विधायकों के असंतोष की गंभीरता को भांपते हुए कांग्रेस ने तत्काल इस नाराजगी रोकने के दिए आदेश…

नई दिल्ली/रांची। अपने नेताओं के पार्टी छोड़ने से हलकान कांग्रेस हाईकमान को झारखंड में उसके 12 विधायकों के विद्रोही तेवरों ने और परेशान कर दिया है। पार्टी की चौतरफा चुनौतियों के बीच झारखंड की नवगठित चंपई सोरेन सरकार में शामिल नहीं किए जाने से नाराज इन विधायकों के असंतोष के तेवरों को थामना सूबे में राजनीतिक स्थिरता के लिहाज से अहम है।

इसलिए विधायकों के असंतोष की गंभीरता को भांपते हुए कांग्रेस ने अपने रणनीतिकारों को तत्काल इस नाराजगी को संकट में तब्दील होने से रोकने के लिए लगा दिया है।

पार्टी हाईकमान की ओर से झारखंड के प्रभारी एवं कांग्रेस महासचिव गुलाम अहमद मीर को विधायकों से सीधे और निरंतर संवाद करने का विशेष निर्देश दिया गया है। झारखंड में विधायकों की नाराजगी से बढ़ी चिंता की सबसे बड़ी वजह सूबे में भाजपा की सियासी मौके की तलाश पर लगी निगाहें हैं।

विधायकों के तेवरों का समाधान निकालने से जुड़े पाटी के एक रणनीतिकार ने कहा भी कि झारखंड में हेमंत सोरेन को हटाने के बाद भी राजनीतिक बाजी पलटने में नाकाम रही भाजपा को अब मौका देना आत्मघाती होगा।

खासकर यह देखते हुए कि जेल जाने के बावजूद हेमंत ने चंपई सोरेन को आगे कर झामुमो में किसी तरह की अंदरूनी उथल-पुथल की गुंजाइश बंद कर दी। ऐसे में सूबे की सरकार की स्थिरता ही नहीं, बल्कि भाजपा के खिलाफ विपक्ष की लड़ाई को मजबूत करने का पूरा दारोमदार कांग्रेस पर है।

खरगे ने भी विधायकों के असंतोष की आवाज का संज्ञान लिया
सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी विधायकों के असंतोष की आवाज का संज्ञान लिया है और इसीलिए पार्टी के कुछ रणनीतिकारों को समझाने-बुझाने के साथ उनकी शिकायतें दूर करने का रास्ता निकालने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जाहिर तौर पर झारखंड के प्रभारी गुलाम अहमद मीर की इसमें केंद्रीय भूमिका है।

बताया जा रहा है कि कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल भी झारखंड के घटनाक्रमों को लेकर सक्रिय हो गए हैं। दरअसल कांग्रेस के इन 12 विधायकों ने अपना एक समूह बनाकर यह मांग की थी कि नई सरकार में पार्टी के नए चेहरों को मंत्री बनाया जाए।

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