छठपूजा की शुरुआत नहाय खाय की परंपरा से होती है। उसके बाद खरना, संध्या अर्घ्य और चौथे दिन अर्घ्य दिया जाता है। इससे ही छठ के पर्व का समापन होता है। देशभर में छठ के महापर्व का आज समापन हो गया। तीन दिन के इस त्योहार के आखिरी दिन महिलाओं ने उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया। सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस महापर्व का समापन हो गया।
छठपूजा का हुआ समापन
छठ पूजा में सूर्य भगवान और माता छठी की पूजा की जाती है। छठ पर्व में महिलाएं 36 घंटे का व्रत रखती हैं। इस पर्व को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। छठ का पर्व साल में दो बार आता है।
छठपूजा का धार्मिक महत्व
छठ पूजा में ऐसी मान्यता है कि सूर्य देव की पूजा करने से तेज, आरोग्यता और आत्मविशवास की प्राप्ति होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य ग्रह को पिता, पूर्वज, सम्मान का कारक माना जाता है। साथ ही छठी माता की अराधना से संतान और सुखी जीवन की प्राप्ति होती है। इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह पर्व पवित्रता का प्रतीक है।
छठपूजा संतान की सुख समृद्धि
छठ पूजा में शुरुआत 17 नवंबर को नहाय खाय के साथ हुई थी। छठ का ये पर्व संतान की सुख समृद्धि, अच्छे सौभाग्य और सुखी जीवन के लिए रखा जाता है। साथ ही यह व्रत पति की लंबी उम्र की कामना के लिए भी रखा जाता है।
छठपूजा बच्चे के अच्छे स्वास्थ और उज्जवल भविष्य के लिए व्रत
छठ पूजा में हिंदू धर्म में बच्चों की लंबी आयु, संतान सुख, बच्चे के अच्छे स्वास्थ और उज्जवल भविष्य के लिए कई व्रत किए जाते हैं। महिलाएं तो ये व्रत करती ही है, कुछ व्रत पुरुष भी रखते हैं। बाल दिवस के मौके पर आइए आपको बताते हैं संतान से जुड़े 6 महत्वपूर्त व्रत के बारे में जानकारी।
छठपूजा बच्चों की लंबी आयु, संतान सुख के लिए व्रत
छठ पूजा में संतान सप्तमी-भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को संतान सप्तमी का व्रत किया जाता है। मान्यता है कि इसके प्रभाव से संतान प्राप्ति, समृद्धि और खुशहाली का वरदान प्राप्त होता है। इस व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा का विधान है। देवकी और वसुदेव ने भी अपनी संतानों की रक्षा के लिए ये व्रत किया था।