भारत में इन दिनों बहुत कुछ नया हो रहा है और बड़ा भी हो रहा है। ग्रैंड स्केल पर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी था कि उन्हें ईश्वर ने ऐसा बनाया है कि वे छोटा सोच ही नहीं सकते हैं। वे जो सोचते हैं, बड़ा सोचते हैं। तभी उनकी सरकार में सब कुछ बड़ा हो रहा है। संसद की नई और बड़ी इमारत बनी। उसके उद्घाटन का कार्यक्रम भी भव्य हुआ और सैंगोल स्थापित किया गया। नए संसद भवन में जो पहला सत्र हुआ उसके पहले दिन दशकों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया और उसी सत्र में पास कराया गया। अब एक दिन में सबसे ज्यादा सांसदों को निलंबित करने का रिकॉर्ड भी बना है। साढ़े तीन दशक पुराना रिकॉर्ड टूटा है। इस नए भवन में सत्तापक्ष के एक सांसद ने विपक्षी पार्टी के एक सांसद के ऊपर उसके धर्म को लेकर टिप्पणी की। संसद सत्र के दौरान नई परंपराएं भी कायम हो रही हैं और सदन की कार्यवाही में अनुशासन तो ऐसा बन रहा है कि ईसाई मिशनरी स्कूलों के हेडमास्टर भी उससे सबक सीख सकते हैं। विधायी कामकाज के भी नए तरीके विकसित हो रहे हैं। विधेयक अब संसदीय समितियों को नहीं भेजे जाते हैं, संयुक्त संसदीय समिति नहीं बनती है और प्रवर समिति भी अपवाद है। सरकार के कामकाज को लेकर सीएजी की रिपोर्ट पेश होने का पुराना सिस्टम भी धीरे धीरे समाप्ति की ओर बढ़ रहा है।
सांसदों का निलंबन: नए संसद भवन में शीतकालीन सत्र के 11वें दिन सोमवार, 18 दिसंबर को एक दिन में 78 सांसदों को निलंबित किया गया। निलंबित सांसदों में 33 लोकसभा के और 45 राज्यसभा के सदस्य थे। राज्यसभा के 11 सांसदों का और लोकसभा के तीन सांसदों का मामला विशेषाधिकार समिति को भेजा गया है। समिति को तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया है। यानी इन 14 सांसदों का निलंबन कम से कम तीन महीने रहना है। इसका मतलब है कि वे जनवरी के आखिर में शुरू होने वाले 17वीं लोकसभा के आखिरी सत्र में शामिल नहीं हो पाएंगे। बाकी सदस्यों का निलंबन सत्र के बचे हुए कार्यकाल यानी 22 दिसंबर तक है। सत्र के 12वें दिन यानी मंगलवार को लोकसभा से 49 और सदस्यों को निलंबित कर दिया गया। निलंबित सांसदों का कसूर यह था कि वे संसद की सुरक्षा में 13 दिसंबर को हुई चूक के मामले में केंद्रीय गृह मंत्री के बयान की मांग रहे थे। इसके लिए वे सदन के अंदर तख्तियां लेकर नारेबाजी कर रहे थे। हालांकि यह पहली बार नहीं हो रहा था। विपक्ष में तो सबसे ज्यादा समय तक भाजपा को ही बैठने का अनुभव है और उसके सांसद भी तख्तियां लेकर प्रदर्शन करते रहे हैं। लेकिन अब चीजें बदल गई हैं। अब संसदीय परंपरा या लोकतंत्र में विरोध-प्रदर्शन अहम नहीं है, अनुशासन सबसे महत्वपूर्ण है।
तभी लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता और उप नेता सहित 33 सदस्यों को एक दिन में निलंबित कर दिया गया और अगले दिन 49 और सदस्यों को निलंबित कर दिया गया। उधर राज्यसभा में सबसे बेहतरीन वक्ताओं और संसदीय आचरण वाले सदस्यों सहित 45 लोग निलंबित हुए। इससे पहले 14 दिसंबर को 14 सांसद निलंबित हो चुके थे। सो, निलंबित सांसदों की संख्या 141 हो गई। इससे पहले का रिकॉर्ड 63 सांसदों का था। 