नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय संस्कृति सचिव और नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय के पूर्व निदेशक राघवेंद्र सिंह ने राम मंदिर को लेकर बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि साल 1949 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार को भागवान राम की मूर्ति हटाने को कहा था।
पूर्व सचिव राघवेंद्र सिंह ने 1949 के वाकये को याद करते हुए बताया है कि उनके दादा गुरु दत्त सिंह और तत्कालीन फैजाबाद सिटी मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को किस दबाव का सामना करना पड़ा था।
खबर सामने आई, रामलला अचानक प्रकट हो गए…
उन्होंने कहा, 1949 में तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार को केंद्र सरकार ने रामलला की मूर्ति को हटाने के लिए कहा था। इसके कुछ दिनों बाद खबर सामने आई कि रामलला की मूर्ति अचानक प्रकट हो गई। इसके बाद पाकिस्तान रेडियो ने यह खबर चलाई थी कि विभाजन के बाद एक खास समुदाय द्वारा खाली की गई जगह पर हिंदू कब्जा कर रहे हैं।
सिटी मजिस्ट्रेट ने राज्य सरकार को रिपोर्ट किया
राघवेंद्र ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया, “गुरु दत्त सिंह ने स्पष्ट रूप से इसका संज्ञान लिया और राज्य सरकार को रिपोर्ट किया। सरकार चाहती थी कि 22-23 दिसंबर 1949 की रात को प्रकट हुई राम लला की मूर्ति को तुरंत हटा दिया जाए। यह संभव नहीं था।”
यह सब पाकिस्तान रेडियो की घोषणा की वजह से हुआ
राघवेंद्र ने कहा कि यह सब पाकिस्तान रेडियो की घोषणा की वजह से हुआ था। पाकिस्तान रेडियो रिपोर्ट लेकर आया और शायद इस तरह दिल्ली को पता चला। पाकिस्तान रेडियो ने कहा कि भारतीय अब बंटवारे के बाद से समुदाय के एक वर्ग द्वारा खाली की गई जगह पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं।
सुबह तक मूर्ति की खबर आग की तरह फैल गई
पूर्व सचिव ने बताया, “जब 22-23 दिसंबर 1949 की रात को राम लला की मूर्ति प्रकट हुई तो सुबह तक यह खबर आग की तरह फैल गई।” वास्तव में एक बिंदु जिस पर तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट, यानी मेरे दादा को विचार करना था। उन्होंने इसका संज्ञान लिया और राज्य सरकार को रिपोर्ट दिया।
पंत ने जिला मुख्यालय फैजाबाद को संदेशा भिजवाया
राघवेंद्र के मुताबिक, राज्य सरकार ने राम लला की मूर्ति को हटाने के लिए कहा था क्योंकि केंद्र सरकार उन्हें ऐसा करने के लिए कह रही थी। “इसलिए जब मेरे दादा ने अपने तरीके से रिपोर्ट किया तो यह उनके खिलाफ गया। जब इस बारे में केंद्र सरकार को रिपोर्ट किया गया तो वहां से कुछ स्पष्ट निर्देश आए। केंद्र से मिले निर्देश के आधार पर तत्कालीन यूपी के सीएम गोविंद बल्लभ पंत ने तत्काल जिला मुख्यालय फैजाबाद को संदेशा भिजवाया।”
भक्तों को मूर्ति हटाने का आभास हो गया
राघवेंद्र ने अपने दादा की उस समय की स्थिति के बारे में बताया, “प्रोटोकॉल के मुताबिक पंत के फैजाबाद आने से पहले, सरकारी अधिकारी उन्हें जिले की सीमा पर लेने जाते। इसलिए, मेरे दादाजी उन्हें जिले की सीमा पर लेने गए और उनसे कहा कि मूर्ति को मौके पर लाना संभव नहीं है क्योंकि भक्तों को यह आभास हो गया था कि राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार भी राम लला की मूर्ति को हटाना चाहती है। भक्त इसका विरोध करेंगे।”
“अगर भक्त इसका विरोध करते हैं और हम आदेश को लागू करने की कोशिश करते हैं, तो कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हो जाएगी। उस समय मुख्यमंत्री पंत की उपस्थिति एक जोखिम होगी जिसे मेरे दादाजी नहीं लेना चाहते थे।”
दादाजी को स्पष्ट संदेश दिया गया
राघवेंद्र ने कहा, “बहस गर्म हो गई और गोविंद बल्लभ पंत ने मूल रूप से वही कहा जो मेरे दादा गुरु दत्त सुझाव दे रहे थे कि न तो आप जिम्मेदारी लेंगे और न ही इस प्रतिमा को हटाने के मेरे आदेशों का पालन करेंगे।” राघवेंद्र ने कहा, “इससे वास्तव में कुछ गंभीर परिणाम होंगे, आप समझ सकते हैं कि क्या होने वाला है। दादाजी को स्पष्ट संदेश दिया गया था।”
मुख्यमंत्री पंत को घटनास्थल पर जाने की इजाजत नहीं दी
उन्होंने कहा, “मेरे दादाजी अपनी जिद पर अड़े रहे और उन्होंने मुख्यमंत्री पंत को घटनास्थल पर जाने की इजाजत नहीं दी, मुझे लगता है कि यह अपने आप में एक बड़ा फैसला था। वहां जो भी कुछ हुआ उससे सीएम पंत बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं थे और वो वहीं से राज्य मुख्यालय लौट गए।”
फैजाबाद सिटी मजिस्ट्रेट दादा गुरु दत्त सिंह का इस्तीफा
राघवेंद्र ने बताया, दादा जी अच्छी तरह से जानते थे कि आगे क्या होने वाला है। आगे की कार्रवाई होने से पहले ही तत्कालीन फैजाबाद सिटी मजिस्ट्रेट दादा गुरु दत्त सिंह ने इस्तीफा देने का फैसला किया। अंत में उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया।”