प्राण प्रत‍िष्‍ठा के एक महीने बाद भी नहीं थम रहा श्रद्धालुओं का उल्लास

अयोध्या। 22 तारीख ही थी, जब नवनिर्मित मंदिर में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के साथ राम भक्तों की चिर साध पूरी हुई थी। प्रतीक्षा के पूर्ण होने से उपजा उल्लास माहभर बाद भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। अनुमान था कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद चार-छह दिनों तक आस्था का ज्वार उमड़ेगा और इसके बाद आस्था का ज्वार सामान्य होगा, लेक‍िन यह अनुमान गलत सिद्ध हो रहा है। लाखों श्रद्धालुओं की नित नई पांत भव्य मंदिर में विराजे रामलला को शिरोधार्य कर रही है। 31वें दिन भी नवनिर्मित मंदिर में विराजे रामलला की चौखट पर आस्था का ज्वार उमड़ा।

‘जिन खोजा तिन पाइयां’ की तर्ज पर रामलला के दर्शन मार्ग पर श्रद्धालु पूरी त्वरा से आगे बढ़ रहे होते हैं। आराध्य को पाने की प्रतिबद्धता के चलते वह दिन उगते-उगते स्नान-ध्यान से निवृत्त हो श्रीराम के दर्शन से पूर्व बजरंगबली के दर्शन-पूजन की परंपरा का पालन भी कर चुके होते हैं। जनवरी की तरह गुरुवार को भी सरयू तट से ही उल्लास का प्रवर्तन होता है। सरयू में डुबकी लगाने के साथ श्रद्धालुओं का तन ही नहीं मन भी प्रफुल्लित प्रतीत होता है और अधिक ताजगी एवं ऊर्जा के साथ राम मंदिर की ओर आगे बढ़ने से पहले नागेश्वरनाथ को शिरोधार्य करते हैं।

सरयू तट से रामपथ पर 500 मीटर आगे बढ़ते हुए आस्था का प्रवाह चंचलता से मुक्त होकर गहन-गंभीर रुख अंगीकार करने लगता है। वह बस बढ़ रहे होते हैं, लेकि‍न उनकी पदचाप की समवेत गमक उल्लास का दूसरा आयाम प्रशस्त करती है और यह बताती है कि 500 वर्ष तक इस दिन की प्रतीक्षा करने वाले रामभक्त चिर साध शिरोधार्य करने के प्रति किसी हड़बड़ी में नहीं हैं। उनकी दृढ़ता और निश्चिंतता बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी की 76 सीढ़ियों पर भी परीक्षा देती है।

छोटी सी जगह में हजारों श्रद्धालु जहां के तहां खड़े रह कर अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हैं और अगले पल सावधानी एवं अनुशासन का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए आगे बढ़ते हैं। रामकथा मर्मज्ञ एवं मणिरामदास जी की छावनी ट्रस्ट के सदस्य आचार्य राधेश्याम कहते हैं, राम मंदिर वस्तुत: भावोल्लास का ही संवहन-संवर्द्धन करता है और हमारा भाव ही जीवन के विविध क्षेत्रों में व्यंजित होता है। यह देखना रोचक होगा कि उल्लास व्यंजित करने वाली आस्था कितने दिनों तक शिखर की ओर उन्मुख होगी। हनुमानगढ़ी से जुड़े महंत गौरीशंकरदास जैसे समीक्षकों का मानना है कि राम मंदिर के साथ अयोध्या की नवैयत बदल गई है और अब इसमें अवरोह की आशंका नहीं है।

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