आम के पुराने बागों का जीर्णोद्धार कराकर अच्छा उत्पादन ले सकते है बागवान

निष्पक्ष प्रतिदिन/मलिहाबाद,लखनऊ।
आम के पुराने पेडों को फिर से नया एवं फलदार बनाने के लिये केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, सुरक्षित जीर्णोद्धार पर विशेष फोकस कर रहा है।
पुराने पेडो के जीर्णोद्धार की पुरानी तकनीक में दिसम्बर-जनवरी महीने में आम की सभी शाखाओं को ठूंठ छोडते हुए एक साथ काटने की सलाह दी जाती थी। मगर कई बार तना बेधक कीट द्वारा नुकसान के कारण 30-40 प्रतिशत तक वृक्ष मर जाते थे या वृक्ष की कई प्राथमिक शाखायें मर जाती थीं । इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए संस्थान ने अब नई तकनीक विकसित की है। यह जानकारी संस्थान के निदेशक टी दामोदरन ने दी।
उन्होंने बताया कि जीर्णोद्धार दिसम्बर- जनवरी के बीच ही करना उचित है। देर करने से वृक्ष की शाखाओं से अत्यधिक स्राव होता है। जबकि बरसात में संक्रमण की सम्भावना अत्यधिक रहती है। पुराने अनुत्पादक वृक्षों की सर्वप्रथम बीचोबीच की सीधी जाने वाली शाखा अगर हो तो उसको सम्पूर्ण रूप से बिना कोई ठूंठ छोडे निकाल देना चाहिये। इसके बाद अगर कोई शाखा बहुत नीचे की तरफ फैल कर कृषि कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रही हो तो उसे भी निकाल देना चाहिये। इसके चारों तरफ फैलने वाली जहां तक सम्भव हो, सर्वोत्तम 3-5 शाखायें मूल ढांचा बनाने के लिये चुन लेनी चाहिये। अगर कोई आपस में फंसने वाली या सूखी शाखा हो तो उसे भी निकाल देना चाहिये। चुनी हुई शाखाओं में से ऊपर से एक पूर्व दिशा की और दूसरी पश्चिम दिशा की शाखा को प्रथम वर्ष ठूंठ छोडते हुए काटना चाहिये जिससे कटी हुई शाखाओं को धूप मिलती रहे। शेष शाखाओं में से एक उत्तर और दूसरी दक्षिण दिशा की शाखा को दूसरे साल ठूंठ छोडते हुए काटना चाहिये। बाकी शाखा अगर बची हो तो तीसरे वर्ष काटना चाहिये। प्रथम वर्ष शाखा काटने के बाद पेड को रोशनी अंदर तक मिलने लगती है।

बागवानों को मिलेगा अच्छे उत्पादन का लाभ।

उन्होंने बताया इस तकनीक मे बची हुई शाखाओं से 100-150 किग्रा/वृक्ष तक फलोत्पादन मिल जाता है। जबकी दूसरे साल यह उत्पादन 40-50 किग्रा/वृक्ष तक मिल जाता है। वृक्ष की ऊंचाई भी 50 प्रतिशत कम हो जाती है और फलों का आकार भी बढ जाता है। तीसरे साल जब सारी शाखायें कट जाती हैं तब नये कल्लों से 25-30 किग्रा/वृक्ष तक फल मिल जाते हैं । यही उपज आगे चल कर 45-60 किग्रा/वृक्ष हो जाती है और कैनॉपी बढने के साथ साल दर साल बढती रहती है। इस तकनीक का सबसे बडा लाभ यह है कि इसमें तना बेधक कीट द्वारा नुकसान नगण्य रहता है । इस प्रकार आम के पुराने उनुत्पादक वृक्षों को सफलता पूर्वक उत्पादक बनाया जा सकता है। वृक्षों में खाद, उर्वरक का प्रयोग और कीट बीमारियों की देखभाल आम वृक्षों की तरह ही करनी होती है।

नये लोगों को प्रशिक्षण देता है संस्थान।

उन्होंने बताया कि जीर्णोद्धार की इस तकनीक को बढाव देने के लिए संस्थान नवयुवकों को प्रशिक्षण देता है और बागों के जीर्णोद्धार हेतु सशुल्क मार्गदर्शन भी प्रदान करता है । कोई भी जीर्णोद्धार का कार्य उद्यान विभाग से अनुमति लेने के बाद ही करना चाहिये।

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