1989 में इंदिरा गांधी की हत्या की जांच कर रहे जस्टिस ठक्कर आयोग की रिपोर्ट पेश किए जाने के दिन विपक्षी पार्टियों ने हंगामा किया था और तब 63 लोगों को निलंबित किया गया था। हालांकि उसे लेकर एक दावा यह भी है कि 63 लोगों ने सामूहिक इस्तीफा दिया था, जिसे स्पीकर ने स्वीकार नहीं किया था। उस समय भाजपा को ज्यादा मौका नहीं मिल पाया था क्योंकि तब लोकसभा में उसके सिर्फ दो सांसद थे। पिछली लोकसभा में 2015 में विपक्ष के 25 सदस्यों को एक साथ निलंबित किया गया था। विपक्ष ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया था। उसका जवाब देते हुए तब के संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने 1989 की घटना की मिसाल दी थी और तंज किया था कि सबसे ज्यादा सांसदों को निलंबित करने का रिकॉर्ड किसने बनाया है! अब भगवान का शुक्र है कि वह रिकॉर्ड भी भाजपा के नाम हो गया है।
संसद में अभद्र टिप्पणी: नए संसद भवन में हुए पहले ही सत्र में भाजपा के सांसद रमेश बिधूड़ी ने बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली के ऊपर बहुत आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने उनके धर्म को लेकर और एक व्यक्ति के तौर पर उनके ऊपर बेहद अपमानजनक टिप्पणी की। घटना 21 सितंबर की है, जब चंद्रयान-तीन और जी-20 की सफलता पर चल रही चर्चा के दौरान बिधूड़ी ने दानिश अली को निशाना बनाया था। तीन महीने बाद भी यह मामला विशेषाधिकार समिति के पास लंबित है। समिति ने बिधूड़ी को पहली बार जब बुलाया था तब वे चुनाव प्रचार के ज्यादा जरूरी काम के लिए राजस्थान जा रहे थे। इसलिए मामला टलता गया। अब बताया जा रहा है कि समिति के सामने उन्होंने माफी मांग ली है तो यह मामला खत्म हो सकता है। लेकिन वह टिप्पणी भी अद्वितीय थी क्योंकि उससे पहले सदन में किसी ने किसी सदस्य के लिए वैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया था। अब देखते हैं कि भाजपा सांसद का बनाया वह रिकॉर्ड कब और कौन तोड़ता है!
नई संसदीय परंपरा: संसद की एक परंपरा रही है कि जब सत्र चल रहा होता है तब सरकार को जो भी बयान देना होता है वह सदन के अंदर देना होता है। उस समय सदन से बाहर बयान नहीं दिए जाते हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि यह परंपरा भी पुरानी हो गई है और हो सकता है कि गुलामी की मानसिकता वाली भी हो। तभी नए संसद भवन की आजाद भारत की परंपरा के तहत सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदी के एक दैनिक अखबार को इंटरव्यू दिया। वे आमतौर पर इंटरव्यू नहीं देते हैं और मीडिया से बात करने की जरुरत नहीं समझते। लेकिन शीतकालीन सत्र के दौरान जब संसद की सुरक्षा में सेंध लगी तो उसके बाद उन्होंने एक अखबार को इंटरव्यू दिया और कहा कि संसद की सुरक्षा में चूक गंभीर मसला है, इसकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए और पता लगाया जाना चाहिए कि इसके पीछे कौन है। इस पर वाद-विवाद नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने एक अखबार को इंटरव्यू दिया और केंद्रीय गृह मंत्री ने एक टेलीविजन चैनल को इंटरव्यू दिया। विपक्षी सांसद चाहते थे कि गृह मंत्री ने न्यूज चैनल को जो कहा है वही बात वे संसद में आकर कहें। पता नहीं विपक्षी सांसद न्यूज चैनल में गृह मंत्री की बात सुन कर संतुष्ट क्यों नहीं हुए? वे सदन में आकर उनके बयान देने की मांग करते रहे और अपने इस आचरण के लिए निलंबित हो गए तो अब सरकार से सवाल पूछ रहे हैं! कायदे से विपक्षी सांसदों को अपना आचरण सुधारना चाहिए। उन्हें सरकार से सवाल पूछने और विरोध प्रदर्शन आदि करने से बचना चाहिए। नए दौर में इसे अनुशासनहीनता माना जा सकता है। इस मौके के मौजूं वसीम बरेलवी का एक शेर है- चरागों के बदले मकां जल रहे हैं, नया है जमाना नई रोशनी है।