मुरमुरे खाकर जिंदा रहे, चट्टानों से टपकता पानी चाटकर बुझाई प्यास

घाटशिला। उत्तराखंड के सिलक्यारा में 17 दिनों से सुरंग में फंसे मजदूरों के बाहर आने से हर ओर खुशी का माहौल है। मजदूरों के घरों में दीवाली मन रही है। इन सबके बीच झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के डुमरिया प्रखंड के बांकीसोल गांव निवासी श्रमिक भुक्तू मुर्मू के 70 वर्षीय पिता बासेत मुर्मू का मंगलवार को निधन हो गया।

बासेत मुर्मु 17 दिनों से अपने पुत्र समेत टनल में फंसे भी मजदूरों के निकलने का इंतजार कर रहे थे। इस क्रम में वह बचवा अभियान पर लगातार नजर बनाए हुए थे। मंगलवार को मजदूरों के बाहर आने की खुशखबरी भी आई, लेकिन इससे पहले ही बासेत मुर्मु की सांसें थम गईं और बेटे को देखने की इच्छा लिए वह दुनिया से विदा हो गए। बताया जाता है कि मंगलवार सुबह आठ बजे बासेत मुर्मू अचानक जमीन पर गिर पड़े और थोड़ी ही देर में उनकी मौत हो गई। बेटे के पहुंचने में हो रही देर को देखते हुए परिवार के अन्य सदस्यों ने बुधवार को उनका अंतिम संस्कार कर दिया।

मुरमुरे खाकर जिंदा रहे, चट्टानों से टपकता पानी चाटकर बुझाई प्यास
रांची के ओरमांझी क्षेत्र के खीराबेड़ा निवासी 22 वर्षीय अनिल बेदिया ने बुधवार को अपने परिवार के सदस्यों से फोन पर बात करते हुए बताया कि सुरंग से बाहर निकले तो ऐसा लगा, जैसे हमें नई जिंदगी मिल गई। सुरंग के भीतर बिताए दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि हादसे के बाद जब तक बाहर से उनतक कोई सहायता नहीं पहुंची थी, तबतक अपने साथ भीतर ले गए चना और मुढ़ी (मुरमुरे) आदि खाकर जिंदा रहे और चट्टानों से टपकते पानी को चाटकर प्यास बुझाते थे।

मजदूरों को कराई गई भोजन और पानी की व्यवस्था
बेदिया ने कहा कि 12 नवंबर को भूस्खलन होने के बाद मलबा धंसा तो हम सब ने सोचा कि अब शायद ही बाहर निकल पाएंगे, लेकिन हम एक-दूसरे को हिम्मत देते रहे और खुद का भी हौसला बनाए रखा। शुरुआती कुछ दिनों तक भीतर से हम डरे हुए थे। लगभग 70 घंटों के बाद बचाव में जुटे अधिकारियों ने हमसे संपर्क किया और सुरंग के भीतर आक्सीजन, भोजन व अन्य मदद मिलनी शुरू हुई तो हमारी उम्मीद कई गुना बढ़ गई।

सरकार के प्रति जताया आभार
उन्होंने बताया कि हमें पानी की बोतलें, केले, सेब और संतरे जैसे फलों के अलावा चावल, दाल तथा चपाती जैसे गर्म भोजन की आपूर्ति नियमित रूप से शुरू हो गई। हम जल्द से जल्द सुरक्षित बाहर निकलने के लिए प्रार्थना करते थे। आखिरकार भगवान ने हमारी सुन ली। हमें निकालने के लिए जितनी मेहनत की गई, यह सोचकर मन गदगद हो जाता है। हम सरकार के प्रति दिल से आभार व्यक्त करते हैं।

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