नई दिल्ली। पूजा मुख्यतः दो प्रकार से होती है। एक मंदिर और मठों में होती है। इसके अलावा, घर पर भी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। इस क्रम में व्यक्ति अपने घर पर प्रतिमा स्थापित करते हैं। प्रकांड पंडितों की मानें तो बिना प्राण प्रतिष्ठा के मूर्ति पूजा नहीं करनी चाहिए। अनदेखी करने से व्यक्ति को पूजा का शुभ फल प्राप्त नहीं होता है। लेकिन क्या आपको पता है कि क्यों मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है? आइए, प्राण प्रतिष्ठा की विधि, मंत्र और महत्व जानते हैं-
क्या है प्राण प्रतिष्ठा
धर्म गुरुओं की मानें तो मंदिर या घर पर मूर्ति स्थापना के समय प्रतिमा रूप को जीवित करने की विधि को प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। सनातन धर्म में प्राण प्रतिष्ठा का विशेष महत्व है। मूर्ति स्थापना के समय प्राण प्रतिष्ठा अवश्य ही किया जाता है। साल 2024 में 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में भी प्राण प्रतिष्ठा किया जाएगा। इसमें रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। इसकी शुरुआत 16 जनवरी से है। इस दिन से ही प्राण प्रतिष्ठा हेतु अनुष्ठान किए जाएंगे। धार्मिक मत है कि प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात मूर्ति रूप में उपस्थ्ति देवी-देवता की पूजा-उपासना की जाती है।
प्राण प्रतिष्ठा का अभिप्राय
धर्म गुरु एवं आचार्यों की मानें तो प्राण प्रतिष्ठा का अभिप्राय मूर्ति विशेष में देवी-देवता या भगवान की शक्ति स्वरूप की स्थापना करनी है। इस समय पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान और मंत्रों का जाप किया जाता है। शास्त्रों में घर पर पत्थर की प्रतिमा न रखने की सलाह दी गई है। पत्थर की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रतिदिन पूजा अनिवार्य है। अतः मंदिरों में सदैव पत्थर की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
प्राण प्रतिष्ठा हेतु मंत्र
मानो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं
तनोत्वरिष्टं यज्ञ गुम समिमं दधातु विश्वेदेवास इह मदयन्ता मोम्प्रतिष्ठ ।।
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै
देवत्व मर्चायै माम् हेति च कश्चन ।।
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव
प्रसन्नो भव, वरदा भव ।।
प्राण प्रतिष्ठा की विधि
प्रतिमा को गंगाजल या विभिन्न (कम से कम 5) नदियों के जल से स्नान कराएं। इसके पश्चात, मुलायम वस्त्र से मूर्ति को पोछें और देवी-देवता के रंग अनुसार नवीन वस्त्र धारण कराएं। अब प्रतिमा को शुद्ध एवं स्वच्छ स्थान पर विराजित करें और चंदन का लेप लगाएं। इसी समय मूर्ति विशेष का सिंगार करें और बीज मंत्रों का पाठ कर प्राण प्रतिष्ठा करें।