नई दिल्ली। रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली, पानी, सड़क की तरह से शांति और सुरक्षा भी आम आदमी के लिए अहम है। यही कारण है कि शांति और कानून एवं व्यवस्था हमेशा चुनावी मुद्दा बनता रहा है। इस बार भी बंगाल में संदेशखाली के मामले ने कानून एवं व्यवस्था के मुद्दे को सतह पर ला दिया है।
2014 के लोकसभा चुनाव में नारी सुरक्षा बना था अहम मुद्दा
पिछले पन्ने पलटें तो दिल्ली में 2012 में निर्भया कांड के बाद हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में नारी सुरक्षा अहम मुद्दा बन गया था। इसी तरह से सितंबर, 2016 में उड़ी और फरवरी, 2019 में पुलवामा में हुए आतंकी हमलों को विपक्ष ने लोकसभा चुनाव में अहम चुनावी मुद्दा बनाया था। इसके जवाब में भाजपा ने सर्जिकल और एयर स्ट्राइक का हवाला देकर कहा कि पहली बार आतंकियों को उनके घर में घुसकर मारा गया है। इसके साथ ही शांति और कानून एवं व्यवस्था के मुद्दे कई विधानसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।
गहलोत सरकार के खिलाफ बना ये मुद्दा
2022 में उत्तर प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था में सुधार और अपराध में आई कमी योगी आदित्यनाथ सरकार के पक्ष में गई थी। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में महिलाओं के साथ अपराध का बढ़ा ग्राफ कांग्रेस के गहलोत सरकार के खिलाफ अहम मुद्दा बन गया था। हैरानी की बात है कि शांति और बेहतर कानून एवं व्यवस्था के लिए सबसे अहम माने जाने वाले पुलिस सुधार कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन सके। 2007 में सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशानिर्देश के बाद भी किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ने संबंधित राज्यों में इसे लागू करने की कोशिश नहीं की।
वैसे मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल के अंतिम चरण में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के माध्यम से भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में आमूलचूल प्रदर्शन कर उसे न्याय आधारित और अत्याधुनिक बनाने की पहल की है। आपराधिक न्याय प्रणाली का अहम हिस्सा होने के कारण इसमें पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार और आपराधिक जांच में अत्याधुनिक उपकरणों और तकनीक के प्रयोग के प्रविधान किए गए हैं।
एक जुलाई से लागू हो जाएंगे आपराधिक न्याय प्रणाली से जुड़े तीनों कानून
आपराधिक न्याय प्रणाली से जुड़े तीनों कानून इस वर्ष एक जुलाई से लागू हो जाएंगे। यह देखना अहम होगा कि नए कानूनों के लागू होने के बाद पुलिस की कार्यप्रणाली में कितना बदलाव आता है। मतदान में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए शांति और कानून एवं व्यवस्था का मुद्दा चुनावों में काफी अहम हो गया है। किसी भी क्षेत्र में अशांति की स्थिति और कानून एवं व्यवस्था बिगड़ने का सबसे अधिक खामियाजा महिलाओं और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति से आने वाले गरीब और वंचित तबके को भुगतना पड़ता है।
अपराधों को रोकने में ज्यादा कारगर रहा है भाजपा सरकारों का प्रदर्शन
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी), जो पूरे देश में अपराधों का राज्यवार आंकड़ा एकत्रित करता है, के अनुसार भाजपा की सरकारों का प्रदर्शन अपराधों को रोकने में ज्यादा कारगर रहा है।
आंकड़ों में मजबूत भाजपा
आंकड़ों के मुताबिक भाजपा शासित राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, असम, मध्य प्रदेश में इन कमजोर तबकों के खिलाफ अपराधों में भी कमी दर्ज की गई है, जबकि विपक्ष के शासन के दौरान राजस्थान, तेलंगाना, तमिलनाडु जैसे राज्यों में इनके खिलाफ अपराध में बढ़ोतरी हुई है।
असम में अनुसूचित जाति की महिला के खिलाफ दुष्कर्म की एक भी घटना रिकार्ड नहीं की गई, जबकि सीपीएम शासित केरल में 193 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले पांच सालों में लगातार बढ़ रहे हैं। इसी तरह से संदेशखाली में महिलाओं के साथ अत्याचार को भाजपा ने बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने का एलान किया है और इसका असर भी नजर आ रहा है।
सांप्रदायिक दंगे रोकने में सफल रहीं भाजपा सरकारें
सांप्रदायिकता भाजपा के खिलाफ विपक्ष का अहम चुनावी मुद्दा रहा है और इसके सहारे वह अल्पसंख्यक मतदाताओं को एकजुट करने में सफल भी रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि भाजपा की सरकारें सांप्रदायिक दंगे रोकने में विपक्ष की तुलना में ज्यादा सफल साबित हुई हैं।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक असम में सांप्रदायिक हिंसा में 80 फीसद की गिरावट आई है, जबकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस शासन के दौरान बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसी तरह से उत्तर प्रदेश में भी सांप्रदायिक दंगों में लगातार गिरावट आ रही है। इनकी संख्या आधी रह गई है। केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में भी पिछले तीन सालों में सांप्रदायिक दंगों में 33 फीसद से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है।
मणिपुर को मुद्दा बन सकता है विपक्ष
नौ महीने पहले कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने मणिपुर हिंसा को लेकर जिस तरह से संसद ठप की थी, उससे लगा था कि विपक्ष इसे आंतरिक सुरक्षा से जोड़कर चुनाव में बड़ा मुद्दा बना सकता है। लेकिन मणिपुर को लेकर विपक्ष का हमलावर धीमा पड़ गया। वहीं, मोदी सरकार इसके पीछे नस्ली हिंसा के ऐतिहासिक संदर्भों का हवाला देकर इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनने से रोकने की कोशिश करती रही है। मणिपुर हिंसा के बावजूद पिछले 10 सालों में पूरे पूर्वोत्तर भारत में हिंसा में भारी गिरावट और अलगाववादी गुटों के साथ समझौतों से आई शांति को भाजपा वहां चुनावी मुद्दा बनाने में जुटी है।
- 2012 के निर्भया कांड के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में नारी सुरक्षा अहम मुद्दा बन गया था।
- 2007 में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के बाद भी किसी भी दल की सरकार ने पुलिस सुधार कानून लागू नहीं किए।
- 2022 में कानून, व्यवस्था में सुधार व अपराध में आई कमी योगी सरकार के पक्ष में गई।