अफगानिस्तान: तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान, देश सभी देशों, खासकर अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध चाहता है। भारत चीन के साथ प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र के भू-राजनीतिक संदर्भ में तालिबान के समर्थन को महत्व देता है। अफगानिस्तान की पूर्व सरकार द्वारा संचालित दूतावास बंद होने के बाद अब तालिबान ने कहा है, कि वो अगले दो से तीन दिनों में नई दिल्ली में अफगान दूतावास का संचालन शुरू कर देगा, जिसके बाद सवाल उठ रहे हैं, कि क्या तालिबान के डिप्लोमेट को नई दिल्ली से अफगान दूतावास को संचालन की इजाजत देना, क्या तालिबान शासन को मान्यता देना नहीं है? तालिबान भूराजनीतिक संतुलन, आर्थिक सहायता और मान्यता के लिए दिल्ली के समर्थन की मांग कर रहा है, जबकि दिल्ली, सुरक्षा और क्षेत्रीय सहयोग के लिए तालिबान के समर्थन को महत्व देती है, भले ही ये नैतिक और सैद्धांतिक विचारों की कीमत पर दुख की बात है।
इसी महीने अफगान दूतावास ने नई दिल्ली में कामकाज बंद करने की घोषणा की थी और कहा था, कि उसे जरूरी मदद नहीं मिल रही है। अफगान दूतावास, तालिबान-नियंत्रित विदेश मंत्रालय के नजदीकी संपर्क में है और मुंबई और हैदराबाद में अफगान वाणिज्य दूतावास सक्रिय और उसके संपर्क में हैं। बता दे अफगान राजनयिकों के लिए वीजा विस्तार पर भारत सरकार के साथ मुद्दों की वजह से दूतावास बंद कर दिया गया था।
भारतीय विदेश मंत्रालय की फिलहाल इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है, कि तालिबान से संपर्क करना अब भारत के हितों में है, क्योंकि चीन अफगानिस्तान में पांव पसार रहा है और आतंकवाद के किसी खतरे को दूर रखने के साथ साथ मध्य एशिया से जुड़ाव में तालिबान भारत के लिए अहम भूमिका निभा सकता है।
क्या है अफगान दूतावास विवाद ?
अफगानिस्तान दूतावास को लेकर विवाद पहली बार मई में शुरू हुआ था, जब तालिबान ने व्यापार सलाहकार कादिर शाह को प्रभारी नियुक्त किया था। शाह ने ममुंडज़े की अनुपस्थिति में दूतावास पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया था, लेकिन असफल रहे, और बाद में उनके दूतावास परिसर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। दिल्ली में अफगान दूतावास के नियंत्रण पर विवाद के बीच आई है, जो अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा देश में सत्ता पर कब्जा करने के बाद से चल रहा है।