राम मंदिर के पीछे पीएम मोदी की सोच

अयोध्या।  राम मंदिर राष्ट्रीय एकात्मता का परिचायक है। यह सच्चाई मंदिर में विराजे रामलला जैसे संपूर्ण देश को एक सूत्र में पिरोने वाले नायक से तो परिभाषित है ही, राम मंदिर के निर्माण की भावना से भी प्रतिपादित है।

यह अनायास नहीं हुआ बल्कि इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सुविचारित दृष्टिकोण था। उनका मानना था कि जिस तरह इस देश के लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद भवन के निर्माण में राष्ट्रीयता समाविष्ट हुई, उसी प्रकार मानवीय मूल्य और आदर्श का सबसे बड़ा मंदिर यानी राम मंदिर भी राष्ट्रीयता का संवाहक बने। यह भाव-भावना राम मंदिर की नींव में भी निहित थी।

यह मंदिर उत्तर भारत के जिस आध्यात्मिक केंद्र में स्थापित हो रहा था, उसकी निर्माण शैली भी उत्तर भारतीय हिसाब की नागर शैली थी, किंतु इसका शिल्प तैयार करने का दायित्व गुजरात के प्रख्यात वास्तुकार चंद्रकांत भाई सोमपुरा संभाल रहे थे।

सोमपुरा और उनके दो पुत्र आज भी इस विविधता के केंद्र में स्थापित हैं, तो जिस लाल बलुआ शिला से राम मंदिर का निर्माण हुआ वह भरतपुर और संपूर्ण राजस्थान को अयोध्या के राम मंदिर से जोड़ता है।

मंदिर में स्थापित होने वाले रामलला के विग्रह के लिए कर्नाटक की शिला और वहीं के कलाकार अरुण योगीराज का कौशल इसे सुदूर दक्षिण से जोड़ने वाला साबित हुआ। मंदिर के द्वारों के लिए महाराष्ट्र की लकड़ी और हैदराबाद के कारीगर भी राष्ट्रीय एकता एकात्मता को परिपुष्ट करने वाले सिद्ध हुए।

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