नई दिल्ली। कोई संदेह नहीं कि लोस के इस महासमर में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही भाजपा का चेहरा हैं, लेकिन 400 पार सीटों के इस बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कई सियासी योद्धाओं को अपना रणकौशल दिखाना है। ये ऐसे योद्धा हैं, जिन्होंने अपनी राज्य में दम दिखाते हुए अपना प्रभाव छोड़ा है और राष्ट्रीय राजनीति में स्थान बनाया है। इन्हीं में एक प्रमुख नाम असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का है, जो कांग्रेस से आकर बहुत कम समय में भाजपा के काफी भरोसेमंद बन गए हैं।
पूर्वोत्तर में सफलता की चोटी चढ़े हिमंत को महासमर के बड़े मैदान में महारथ दिखानी है। तय है कि भाजपा के प्रखर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के चेहरे के रूप में देश के कई राज्यों के चुनावी मंचों पर वह दिखाई देंगे। वह स्वयं चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन उन पर निगाहें सभी की रहेंगी। इसका कारण है। उनके तीखे तेवर और धारदार बयान हैं, जिससे चुनाव प्रचार में असम या पूर्वोत्तर से इतर राज्यों में भी उनकी मांग रहती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह उन्होंने अपनी पहचान बनाई है तो सिर्फ तीखे बोल ही उनकी विशेषता नहीं है, बल्कि उनकी कहानी काफी अलग है।
इस तरह चढ़ा राजनीतिक ग्राफ
आल इंडिया असम स्टूडेंट्स यूनियन से जुड़कर छात्र राजनीति में उतरे हिमंत असम गण परिषद में सक्रियता दिखाते हुए कांग्रेस में आए। तेजतर्रार नेता के रूप में पहचान बनाई, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व से मनमुटाव के बाद 2015 में भाजपा का दामन थाम लिया । राहुल गांधी के मुखर आलोचक बने हिमंत की ऊर्जा को भाजपा ने भुनाया तो उन्होंने राजनीतिक कौशल दिखाते हुए 2016 में पहली बार असम में भाजपा की सरकार बनवा दी। 2016 में नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के अध्यक्ष बने हिंमत ने अपनी भूमिका को बखूबी निभाते हुए पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में न सिर्फ भाजपा और राजग की सरकारें बनवाईं, बल्कि सख्त प्रशासक के रूप में भी उभरे।
‘पालिटिकल केमिस्ट्री के जानकार
महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक के वक्त एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों की मेजबानी का जिम्मा हिमंत को सौंपा गया। उसके बाद महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार गिर गई थी। राजनीति विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट हिमंत ‘पालिटिकल केमिस्ट्री’ के जानकार माने जाने हैं।
त्वरित निर्णय, सूझबूझ और परिश्रम ने किया प्रभावित
माना जाता है कि हिमंत बिस्व सरमा के त्वरित निर्णय, सूझबूझ और परिश्रम की क्षमता से भाजपा शीर्ष नेतृत्व भी प्रभावित है। यही वजह है कि भाजपा उन्हें राज्य सीमा के बाहर भी बड़ी जिम्मेदारियां सौंपने में हिचकती नहीं है। पंजाब में चरमपंथी अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी के बाद उसे असम के डिब्रूगढ़ की जेल में भेजा गया।
इन निर्णयों से आए सुर्खियों में
असम कैटल प्रिवेंशन अमेंडमेंट एक्ट बनाकर गो-हत्या पर अंकुश, एनआरसी पर सख्त रुख, मदरसों को सामान्य शिक्षा स्कूलों में बदलने का निर्णय, अवैध मदरसों पर बुलडोजर, बाल विवाह के आरोपितों को जेल भेजने जैसे निर्णय लेकर विवाद के साथ सुर्खियां बटोरने वाले असम के मुख्यमंत्री लोकसभा चुनाव में बड़े मतदाता वर्ग के लिए आकर्षण हो सकते हैं।