नई दिल्ली। हर साल माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ज्ञान, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। इस दिन को बसंत पंचमी के नाम जाना जाता है। इस बार माघ महीने में बसंत पंचमी का त्योहार 14 फरवरी को मनाया जाएगा। इस खास अवसर पर विधिपूर्वक मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करने का विधान है।
मां सरस्वती को पीला रंग बेहद प्रिय है। इसलिए लोग इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं और मां सरस्वती को पीले फल और मीठे पीले चावल का भोग लगाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पूजा के दौरान मां सरस्वती व्रत कथा का पाठ करने से साधक की मनचाही मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सभी बिगड़े काम भी बनने लगते हैं। साथ ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। आइए पढ़ते हैं बसंत पंचमी व्रत कथा।
बसंत पंचमी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, जगत के पालनहार भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की। उन्होंने महसूस किया कि जीवों के सर्जन के बाद भी पृथ्वी पर चारों तरफ मौन छाया रहता है। तब उन्होंने भगवान विष्णु से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया। ऐसा करने से पृथ्वी पर एक अद्भुत शक्ति अवतरित हुई। छह भुजाओं वाली इस स्त्री के एक हाथ में पुष्प, दूसरे हाथ में पुस्तक, तीसरे और चौथे हाथ में कमंडल और बाकी के दो हाथों में वीणा और माला थी।
ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने के लिए कहा। जब देवी ने मधुर नाद किया, तो पृथ्वी के सभी जीव-जंतुओं को वाणी सुनने को मिली और उत्सव जैसा माहौल हो गया। ऋषियों ने भी इस वाणी को सुना तो वह भी झूम उठे, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। वाणी से जो ज्ञान की लहर व्याप्त हुईं। उन्हें ऋषिचेतना ने संचित कर लिया और तभी से इसी दिन बंसत पंचमी के पर्व मनाने की शुरुआत हुई।