वाराणसी। वर्ष 2024 भारत के लिए अब तक का दूसरा सबसे गर्म वर्ष था। अब तक का सर्वाधिक गर्म साल 2016 रहा है। अगर वैश्विक स्तर पर बात करें तो पिछले 12 महीनों (अप्रैल 2023-मार्च 2024) में वैश्विक औसत तापमान 1991-2020 के औसत से 0.70 डिग्री सैल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया। वर्ष 2024 में वैश्विक सतह का तापमान 20वीं सदी के औसत तापमान से 1.35 डिग्री सैल्सियस अधिक है। एक शोध के अनुसार, इस बात की 55 फीसदी आशंका है कि 2024 इतिहास में सबसे गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड हो सकता है। वैश्विक तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) और जलवायु परिवर्तन का किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर मूलत: दो तरीकों से प्रभाव पड़ता है।
पहला, ‘अल्पकालिक प्रभाव’, जिसमें चरम मौसमी घटनाओं, जैसे बहुत ज्यादा गर्मी अत्यधिक ठंड या बेकाबू बारिश के कारण होने वाले प्रत्यक्ष प्रभाव शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, चरम मौसमी घटनाओं के कारण सिर्फ 2022 में ही भारत को लगभग 4.2 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। दूसरे प्रभाव धीमे मगर ‘दीर्घकालिक’ हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक दक्षिण-पश्चिम मानसून है। भारत की वार्षिक वर्षा का 75 प्रतिशत हिस्सा इसी से मिलता है। ग्लोबल वाॄमग और जलवायु परिवर्तन की वजह से इसमें अनिश्चितता बढ़ी है। इसमें अनिश्चितता का मतलब कृषि उत्पादन, ऊर्जा आपूर्ति और फलस्वरूप रोजगार पर दीर्घकालीन भयावह असर है। इसके मुख्यत: तीन असर हो सकते हैं।
गहरा सकता है खाद्य आपूर्ति संकट, बढ़ेगी महंगाई : बढ़ते तापमान और बेमौसमी बारिश से फसलों को बहुत नुकसान पहुंचता है। इससे उपज कम हो जाती है और बाजार में मांग बढ़ती है। जिसका सीधा संबंध महंगाई से है। उसके अलावा ऐसे नुकसान से निपटने के लिए राहत और बुनियादी ढांचे पर जो खर्च होता है उसका नतीजा तमाम लोगों के लिए करों में वृद्धि के रूप में निकलता है। यह हमारे विदेशी मुद्रा भंडार को भी प्रभावित करती है क्योंकि सरकार उन फसलों के निर्यात पर पाबंदी लगा देती है, जिनकी उपज कम होती है। साल 2022 में बढ़ते तापमान की वजह से गेहूं का उत्पादन कम हुआ था और इस कारण भारत ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। जनवरी 2024 तक भारत में चीनी उत्पादन 5.28 प्रतिशत कम आंका गया है, जिसका प्रमुख कारण महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने की उपज का कम होना माना गया है। भारत पिछले 6 वर्षों से चीनी का निर्यातक रहा है। लेकिन अब विश्लेषक कयास लगा रहे हैं कि शायद अगले साल तक भारत को चीनी आयात भी करनी पड़ सकती है।
घटेंगे काम के घंटे, जा सकती हैं नौकरियां: बढ़ती गर्मी और विभिन्न चरम मौसमी घटनाओं का सीधा असर श्रम प्रधान क्षेत्रों पर बहुत ज्यादा पड़ेगा। इससे खेती-बाड़ी, निर्माण गतिविधियों, परिवहन और पर्यटन कारोबार खासे प्रभावित हो सकते हैं। दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका गंभीर असर हो सकता है। ‘अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन’ (आई.एल.ओ.) का अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का सबसे अधिक सामना कृषि और निर्माण श्रमिकों को करना पड़ेगा। भारत में बढ़ती गर्मी के परिणामस्वरूप 2030 तक काम के घंटों में 5.8 प्रतिशत तक की गिरावट आने का अनुमान है, जो करीब 3.4 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के नुकसान के बराबर होगा। इससे जी.डी.पी. में अनुमानित 2.50 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है।
बढ़ेगी औद्योगिक लागत, समग्र विकास पर होगा असर : बढ़ता तापमान कच्चे माल यानी कृषि उपज और श्रम पर प्रभाव डालने के साथ औद्योगिक विकास को भी प्रभावित कर सकता है। इसमें महत्वपूर्ण औद्योगिक बुनियादी ढांचे को प्रत्यक्ष नुकसान मानव संसाधन की उपलब्धता एवं उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव और कच्चे माल के भंडारण से सम्बंधित परिचालन लागत में वृद्धि शामिल है। उद्योगों को पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए प्रौद्योगिकी में अधिक निवेश करना पड़ सकता है, जिससे उत्पादन की लागत बढ़ जाएगी। इसके अतिरिक्त समुद्र का बढ़ता स्तर बाढ़, चक्रवाती तूफान, भूस्खलन आदि सड़क, रेलवे और समुद्री मार्गों जैसे परिवहन साधनों को सीधे प्रभावित करेंगे, जिससे भी आपूर्ति शृंखला बाधित हो सकती है। पिछले वर्ष 4 अक्तूबर को सिक्किम के चुंगथांग में 1200 मैगावाट की तीस्ता जलविद्युत परियोजना का 60 मीटर ऊंचा कंक्रीट बांध हिमानी झील के फटने से आई बाढ़ में ढह गया था। इस तरह की घटनाओं की आशंका और भी बढ़ेगी, जिसका असर समग्र विकास पर पड़ेगा।
हमारे देश की राजनीतिक चेतना में जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान का मुद्दा कितने हाशिए पर है, इसे समझने के लिए दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों पर नजर डाली जा सकती है। सत्तारूढ़ भाजपा ने पर्यावरण को अपने घोषणा पत्र में पेज नंबर 71 पर जगह दी है। यह उसके घोषणा पत्र का समापन ङ्क्षबदू है। वहीं कांग्रेस ने इसे अपने घोषणा पत्र में पेज 41 पर जगह दी है। जो उसका आखिरी अध्याय है। गौरतलब है कि 2048 तक दुनिया के औसत तापमान में 4 डिग्री की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। साथ ही बर्फ पिघलने से बाढ़ जैसे हालात बन सकते हैं और 2050 तक 20 फीसदी देश जल संकट से घिर सकते हैं। इसके साथ ही 2030 तक बढ़ते तापमान के कारण 2,50,000 लोगों की मौतें हो सकती हैं। वस्तुत: गर्मी बढऩे से ऊर्जा की मांग बढ़ेगी, जिससे वायु प्रदूषण फैलेगा। एक और अनुमान है कि ग्लोबल वाॄमग से 20 अरब डॉलर का आॢथक नुकसान हो सकता है। कृषि पैदावार में गिरावट आने से भुखमरी बढ़ेगी और अकाल जैसे हालात बन सकते हैं।