‘लव जिहाद‘, वो शब्द जिसने देश की सियासत में काफी भूचाल मचाया है. राष्ट्रीय स्तर पर इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 2009 में हुआ था, जब ‘केरल कैथॉलिक बिशप काउंसिल’ ने दावा किया था कि केरल में अक्टूबर 2009 तक 4500 लड़कियां मुस्लिम बन गईं. इसके बाद तो मानों केरल से तथाकथित ‘लव जिहाद’ के न जाने कितने मामले सामने आए. ऐसे ही एक मामले को ‘हदिया केस’ के तौर पर जाना जाता है. ये केस एक बार फिर से सुर्खियों में है.
हालांकि, हदिया केस को समझने से पहले हमें ये समझना होगा कि आखिर लव जिहाद क्या है. वैसे तो लव जिहाद संवैधानिक शब्दावली का हिस्सा नहीं है. मगर इसे लेकर कई संगठनों ने अपनी व्याख्या दी है. उनके मुताबिक लव जिहाद तब होता है, जब कोई मुस्लिम युवक किसी गैर-मुस्लिम लड़की से अपना धर्म छिपाकर शादी कर लेता है और बाद में उस लड़की का भी धर्म बदलवा देता है. आमतौर पर ये व्याख्या देने वाले संगठन हिंदुत्व विचारधारा को मानने वाले होते हैं.
क्यों चर्चा में आया ‘हदिया केस’?
केरल की रहने वाली अखिला, जिन्हें अब हदिया के तौर पर जाना जाता है, के पिता केएम अशोकन ने केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने एक याचिका के जरिए मांग की है कि उनकी बेटी को कोर्ट के सामने पेश किया जाए, क्योंकि वह अपनी बेटी से नहीं मिल पा रहे हैं. हदिया ने 2015 अपना धर्म बदलकर इस्लाम कबूल कर लिया था और फिर एक मुस्लिम शख्स शफीन जहान से शादी कर ली थी. इसे लेकर पूरे देश में काफी बवाल मचा था.
पिता ने अपनी याचिका में क्या कहा?
हदिया के पिता अशोकन ने अपनी याचिका में दावा किया है कि वह पिछले एक महीने से अपनी बेटी से फोन पर बात करने की कोशिश कर रहे हैं. मगर उनकी बात नहीं हो पा रही है. उनकी बेटी जिस होम्योपैथिक क्लीनिक को चलाती थी, वह भी अब बंद हो चुकी है. इसलिए, उन्होंने हदिया को अदालत में पेश करने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करने की मांग की है. अशोकन ने अपनी याचिका में कहा है कि वह और उनकी पत्नी हदिया से फोन पर बात करते थे. वे कभी-कभी उससे मिलने भी जाते थे.
याचिका में आगे कहा गया है कि हदिया ने फोन पर यह भी बताया था कि उसका शफीन जहान के साथ अब कोई वैवाहिक रिश्ता नहीं है और वह उसका पता-ठिकाना नहीं जानती. अशोकन को लगता है कि उनकी बेटी को प्रतिवादियों की अवैध हिरासत में रखा गया है. ये सभी प्रतिवादी बैन हो चुके संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के सदस्य थे. हदिया के पति शफीन को भी छठे प्रतिवादी के तौर पर रखा गया है. अशोकन ने अपनी याचिका में यह भी दावा किया कि हदिया और शफीन की शादी सिर्फ कागजों पर है और उनके बीच कोई वैवाहिक संबंध नहीं है.
क्या है पूरा मामला?
हदिया केस को समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे जाना होगा. हदिया का असली नाम अखिला अशोकन है, जो कोट्टायम के वायकोम की रहने वाली है. वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान है. जब हदिया सालेम में रहकर मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी, तभी उसने अपनी दो मुस्लिम दोस्तों से प्रभावित होकर इस्लाम धर्म कबूल लिया. हदिया ने बताया था कि वह काफी सालों से इस्लाम धर्म का पालन कर रही थी, मगर उसने सितंबर 2015 से धर्मांतरण की कानूनी प्रक्रिया शुरू की थी.
31 साल की हदिया ने इस्लाम कबूल करने के बाद शफीन जहान से शादी कर ली. जब पिता अशोकन को ये बात पता चली तो उसने 2016 में केरल हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यीक्षकरण याचिका दायर की. इसमें उसने शफीन पर अपनी बेटी को जबरदस्ती बंदी बनाकर रखने का आरोप लगाया. मामले पर सुनवाई हुई और फिर केरल हाईकोर्ट ने 25 मई, 2017 को हदिया और शफीन की शादी को खारिज कर दिया. इस मामले को लेकर काफी बवाल भी मचा.
हाईकोर्ट का कहना था कि ये शादी सिर्फ एक दिखावा है. अदालत ने निर्देश दिया कि हदिया को उसके हिंदू माता-पिता या किसी संगठन की कस्टडी में रखा जाए, ताकि वह ‘लव जिहाद’ की पीड़ित बनने से बच जाए. यहां गौर करने वाली बात ये है कि ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी अदालत ने ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया था. कोर्ट ने इस मामले में शामिल विभिन्न संगठनों की भूमिका की विस्तृत जांच का भी निर्देश दिया.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
हालांकि, शफीन जहान भी हार मानने वाला नहीं था. उसने तुरंत हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की. हाईकोर्ट के फैसले की पहले से ही कई लोग आलोचना कर रहे थे, क्योंकि उनका कहना था कि अदालत ने एक व्यस्क महिला के फैसले लेने के अधिकार को कुचलने का काम किया है. यही वजह थी कि जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, तो लगभग ये साफ था कि कहीं न कहीं केस शफीन जहान के पक्ष में रहेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च, 2018 को एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया. अदालत ने हदिया और शफीन जहान की शादी को बरकरार रखा. अदालत ने कहा कि व्यस्क होने के नाते हदिया के पास अपने फैसले लेने का हक है. कोर्ट उसे अपने पिता के पास जाने को नहीं कह सकती है. हालांकि, अदालत ने एनआईए को इस मामले में जांच को जारी रखने का आदेश दिया, ताकि पता लगाया जा सके कि क्या सच में धर्मांतरण के बाद शादी हो रही है या नहीं