नई दिल्ली। दिल्ली सरकार ने हाल ही में महिलाओं को प्रतिमाह एक हजार रुपये सम्मान निधि देने की घोषणा की है। यह सिर्फ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का एक कदम नहीं, बल्कि क्रम है, जो देश की राजनीति में महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए चल पड़ा है। अधिकतर राज्यों में महिला केंद्रित योजनाएं चलाई जा रही हैं तो उसके पीछे का कारण स्पष्ट दिखाई भी देता है।
लगातार बढ़ रही महिलाओं की भागीदारी
दरअसल, जागरूक मतदाता के तौर पर महिलाओं की भागीदारी तो चुनावों में कई वर्षों से लगातार बढ़ रही है, पर इस ‘शक्ति’ को मान-सम्मान दिलाने के कदम और कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से नमन कर निर्णायक जनादेश के रूप में जो आशीर्वाद नरेन्द्र मोदी सरकार ने लिया, उसने अन्य दलों की भी आंखें खोल दीं अलग-अलग राज्यों में राजनीतिक दलों ने लुभावनी योजनाओं से प्रयास किए और अब लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इन पर नजर है।
भाजपा को मिला महिला वोटरों का साथ
हाल ही में हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में यूं तो हार-जीत के कई कारण रहे होंगे, पर भाजपा की जीत के पीछे बढ़ा कारण महिला मतदाताओं का समर्थन माना जा रहा है। मध्य प्रदेश में पिछली भाजपा सरकार द्वारा महिलाओं को प्रतिमाह 1250 रुपये देने के लिए शुरू की गई लाडली बहना योजना को विशेष तौर पर गेमचेंजर माना गया यही कारण है कि ज्यादातर चुनावी राज्यों में ज्यादातर दलों के घोषणा-पत्रों में महिला केंद्रित योजनाएं प्रमुखता से शामिल थीं।
मोदी सरकार ने विभिन्न योजनाओं से ऐसे खींची महिलाओं के मान की बड़ी लकीर
महिलाओं को लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओ मे 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम लाए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की आबादी को जिन प्रमुख चार जातियों में बांटा, उनमें महिलाओं को एक जाति की संज्ञा देते हुए प्राथमिकता में रखा है।
2014 में सत्ता में आते ही देशभर में गरीबों के घरो मे शौचालय बनवाने के निर्णय को महिलाओं के मान-सम्मान से जोड़ते हुए इज्जत घर नाम दिया गया।
उज्जवला योजना के तहत 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को मुफ्त रसोई गैस का सिलेंडर देकर उन्हे धुए और उससे जनित बीमारियों से राहत दिलाई।
जल संकट से जूझते क्षेत्रों में महिलाओं को दूर से भरकर पानी न लाना पड़े, इसलिए हर घर जल से नल पहुंचाने के लिए योजना शुरू की।
पीएम आवास योजना के तहत बनने वाले घरों में से 60 प्रतिशत से अधिक घरों का मालिकाना हक महिलाओं को देकर उन्हें सशक्त बनाया।
गर्भवती महिलाओं के लिए मातृ वंदन योजना शुरू की, जिसमे बच्चे के जन्म लेने पर महिलाओं को छह हजार रुपये की मदद दी जाती है।
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, पीएम स्वनिधि योजना, मुद्रा योजना व लखपति दीदी जैसी योजनाओं से उन्हें सक्षम व आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रयास तेज किए।
वोटरों को लुभाती योजनाएं
वर्तमान परिदृश्य को भी देखें तो महिला मतदाताओं को आकर्षित करने या बांधे रखने के जतन कोई सरकार कमजोर नहीं होने देना चाहती है। हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने इंदिरा गांधी प्यारी बहना सम्मान निधि के तहत प्रति महीने महिलाओं को 1500 रुपये देना शुरू भी कर दिया है। छत्तीसगढ़ सरकार महतारी वंदन योजना के तहत महिलाओं को एक हजार रुपये प्रतिमाह सम्मान निधि दे रही है। कर्नाटक सरकार ने लक्ष्मी योजना शुरू कर रखी है, जिसमें गरीबी रेखा ने नीचे जीवनयापन करने वाली महिलाओं को प्रति महीने दो हजार रुपये दिए जा रहे हैं।
मातृशक्ति ऐसे बनी चुनावी शक्ति
मातृशक्ति आखिर चुनावी शक्ति बन कैसे रही है। इसे आंकड़ों से समझते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में पुरुष और महिला मतदाताओं के मतदान प्रतिशत में सिर्फ डेढ़ प्रतिशत का अंतर था, जबकि 2019 में वह पुरुषों से आगे निकल गई। 2019 के चुनाव में पुरुषों का मतदान प्रतिशत जहां 67.02 था, वहीं महिलाओं का 67.18 प्रतिशत।
यही नहीं, 2024 के चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या पिछली बार की तुलना में ज्यादा होगी। चुनाव आयोग के मुताबिक 2024 के चुनाव में कुल 96.8 करोड़ मतदाता हिस्सा लेंगे। इनमें 49.7 करोड़ पुरुष और 47.1 करोड़ महिला मतदाता होंगी। 2019 की तुलना में करीब तीन करोड़ पुरुष मतदाता बढ़े हैं तो महिला मतदाताओं की संख्या करीब चार करोड़ बढ़ी है।