नई दिल्ली। जातिगत गणना के मुद्दे पर विपक्षी दलों के हमलों का सामना कर रही भारतीय जनता पार्टी कुछ ही माह बाद होने जा रहे आम चुनाव 2024 से पहले अन्य पिछड़े वर्गों तक पहुंच बनाने का अभियान चलाने की तैयारी कर रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा तथा राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष और केंद्रीय मंत्रियों अमित शाह तथा नितिन गडकरी सहित शीर्ष नेताओं ने अभियान की विस्तृत रूपरेखा तैयार करने के लिए पिछले हफ़्ते दिल्ली में बैठक की थी, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित 10 राज्यों से आए 40 नेता भी मौजूद थे।
विपक्ष की तरफ़ से जातिगत गणना करवाने के लिए किया जा रहा आह्वान इस बार चुनाव के सबसे अहम मुद्दों में से एक है, और अतीत में किसी भी पक्ष के लिए प्रतिबद्धता दर्शाने से कतराती रही बीजेपी पर अब जवाब देने के लिए दबाव पड़ रहा है।
यह दबाव इस बात से ज़्यादा बढ़ गया है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में बीजेपी के सहयोगी अपना दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पा, निषाद पार्टी और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा सेक्युलर आदि दलों ने इस मुद्दे का समर्थन किया है।
केंद्र में सत्तासीन बीजेपी पर इस मांग को माने जाने के लिए दबाव ज़्यादा बढ़ गया था, जब अगस्त में बिहार ने खुद का सर्वेक्षण कर लिया, और कहा कि राज्य की आबादी में अन्य पिछड़े वर्गों की हिस्सेदारी 27 फ़ीसदी से ज़्यादा है और सूबे की 33 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी अत्यंत गरीबी की अवस्था में ज़िन्दगी बिता रहे हैं।
इस महीने पांच राज्यों – मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान, तेलंगाना और मिज़ोरम में विधानसभा चुनाव हो रहा है। तेलंगाना में अन्य पिछड़े वर्गों 57 प्रतिशत से अधिक हैं। छत्तीसगढ़ में यह 51.4 फ़ीसदी है, राजस्थान में 46.8 फ़ीसदी तथा मध्य प्रदेश में 42.4 फ़ीसदी है।
दिल्ली में हुई बैठक ने जातिगत गणना के मुद्दे को लेकर बीजेपी को ‘एक्शन मोड’ में ला दिया है। बैठक से अगले ही दिन अमित शाह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर रवाना हो गए थे, जहां उन्होंने कहा कि बीजेपी ने कभी भी जातिगत गणना का विरोध नहीं किया, लेकिन चाहती है कि इससे पहले उचित तरीके से उचित दिशा में मेहनत की जाए।
दुर्ग में PM नरेंद्र मोदी ने भी विपक्ष पर ‘जाति के नाम पर देश को बांटने की कोशिश करने’ का आरोप लगाया. बिहार सरकार की रिपोर्ट जारी होने के कुछ ही घंटे बाद PM ने मध्य प्रदेश में विपक्ष पर वार किया, और कहा कि विपक्षी दल ‘गरीबों की भावनाओं के साथ खेल रहे हैं।’
प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे को तेलंगाना में भी उठाया, जहां मतदाताओं के बीच खड़े होकर उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ और विपक्षी कांग्रेस सभी ‘पिछड़ा वर्ग विरोधी’ हैं। के सभी शीर्ष नेता विपक्षी दलों के हमलों की काट निकालने की कोशिश कर रहे हैं।
पार्टी सूत्रों ने खुद जुटाए हुए आंकड़े भी जारी कर दिए हैं। इन आंकड़ों से पता चलता है कि बीजेपी के 303 सांसदों में से 85 फ़ीसदी और 1,358 विधायकों में से 365 पिछड़ा वर्ग समूहों से हैं, साथ ही 27 केंद्रीय मंत्री भी पिछड़ा वर्ग हैं। इन पिछड़ा वर्ग समुदायों से पार्टी को मिलने वाले वोट शेयर का बढ़ना भी चिह्नित किया गया – 1996 में 19 फ़ीसदी से वर्ष 2019 में 44 फ़ीसदी।
जातिगत गणना के मुद्दे को सबसे ज़्यादा ज़ोरशोर से उठा रही कांग्रेस ने अपना रुख साफ़ कर दिया है। कांग्रेस का कहना है कि वह इस साल जीते गए सभी राज्यों में जातिगत सर्वेक्षण कराएगी और केंद्र में जीतने की स्थिति में भी राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत गणना कराएगी।
राहुल गांधी ने बिहार की रिपोर्ट की ओर इशारा करते हुए जनसंख्या में हिस्सेदारी के अनुपात में पिछड़ा वर्ग को प्रतिनिधित्व (सरकार और शीर्ष पदों पर) दिए जाने की मांग की, और कहा, “इसीलिए जातिगत आंकड़े जानना ज़रूरी है।”
65 फ़ीसदी की यह लकीर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई 50 फ़ीसदी की सीमा से कहीं ज़्यादा है और एक अहम पहलू यह है कि इसमें आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिए केंद्र द्वारा दिया गया 10 फ़ीसदी आरक्षण शामिल नहीं है। बिल पर अब सिर्फ़ बिहार के राज्यपाल के दस्तख़त का इंतज़ार है।
बिहार ने भी अपनी रिपोर्ट के बाद तेज़ी से आगे कदम बढ़ाया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने जाति के आधार पर आरक्षण को 65 फ़ीसदी तक बढ़ाने के लिए बिल पारित कर दिया है, और इस बिल का कांग्रेस और BJP विरोध ही नहीं कर पाए।