केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने पूर्व की कई नीतियों में किया संशोधन

नई दिल्ली। सिर्फ रोटी, कपड़ा और मकान ही नहीं, आज के दौर में बिजली भी जीवन की मूलभूत जरूरतों में ही शामिल है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में विद्युतीकरण के लिए प्रयास पिछली यूपीए सरकार ने भी किए, लेकिन नीतियों की खामियां ‘ब्रेकडाउन’ साबित हुई। परिणामतः आजादी के छह दशक बाद भी 17 हजार गांव अंधेरे में डूबे रहे।

बिजली क्षेत्र की डांवाडोल स्थिति में ‘कोढ़ में खाज’ वाली कहावत कोयला ब्लाक आवंटन ने चरितार्थ कर दी, जिसके कारण इस क्षेत्र में कंपनियों का भारी-भरकम निवेश और बैंकों का लाखों करोड़ रुपया एनपीए के तौर पर फंस गया।

अब आंकड़े केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के इस दावे को पुष्ट करते हैं कि बीते 10 वर्ष में देश उस अनिश्चितता के अंधेरे से निकला है, गांव-गांव और घर-घर बिजली पहुंचने से देश में विकास पथ पर बढ़ने की नई ऊर्जा का संचार हुआ है। 2014 में केंद्र में जब भाजपा सत्ता में आई, तब उसे विरासत में अच्छी विकास दर वाली अर्थव्यवस्था तो मिली, लेकिन डांवाडोल बिजली सेक्टर भी मिला।

जुलाई, 2012 में बिजली की कमी से देश के अधिकांश हिस्सों में बिजली आपूर्ति का संकट था। कोयला ब्लाक आंवटन घोटाले के बाद कोयला आपूर्ति की स्थिति पूरी तरह से अनिश्चतता थी। देश में 25 हजार मेगावाट के गैस आधारित पावर प्लांट तैयार थे, पर इनके लिए गैस अनुपलब्ध थी (यह स्थिति अब भी है)।

बिजली वितरण कंपनियों की स्थिति पूरी तरह से लड़खड़ा रही थी। ऐसे में अगर पिछले 10 वर्षों के रिकार्ड को देखें तो ऊर्जा सुरक्षा के हर क्षेत्र में स्थिति सुधरी हुई दिखती है वजह यह है कि इस सरकार ने बिजली सेक्टर में पूर्व की सरकारों की गलतियों से सबक लिया और लगातार नीतियों में संशोधन किया। उसके परिणाम सामने हैं।

देश के सभी गांव और सभी घरों तक बिजली पहुंच चुकी है। हर घर को बिजली देने के लिए शुरू की गई सौभाग्य योजना के तहत करीब 2.86 करोड़ घरों को बिजली दी गई है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन 21 घंटे व शहरी क्षेत्र में तकरीबन 24 घंटे बिजली की आपूर्ति हो रही है।

पिछले वर्षों में कुल 1.943 लाख मेगावाट बिजली क्षमता जोड़ी गई है, जिससे देश की कुल बिजली उत्पादन की क्षमता 4.31 लाख मेवागाट हो चुकी है, जबकि अधिकतम खपत 2.44 लाख मेगावाट ही गई है। 2023-24 के दौरान बिजली की मांग रिकार्ड 2.43 लाख मेगावाट तक पहुंच गई थी। जिसकी आपूर्ति करने में कोई परेशानी नहीं हुई।

2021 में कोयले की कमी से जो समस्या पैदा हुई थी, उससे सरकार और सरकारी कंपनियों ने भी सबक लिया और यह समस्या दोबारा पैदा नहीं होने दी गई। यूपीए के कार्यकाल में एक समय देश के 100 ताप बिजली घरों में से दो तिहाई में कोयला आपूर्ति की क्रिटिकल स्थिति (सात दिनों से कम) में चल रहे थे। अब स्थिति पूरी तरह से सुधर चुकी है।

बिजली उत्पादन और वितरण की प्रक्रिया में इस तरह हुए मजबूत

कोयला उत्पादन

वर्ष 2013-14 में देश में 42.64 करोड़ टन कोयला उत्पादन हुआ था, जो वर्ष 2023-24 में पहली बार 100 करोड़ टन को पार करने जा रहा है। अब भारत एक कोयला निर्यातक देश बनने का रोडमैप तैयार कर रहा है। कोयला मंत्रालय की योजना के मुताबिक, वर्ष 2024-25 से भारत एक नेट कोयला निर्यातक देश बन सकता है। ऐसा नहीं है कि तब भारत कोयला के आयात को पूरी तरह से खत्म कर देगा, लेकिन सारी योजनाएं कारगर रहीं तो भारत अपनी पूरी कोयला मांग को घरेलू उत्पादन से पूरा करने में सक्षम होगा।

बिजली वितरण में सुधार

बिजली चोरी और ट्रांसमिशन व डिस्ट्रीब्यूशन (टीएंडडी) से होने वाली हानि बिजली क्षेत्र की एक बड़ी समस्या थी। अब यह काबू में दिख रही है। जुलाई, 2021 से लागू रिवैम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सैक्टर स्कीम (आरडीएसएस) से बिजली वितरण कंपनियों को 3.03 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि टीएंडडी हानि घटाने के लिए दी गई है। अगस्त, 2023 के आंकड़े बताते हैं कि इसका स्तर पहली बार 16 प्रतिशत से कम (15.4 (प्रतिशत) पर आया है। वर्ष 2013-14 में यह 22 प्रतिशत से ज्यादा था। अब केंद्र सरकार ने इसे 10 प्रतिशत से नीचे लाने का लक्ष्य राज्यों को दिया है।

बिजली की बड़ी बचत

देश में प्रकाश उत्सर्जक डायोड (एलईडी बल्ब लगाने के लिए सरकार ने उजाला अभियान चलाया। इससे वर्ष 2014 से अभी तक 48 अरब यूनिट बिजली सालाना बचाने में मदद मिली है। सरकार का दावा है कि इससे 3.90 करोड़ टन कम कार्बन उत्सर्जन किया गया है। वर्ष 2015 में पहली बार केंद्र सरकार के समर्थन से देशभर में स्ट्रीट लाइट को बदलने व वहां एलइडी बल्ब लगाने का अभियान एसएलएनपी शुरू किया गया था। एलईडी बल्ब की कीमतों में 90 प्रतिशत तक की गिरावट हुई और भारत आज इसका एक बड़ा निर्यातक है। इसी तरह से पहली बार वर्ष 2020 में बिजली ग्राहकों के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर नियम लागू किया गया। ग्राहकों को यह अधिकार दिया गया कि वह सुरक्षित, पर्याप्त और गुणवत्ता वाली बिजली की मांग अपने क्षेत्र की वितरण कंपनी से कर सकते हैं। उक्त हालात इसलिए बने हैं, क्योंकि बिजली क्षेत्र को लेकर लगातार क्रियाशील नीतियां बनाई गई।

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