अमित शाह अगर अपने बयान पर पश्चाताप नहीं करते हैं तो फिर देश में बसपा आंदोलन करेगी

उत्तर प्रदेश की सियासत में बसपा अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. बसपा का सियासी ग्राफ दिन ब दिन कम होता जा रहा है. ऐसे में अपने खिसकते जनाधार को रोकने और एक के बाद एक चुनावी हार से हताश बसपा को दोबारा से खड़ा करने के लिए मायावती कई सियासी प्रयोग करके देख चुकी है, लेकिन चुनावी सफलता नहीं मिली. ऐसे में संसद में संविधान पर चर्चा के दौरान डॉ. आंबेडकर पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के द्वारा दिए गए बयान को लेकर बसपा प्रमुख मायावती ने मोर्चा खोल दिया है. बसपा ने यूपी ही नहीं बल्कि देश भर में आंदोलन करने का ऐलान कर दिया है.

बसपा के कार्यकर्ता और नेता मंगलवार को अमित शाह के बयान को लेकर जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन करेंगे. मायावती ने खुद ट्वीट कर कहा है कि अमित शाह द्वारा दिया गया बयान लोगों के दिलों को आहत पहुंचाता है. ऐसे महापुरुष को लेकर संसद में इनके द्वारा कहे गए शब्दों से पूरे देश में सर्वसमाज के लोग काफी उद्वेलित,आक्रोशित और आन्दोलित हैं. अमित शाह अगर अपने बयान पर पश्चाताप नहीं करते हैं तो फिर देश में बसपा आंदोलन करेगी.

सड़क पर उतरेंगे BSP कार्यकर्ता
यावती ने साफ तौर पर कहा है कि दलित/बहुजनों को अपने पैरों पर खड़े होकर आत्म-सम्मान के साथ जीने के लिए आजीवन कड़ा संघर्ष व आरक्षण सहित उनको अनेकों कानूनी हक दिलाने वाले उनके सच्चे मसीहा बाबा साहब के नहीं रहने पर उनके अनुयाइयों का हित व कल्याण ही उनका सबसे बड़ा सम्मान है, जिसके लिए बीएसपी समर्पित है. कांग्रेस, बीजेपी आदि पार्टियां अगर बाबा साहेब का दिल से आदर-सम्मान नहीं कर सकती हैं तो उनका अनादर भी न करें. बाबा साहेब के चलते ही एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों को जिस दिन संविधान में कानूनी अधिकार मिले उसी दिन उन्हें सात जन्मों का स्वर्ग भी मिल गया है. वह भगवान की तरह परम पूजनीय हैं.

मायावती के ऐलान के बाद बसपा कार्यकर्ता मंगलवार को देश स्तर पर सड़क पर उतरेंगे. इससे पहले 21 अगस्त 2024 को बसपा कार्यकर्ताओं ने आरक्षण के वर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ भारत बंद का ऐलान किया था. बसपा के कार्यकर्ताओं ने जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन कर अपना विरोध जताया था. अब बसपा के कार्यकर्ता एक बार फिर से सड़क पर उतरने जा रहे हैं. इस बार आंबेडकर पर अमित शाह के द्वारा दिए गए बयान का मामला है. बसपा जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन कर अमित शाह से उनके बयान पर माफी मांगने की मांग करेंगे.

कैसे हुआ BSP का गठन
बता दें कि अस्सी के दशक में कांशीराम ने डा. आंबेडकर के विचारों को लेकर दलित समुदाय के बीच के शासन और सत्ता में भागीदारी के लिए बहुजन समाज पार्टी का गठन किया है. इस तरह कांशीराम ने दलित समाज के हक और हुकूक के लिए पहले डीएस-4 और 1984 में बसपा का गठन किया. बसपा ने यूपी की राजनीति में अपनी एक अलग छाप छोड़ी, जिसके सहारे मायावती चार बार मुख्यमंत्री बनी. दलितों के लिए डा. आंबेडकर किसी भगवान से कम नहीं है. ऐसे में अमित शाह के द्वारा दिए गए बयान को सियासी आधार बनाकर आंबेडकर के सम्मान की लड़ाई लड़ने के लिए बसपा सड़क पर उतर रही है.

बसपा की राजनीति देखें तो सड़क पर उतरकर संघर्ष करने और आंदोलन से वो दूर रहती रही है. बसपा प्रमुख मायावती मीडिया में बयान देकर ही अपने विरोध दर्ज कराती रही है, लेकिन बदले हुए दौर में बसपा के लिए सड़क पर उतरना सियासी मजबूरी बन गई है. दलित मुद्दों पर चंद्रशेखर आजाद जिस आक्रमक तरीके से आंदोलन कर रहे हैं, उसके जरिए वो दलित समुदाय के बीच अपनी सियासी जगह बनाते नजर आ रहे हैं. ऐसे में बसपा के लिए भी सड़क पर उतरने का दबाव बढ़ गया था, जिसके चलते पहले आरक्षण के वर्गीकरण के मुद्दे पर बसपा के कार्यकर्ता सड़क पर उतरे और अब डा. आंबेडकर पर अमित शाह के द्वारा दिए बयान को लेकर विरोध प्रदर्शन करने उतर रही है.

2012 के बाद से बसपा का घटा वोटबैंक
2007 में मायावती ने पूर्ण बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई, लेकिन इसके बाद से बसपा के कमजोर होने का सिलसिला शुरू हुआ तो अभी तक थमा नहीं. 2012 में मायावती के उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर होने के बाद से पार्टी का प्रदर्शन कभी भी बेहतर नहीं रहा. यूपी में बसपा का वोट शेयर घटकर 9.39 फीसदी के करीब पहुंच गया है. सूबे में घटते जनाधार और दलित वोटबैंक पर जंग के साथ ही बसपा के लिए चुनौती बढ़ गई है. मायावती सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है.

बसपा से बिखरने लगे जाटव भी
उत्तर प्रदेश में दलित वोट 21 फीसदी है. बसपा को 2019 में मिला वोट शेयर 19.43 प्रतिशत से गिरकर 9.39 प्रतिशत पर पहुंच गया. यह दिखाता है कि नॉन जाटव वोटर तो पहले ही उससे दूर हो गए थे, 2024 के लोकसभा चुनाव से जाटव मतदाता भी छिटक गए हैं. जाटव जाति के मतदाताओं का 60 फीसदी हिस्सा अभी भी बसपा के साथ रहा, लेकिन उनके 30 फीसदी वोट सपा-कांग्रेस लेने में सफल रहीं. महज 10 फीसदी वोट ही बीजेपी की ओर गया. इसी तरह पासी वोट में भी बिखराव दिखा है. यही वजह है कि मायावती अपने कोर वोटबैंक को हासिल करने की कवायद में है.

बसपा सड़क पर उतरकर गांव-गांव जाकर एससी-एसटी वर्ग के लोगों को यह समझाने की कोशिश करने में है कि डा. आंबेडकर को लेकर कांग्रेस और बीजेपी गंभीर नहीं है, जिसके लिए आए दिन अपमान करती रहती है. इस तरह मायावती की चिंता अपने बिखरते वोटबैंक को बचाने की है. इसको लेकर बसपा एक्टिव है और पूरे आक्रमक तरीके से डा. आंबेडकर के सम्मान की लड़ाई लड़ने का ऐलान कर दिया है.

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