प्रदेश के सरकारी अस्पतालों का बुरा हाल : डॉ. रागिनी सोनकर

स्वास्थ्य सेवा पर सरकार ने कम बजट देकर गरीब जनता को छला

विधानसभा में डॉ रागिनी ने उठाया सवाल, कहा सब कुछ रामभरोसे

जौनपुर। उप्र विधानसभा के बजट सत्र के अंतिम दिन शनिवार की रात में मछलीशहर की विधायक डॉ. रागिनी सोनकर ने प्रदेश के अस्पतालों में दुर्व्यवस्था का मामला उठाया । कहा कि सरकारी अस्पतालों के साथ कोलैबोरेट किए गए प्राइवेट अस्पताल और मरीज दोनों का बुरा हाल है। प्राइवेट अस्पतालों का भुगतान नहीं हो पा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार रामराज का दावा करती है रामराज में दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, रामराज काहु नहीं व्यापा।” मतलब राम के राज में देह से संबंधित रोग, दैवीय प्रकोप और भौतिक आपदा किसी प्रकार का प्रभाव नहीं था। राजा रामचन्द्र ने सभी प्रकार के प्रकोपों पर विजय प्राप्त कर लिया लेकिन भाजपा की सरकार में जब चुनाव होता है तो जनता हार जाती है और बीजेपी जीत जाती है। उन्होंने प्रदेश के सरकारी अस्पतालों का जिक्र करते हुए कहा कि अस्पताल में मूलभूत सुविधाएं नहीं है । कहीं वेंटीलेटर तो कहीं स्ट्रेचर और व्हीलचेयर तक नहीं मिलता। एक्सीडेंटल मरीज के डिजीज के लिए अस्पताल में आधुनिक दवाएं और थर्ड, फोर्थ, फाइव जनरेशन की एंटीबायोटिक उपलब्ध नहीं है।

वह दवा दी जाती है जो रेजिस्टेंस कर गई हैं। ऐसे में गरीब मरीज को महंगे दाम में दवाएं बाजार से खरीदनी पड़ रही है। सड़क पर कहीं दुर्घटना हुई तो पहले तो पहले समय पर एंबुलेंस नहीं मिलती अगर मिलती भी है तो उसमें ट्रामा लाइट सपोर्ट की सुविधा नहीं होती, जिससे मरीज की रास्ते में ही मौत हो जाती है। ऐसे में स्टाफ को ट्रामा लाइफ सपोर्ट के लिए प्रशिक्षण देने की जरूरत है। सरकारी अस्पतालों की इमरजेंसी में मरीज के अनुपात में डॉक्टर की उपलब्धता नहीं है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली आशा वर्कर, स्वास्थ्य सेविकाओं, एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकत्री का मानदेय नहीं बढ़ रहा है ताकि वह अच्छे ढंग से कम कर सके। उन्होंने डेंगू का जिक्र करते हुए कहा कि स्वास्थ्य व्यवस्था सही न होने से कितने लोग डेंगू से पीड़ित होकर हमारे बीच से चले गए। यह प्रदेश सरकार को शर्मशार करती है। बजट में हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने की बात की गई है । मगर मेडिकल कॉलेज जो भी खुले हैं वह कागज पर चल रहे हैं ‌। दूसरे- दूसरे जगह के डॉक्टर पैरामेडिकल स्टाफ को शिफ्ट करके सरकार मेडिकल कॉलेज को केवल मान्यता दिलाने का काम कर रही है। जौनपुर में हाल ही में खुले मेडिकल कॉलेज में शुरुआती दौड़ में 6 महीने से सैलरी नहीं आई थी। इसका मैंने विधानसभा में सवाल उठाया था तब जाकर वेतन मिला। यह स्थिति प्रदेश के कई जगहों पर की डॉक्टर वेतन के लिए धरने दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में मरीजों की चिकित्सा करने वाले डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ किस तरह से सही ढंग से कम कर सकते हैं। जिससे आप चिकित्सा करा रहे हैं उनके सैलरी का भी बजट भी आपने नहीं दिया। आयुष्मान भारत की तरफ से मिलने वाली चिकित्सा का बजट केंद्र और प्रदेश सरकार की तरफ से कम होने की वजह से मरीज को स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पा रही है उन्होंने इस बजट को बढ़ाने की मांग की।

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