत पर रहे

महाराज शिवयोगी 13 साल तक मौन व्रत में रहे हैं, इसलिए लोग इन्हें मौनी महाराज के नाम से बुलाते हैं. इनका जन्म प्रतापगढ़ के पट्टी क्षेत्र में हुआ. यहीं पर शिक्षा-दीक्षा हुई. इसके बाद मुंबई में जीविकोपार्जन के लिए गए. फिर वहीं सांसारिक जीवन से विरक्त होकर इन्होंने संन्यास धारण कर लिया.

1989 में किया था मौन धारण

मौनी महाराज अमेठी के बाबूगंज स्थित सगरा आश्रम के प्रमुख हैं. राष्ट्र कल्याण की भावना और भगवान शिव के दर्शन की इच्छा को लेकर महाराज ने 1989 में मौन धारण किया. मौन रहने और भगवान शिव की पूजा का सिलसिला 2002 तक चला. तभी से सब लोग इन्हें मौनी महाराज के नाम से जानने लगे.

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