तेलंगाना में मतदान के लिए 6 दिन बचे हैं. यहां सभी राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में जुटे हैं. इस चुनावी मैदान में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), कांग्रेस और बीजेपी तीन अहम खिलाड़ी हैं. तीनों ही पार्टियां तेलंगाना के लिए अपना मेनिफेस्टो जारी कर चुकी हैं. कोई धर्म के सहारे वोटर को लुभाने में लगा है तो किसी ने जाति का मुद्दा उठाकर मतदाता को साधने का प्लान बनाया है.
देखना ये है कि वोटर किस मेनिफेस्टो को तरजीह देते हुए मतदान करेगा. फिलहाल नतीजों से हटकर देखें तो तीनों ही दल अपने-अपने मेनिफेस्टो को बेहतर बता रहे हैं और जनता के भारी समर्थन का दावा कर रहे हैं. यहां हम आपको बताएंगे कि कैसे तेलंगाना चुनाव में भी जाति और धर्म का फैक्टर अहम होता जा रहा है.
बीजेपी के मेनिफेस्टो में धर्म और ओबीसी कार्ड
बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में धर्म आधारित आरक्षण को हटाने, रोहिंग्या और अन्य अवैध आप्रवासियों का निर्वासन, गोहत्या के खिलाफ कार्रवाई करने जैसे वादे किए हैं. धर्म से अलग बीजेपी ने जाति के जरिये भी वोटरों को लुभाने की कोशिश की है. पार्टी ने ओबीसी समुदाय से मुख्यमंत्री, विशेष बीसी विकास निधि और एससी और एसटी की रिक्तियों को तेजी से भरने का वादा किया है.
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक जनसभा में अनुसूचित जाति के पुनर्वर्गीकरण का वादा किया था. यह एक ऐसा मुद्दा है जो तीन दशकों से अधिक समय से लटका हुआ है और मडिगा रिजर्वेशन पोराटा समिति (एमआरपीएस) की नेता मंदा कृष्णा मडिगा इसके लिए सभी उपलब्ध मंचों पर लड़ रहे हैं. एमआरपीएस का कहना है कि 22% एससी कोटा का लाभ मडिगा लोगों को नहीं मिला है, जो इस श्रेणी में बड़ा जाति समूह हैं.
कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का किया वादा
जाति के मोर्चे को भुनाते हुए कांग्रेस भी आगे निकलने की होड़ में है. कांग्रेस ने मेनिफेस्टो में जाति जनगणना और आनुपातिक आरक्षण का वादा किया है. कांग्रेस सबसे बड़े जाति-आधारित वोट बैंक के उद्देश्य से बीसी को लुभाने की कोशिश कर रही है. इसके अलावा कांग्रेस ने जाति जनगणना का वादा किया है. कांग्रेस के राहुल गांधी हर जनसभा में यह वादा कर रहे हैं कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो जातिगत जनगणना कराएंगे.
बीआरएस पर पिछले वादे पूर न हो पाने का दबाव
बीआरएस वैसे तो एससी-एसटी और ओबीसी को साथ लेकर चलने की बात कह रही है, लेकिन उसके सामने चुनौती ये है कि वह फिलहाल अपने पिछले वादे को ही पूरा नहीं कर पाई है. उसने एक दलित मुख्यमंत्री नियुक्त करने की बात कही थी. बीआरएस ने अपने चुनावी प्रचार में जो 104 उपलब्धियां गिनाई हैं उनमें से केवल 11 को ही जाति, समुदाय या धर्म से जोड़ा जा सकता है. तेलंगाना में मडिगा एससी आबादी का 65% हिस्सा है. राजैया को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था लेकिन उन्हें दरकिनार कर दिया गया. तेलंगाना की सत्तारूढ़ सरकार में मडिगा जैसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जिसकी पहचान हो सके.